पेड़ ने पूछा चिड़िया से ---------
तेरी ‘ चहक’ का फल कहाँ लगता है ?
जिसको चख सृष्टि के कण - कण में –
आनंद चंहु ओर विचरता है ! !
जो फूल में गंध बन कर बसता,
करुणा से तार मन के कसता ;
जो अनहद - नाद सा गुंजित हो –
जड़ - प्रकृति में चेतन भरता ;
वही सांसो में अमृत सा घुल –
प्राणों में शक्ति भरता है !
यही कलरव सुन कर के -
गोरी का अंतर्मन पुलक जाता ,
जब कोई श्याम सखा चुपके से
कोरे मन में रंग भर देता
इससे निसृत रस चाँद रात में –
रास प्रेम का रचता है ! !
माधुर्य का पर्याय बन -
तू चहके मीठी पाग भरी ,
कण - कण में स्पंदन भर देती -
जब तू गूंजे आह्लाद भरी ;
पात -पात बौराता धरा पे -
नवजीवन का सृजन करता है ! !
चिड़िया बोली '' जीवनपथ की मैं अनत यायावर -
तृप्ति - अमृत घट लाती भर - भर ,
अम्बर की विहंगमता नापूं नन्हे पंखों से -
छूती विश्व का परम शिख्रर ;
काल के माथे पर लिखा ये कलरव अजर – अमर है
कविता , वाणी और वीणा में जो नित नए स्वर रचता है ! !
मन बैरागी , आत्मगर्वा और आत्माभिमानी कहाऊँ-
नन्हे पाखी को सौंप गगन को मैं कर्तव्य निभाऊं ;
आजन्म मुक्त और निर्बंध मैं –
मन चाहे जिधर - फूर्र से उड़ जाऊं ;
सुन पेड़ सखा मेरी ' चहक' का फल –
मेरे स्वछंद प्राणों में पलता है ,
मुक्त कंठ से हो निसृत जो -
सृष्टि में नव - कौतुहल गढ़ता है