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हर कदम प्यास है

22 मई 2017

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सूखी नदी सा

मन उदास है .


सदी - सा

आकाश

बादल बिन

नंगा है

यमुना

पियराई - सी

मैली - सी

गंगा है


आँखों में

पतझड़ है

राहों में

धूल है

बागों में

बच गए

बेर और

बबूल हैं.


हर घाट

बदहवास है .


--- डॉ. हरेश्वर राय







ध्रुव सिंह  -एकलव्य-

ध्रुव सिंह -एकलव्य-

पतझड़ है राहों में धूल है बागों में बच गए बेर और बबूल हैं. आदरणीय ,लघु शब्द ,दीर्घ भावनायें समेटें हुए आपकी ये रचना क़ाबिले तारीफ है आभार एकलव्य

3 जुलाई 2017

धर्मेन्द्र कुमार

धर्मेन्द्र कुमार

बहुत खूबसूरत ................

24 मई 2017

डॉ हरेश्वर

डॉ हरेश्वर

आदरणीया, धन्यवाद

24 मई 2017

शालिनी कौशिक एडवोकेट

शालिनी कौशिक एडवोकेट

ह्रदय को ़छू गयी

22 मई 2017

रेणु

रेणु

सुखी नदी सा मन उदास है -- आँखों की बुझ रही आस है -- मन भीगा सा देखे रास्ता -- -- आहत हर इक साँस है ---------------- बहुत मर्मस्पर्शी रचना - सादर - हार्दिक शुभकामना - डॉ राय -

22 मई 2017

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गर्मी काकी

19 मई 2017
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गली गली में, द्वार द्वार पर गर्मी काकी घूम रही है खीरा ककड़ी तरबूजे लेकर बेंच रही है झूम रही है.छाता ले लो गमछा ले लो जोर जोर से बोल रही है धूप चश्मों की भारी गठरी बांध रही है खोल रही है.पंखे कूलर नचा रही है घ

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चलो गांव

21 मई 2017
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चलो गांवजरा सा घूम आएं .पत्थरों के शहर मेंबेजान बन गया हूँउबली हुई चाय कीसिट्ठी सा छन गया हूँबरसों गुजर गएफफूंद आये.आगबबूली दोपहरी मेंतन तवा सा जल रहानोनी लगी दीवारों मेंमन कंदील सा गल रहाचलो नीम की छांवजरा स

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जुगनू हुई तनहाई

21 मई 2017
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मन ठूँठ परआस केपात आये.जेठ की गई तपनसावन की पुरवाई आईतन अगस्त्य का फूल हुआसूखे पैरों की गई बिवाईबाग़ केउड़े तोतेहाथ आये.मन पुरइन का पात बनाजुगनू हुई तनहाईहोंठ फाग केगीत हुएआँखें हुईंअमराईहासपरिहास केपरात आये.-

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पियराये से गीत

21 मई 2017
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सूनी डगरेंप्यासे खेतपियराये से गीतफ़ुर्र हुईगौरैया चिरईंभूख न जाने रीत.बेटा बाम्बेदिल्ली बिटियाअपने संगचितकबरी बछिया चलनी छानीदरकी भीत. बिरहा

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नेह भरी पाती

21 मई 2017
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नेह भरीपाती अब नहीं आती. गुप्तवास में माँ की लोरीगूंगी बहरी चैती होरी सुखिया दादी परातीअब नहीं गाती अंगनाई की फट गई छातीचूल्हे चौकों कीबँट गई माटीपूर्वजों कीथाती अब

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हर कदम प्यास है

22 मई 2017
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सूखी नदी सा मन उदास है .सदी - साआकाशबादल बिन नंगा है यमुनापियराई - सी मैली - सी गंगा है आँखों मेंपतझड़ हैराहों मेंधूल हैबागों में बच गएबेर और बबूल हैं. हर घाट बदहवास है .--- डॉ. हरेश्वर राय

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