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अजन्मा रुदन (बालिका भ्रूण हत्या पर)

23 जून 2017

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अजन्मा रुदन

(बालिका भ्रूण हत्या)


वर्तमान आधुनिक भारतीय समाज में घर - घर में भीतर तक व्याप्त बेटे प्राप्त करने की चाह में होती बालिकाओं की निर्मम भ्रूण हत्याओं से पसीज कवि हृदय (यदि आप रचना को पढ़ने के उपरांत मुझे कवि कहलाने का आशीर्वाद प्रदान करें तो???) भाव विह्वल हो रो पड़ता है और कहता है :-


अबूझ पहेली थी,

निस्सहाय अकेली थी,


सोच के द्वंद को भी न समझ पाई होगी,

उसने जब चीर कर उदर कैंची चलाई होगी,


जब अम्माँ , बाबा का ही न उसे बोध होगा,

तब अनुमति से जनक की काट- काट कर श्वान (डॉग) को खिला देने पर क्या क्रोध होगा !!! ???!!!


फिर सोचता हूँ क्या कटने पर दर्द से न चींखी होगी !!! ???!!!

ये सोच कर भी क्या माँ कि करुणा नहीं सीली होगी !!! ???!!!


कराह कर , तड़प कर अवर्णनीय वेदना मे उसने किसको पुकारा होगा !!! ???!!!

ईश्वर के बोध से अबोध को किसका सहारा होगा !!! ???!!!


असहनीय पीड़ा मे रक़्त से लथपथ , उस नव - सृजन को जिस भगवान (डॉक्टर) ने कोख़ से छीना होगा,

नहीं जानता कोई शब्द मेरे शब्दकोष का , उसके कृत्य को कैसे दर्शित करूँ ???...

वो कितना निर्मम , कितना कमीना होगा !!! ???!!!


ये सोच कर ही अक्लांत हूँ वह अजन्मा रुदन जाने कैसा होगा !!! ???!!!

कट - कट कर माँस का लोथड़ा, छटपटाकर जब कभी,... इधर कभी उधर पलटा होगा !!!? ??!!!


क्या होने पर बीच से दो फाड़ , अनिर्मित आँखों से कराहकर अश्रू न गिरे होंगे!!! ???!!!

या कटने पे श्वास नलिका के, दम घुटने से उसके प्राण हरे होंगे!!!? ??!!!


उस अजन्मी ने छिलने पर, चिरने पर, कटने पर, हृदय के कष्ट से तड़पने पर,

कोई चीत्कार , कोई चींख ,कोई आह, कोई कराह , कोई गुहार.....

मसोसकर , तड़पकर, बेबसी से तो लगाई होगी!!!???!!!


फिर सोचता हूँ ...बाद गुनाह के ...इंसानियत को रातों को कैसे नींद आई होगी !!!? ??!!!

रातों को कैसे नींद आई होगी !!!? ??!!!


(मनोज कुमार खँसली " अन्वेष" )

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उमा शंकर  -अश्क-

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बहुत अच्छे सर

29 जुलाई 2017

कुसुम लता

कुसुम लता

गजब मेरे तो आंसू ही निकल गए मनोज जी आप सचमुच बहुत ही बढ़िया लिखते हो ऐसा लग रहा है जैसे सबकुछ आँखों के सामने घट रहा हो और आप कवि बल्कि महाकवि हो| काश हमारा समाज हमारा कानून इस दर्द को समझ इसे खत्म करने हेतु कोई ठोस कदम उठा पाता या हम सभी मिलकर इस कुकृत्य को खत्म करने के लिए कोई पहल करते|

30 जून 2017

Suraj Singh Sarki

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सत्य बताया सत्य दिखाते हुए मानो दृश्य जीवंत कर दिया निष्ठुर और क्रूर माँ -बाप काश समझ सके...आंखे खोल सके...जग-जननी स्त्री ही नही धरा पे....तो मानव कहाँ...?

24 जून 2017

Suraj Singh Sarki

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सत्य बताया सत्य दिखाते हुए मानो दृश्य जीवंत कर दिया निष्ठुर और क्रूर माँ -बाप काश समझ सके...आंखे खोल सके...जग-जननी स्त्री ही नही धरा पे....तो मानव कहाँ...?

24 जून 2017

रेणु

रेणु

आदरणीय मनोज जी बहुत ही संदेदनशील विषय पर चली आपकी लेखनी में एक सच्चे कवि का मन छलका है आप उस पीड़ा को समझने में सक्षम हुए जिसे निर्दयी हाथ करने में जरा भी नहीं हिचकते ---------------- उन नन्ही निर्दोष जानों का हिसाब कौन देगा जो अपना दर्द लेकर इस दुनिया से बिना कुछ कहे विदा हो गयी ? सचमुच बहुत दर्द भरी रचना है आपकी और सार्थक भी ------ हो सकता है इसे पढ़कर कुछ मन बदल जाएँ और कुछ वो नन्ही परियां इस दुनिया में आ जाएँ जिन्हें कोई आने ना देना चाहता हो !!!!!!!!!!!!!

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अजन्मा रुदन (बालिका भ्रूण हत्या पर)

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