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साधक

24 मई 2017

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मूक क़लम को साधकर

भावनाए बाँधकर

होठों पे गुनगुनाते हुये

आधे अधूरे से गीतों को

रात के अँधेरे में

दीपक के प्रकाश से

वह लिख रहा होगा

वह लिख रहा होगा


- कुँवर दीपक रावत

कुँवर दीपक रावत की अन्य किताबें

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वीर जवान

24 मई 2017
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ऐ वीर जवान तू तो है तूफान तूने चाहा जहाँ पहुँच पाया वहाँ तू चला जहाँ तेरा कारवाँ तूफ़ानो में बढता गया रुका नहीं कभी तू गया जहाँ पहाड़ो पे भी चड़ता गया जब हवा चली ढक गये वो निशान जो बने थे वहाँ मिट गये वो निशान ऐ वीर जवान पैरो के निशान मिलते ही नहीं ढूंडू मैं क

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भारतीय

24 मई 2017
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मिट गयीं वो हस्तियाँ,और उनकी बस्तियाजो मिटाने के लिए, हमे आई हैंथम गयीं वो आँधियाँ,बुझ गयीं वो बातियाजो जलाने के लिए, हमे आई हैंकट गये वो कर,झुक गये वो सरजो झुकने के लिए, हमे आए हैं– कुँवर दीपक रावत

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माँ भारती

24 मई 2017
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जिसकी मिट्टी में ममता है, आँचल प्यार का साया है ! प्रेम प्यार से सनी हुई, जिसकी अद्भुत छाया है !! यहीं आके हमको चैन मिले , यह कैसी तेरी माया है ! हम धन्य हुए माँ, प्यार तेरा हमने पाया है !! हर पल हर छन तूने, हमारा साथ निभाया है ! हम धन्य हुए तूने , हमको सीने से लगाया

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अंदाज़ शायराना

24 मई 2017
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कहते हैं कुछ लोग की, ये अंदाज़ शायराना है ! कहते हैं हम की, अब ठीक से पहचाना है !! दिल की तन्हाई का, अब तो ये ही अफ़साना है ! कहते हो फिर क्यूँ के, ये तो बस बहाना है !! फिर वही दिन, वही रोशनी, वही आसमा है ! जाने क्यूँ फिर भी यहाँ, कुछ तो विराना है !! वो मोहब्बत कहाँ

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इबादत

24 मई 2017
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जलते हुए शोलों से दोस्ती कर ली ! खुद खाक होने की, साज़िश कर ली !! इन सर्द बर्फ़ीली हवाओं में, वो बात कहाँ ! एक धूप की ख्वाहिश में, रोशनी कर ली !! तेरे दामन में, या मेरे आशियाने में ! एक बूँद की चाहत में, बारिश कर ली !! वो तो नहीं हुआ जो, दिल की आरज़ू थी ! हर शाम

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बदनाम

24 मई 2017
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कुछ खत मेरे नाम, बेनाम चले आएहम आज तेरी महफ़िल से, गुमनाम चले आएकुछ वक़्त तेरे साथ, कुछ लम्हे तेरे नामतेरी दोस्ती की गफलत में, हर शाम चले आएनाचीज़ समझते हो, बड़े शौक से समझोफिर भी मेरे नाम, कुछ इल्ज़ाम चले आए

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क़लम

24 मई 2017
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वो क़लम नहीं हो सकती है जो बिकती हो बाज़ारों में ! क़लम वही है जिसकी स्याही, ना फीकी पड़े नादिया की धारों में !! क़लम वो है जो बनती है, संघर्ष के तूफान से ! लिखती है तो बस सिर्फ़ मानवता क़ी ज़ुबान से !! क़लम चाकू नहीं खंज़र नहीं, क़लम तलवार है ! सत्यमेव ज्यते ही इस

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साधक

24 मई 2017
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मूक क़लम को साधकरभावनाए बाँधकरहोठों पे गुनगुनाते हुयेआधे अधूरे से गीतों कोरात के अँधेरे मेंदीपक के प्रकाश सेवह लिख रहा होगावह लिख रहा होगा- कुँवर दीपक रावत

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तेरा रंग अभी तक बाकी है

24 मई 2017
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अश्क तो हैं तेरी यादों के, मेरे लिए काफ़ी हैं !कुछ गुज़रे दिन इनके सहारे, गुजर जाएँगे जो बाकी हैं !!तेरी तस्वीर थी जो आँखों में, इसमे अब पानी का रंग शामिल है !ये धुंधली सी हो गयी है, बस अब थोडा सा रंग बाकी है !!म

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वो लम्हे कहाँ फ़ुरसत के

24 मई 2017
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वो लम्हे कहाँ फ़ुरसत के, वो पल कहाँ राहत के !अब इंतेज़ार है और ख़्वाहिश है, वो निशान कहाँ हसरत के !!कभी सबको साथ लेकर चलने की आदत थी दोस्तो !अब ख़बर नहीं कहाँ है, वो फसाने लड़कपन के !!कभी चाहत पे दुनिया का हर

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वक़्त

25 मई 2017
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हर चीज़ की कीमत तय कर दी, उन लम्हों की कीमत क्या होगी !जो साथ हँसे, जो साथ जिए, उन रिश्तों की कीमत क्या होगी !!क्यूँ भूल गये उस बचपन को, उन नन्ही आँखो के सपनो को !वो कैसे तुम अब पाओगे, जिसकी कोई कीमत ही नहीं !क्यूँ भूल गये उन कसमो को, उन छोटी छोटी सी रस्मो को !वो कैसे तु

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मेरे मेहबूब कयामत होगी

25 मई 2017
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एक छोटा सा प्रयास आप सभी दोस्तों के लिये, आशा करता हूँ आपको पसंद आएगाकुँवर दीपक रावत

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