shabd-logo

गीत ---आलोक सिन्हा

2 जून 2017

172 बार देखा गया 172

दूर हैं हमसे हमारे |

अनगिनत तारे सजग हैं ,

पर सभी कितने अलग हैं,

जो तनिक दौड़े मिलन को , बुझ गये वे बेसहारे |

तुम नहीं तो हम नहीं हैं ,

और कुछ भी गम नहीं है ,

रम गये तुम में उसी दिन , जब मिले घूँघट उघारे |

कौन सी डोरी कसी है ,

भूलने में बेबसी है ,

नींद आती है सपन की , स्वप्न आते हैं तुम्हारे |

प्यार से सौ बार प्यारा ,

नाम ओठों पर तुम्हारा ,

मैं चला जाऊं कहीं भी , इस किनारे उस किनारे |


आलोक सिन्हा

शालिनी कौशिक एडवोकेट

शालिनी कौशिक एडवोकेट

बहुत-बहुत सुंदर मंजरी जी केवल आलोक जी ही नहीं हम सभी कृतज्ञ हैं आपके

7 जून 2017

रेणु

रेणु

मंजरी जी ------- आलोक जी के भावपूर्ण गीत की प्रस्तुति के लिए आपको बहुत धन्यवाद -----

5 जून 2017

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

बहुत अच्छी शब्दरचना प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति

3 जून 2017

Sakshi

Sakshi

bshut achchi rachna

3 जून 2017

1

गीत ---आलोक सिन्हा

2 जून 2017
0
3
4

दूर हैं हमसे हमा

2

चार मुक्तक ----- अलोक सिन्हा

12 जून 2017
0
3
1

1 आंसुओं के घर शमा रात भर नहीं जलती , आंधियां हों तो कली डाल पर नहीं खिलती | धन से हर

3

गीत ---- गोपालदास नीरज

14 जून 2017
0
2
1

धनियों के तो धन हैं लाखों ,मुझ निर्धन के धन बस तुम हो | कोई पहने माणिक माला , कोई लाल जडावे | कोई रचे महावर मेहदी , मुतियन मांग भरावे |सोने वाले , चांदी वाले , पानी वाले पत्थर वाले ,तन के तो सौ सौ सिंगार हैं , मन के आभूषण बस तुम हो | कोई ज

4

गीत -- आलोक सिन्हा

20 जून 2017
0
2
1

5

गीत --- आलोक सिन्हा

26 जून 2017
0
2
1

काग बोला है मुडेरी | क्या तुम्हें हम याद आये ,और तुमनें पग बढाये ,पर अभी टू

6

गीत -- अलोक सिन्हा

18 जून 2018
0
1
0

कब तक आशा –दीप जलाऊँ , इस अल्लढ़ मन को समझाऊँ | जनम जनम से मन की राधा , खोज रही अपना मन भावन | तृष्णा नहीं मिटी दर्शन की , रीत गया यह सारा जीवन

7

कविता

2 अक्टूबर 2018
0
3
1

गांधी बाबा के स्वराज में सुरा बहुत है राज नहीं है | राज बहुत खुलते हैं लेकिन खिलता यहां समाज नहीं है | यह देखो कैसी विडंबना राजनीति में नीति नहीं है और राजनैतिक लोगों को नैतिकता

8

गीत

20 जून 2019
0
3
0

शादी के बाद ससुराल से एक बेटी की अपनी माँ को भावनात्मकपाती -- गीत जिसकी रज ने गोद खिलाया , पैरों को चलना सिखलाया . जहाँ प्यार ही प्यारभरा था - वह आंगन बहुत याद आता है | सुबहसुबह आँखें खुलते ही , तेरा वहपावन सा चुम्बन | फिरदोनों बांहों में भरकर. हल

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए