खंडित भारत माँ का क्रन्दन
सुनती हूँ ना कि मै -सैकड़ो वर्षो की पराधीनता से मुक्त हुई हूँ।तुमने मेरी गुलामी की जंजीरों को काटकर,मझे स्वतंत्र किया है।लेकिन मुझे याद है-मेरी खुली बालें लहराती थी-मुजफ्फराबाद, रावलपिंडी, लाहौर से क्वेटा तक।आज मुझे नहीं दिखाई पड़ती है,मेरी लहराती, उन्मुक्त बालें।रोज नए नए जख्म मेरे सर में-पैदा क