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तुम्हारे हिज़्र में

6 जुलाई 2017

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गिर रही है आँख से शबनम तुम्हारे हिज़्र में

एक ही बस एक ही मौसम तुम्हारे हिज़्र में


क़तरे-क़तरे में शरारों सी बिछी है चांदनी

बन गयी है हर ख़ुशी मातम तुम्हारे हिज़्र में


आईना-ओ-धूप के बिन अक्स न साया मेरा

किस क़दर तनहा हूँ मैं हमदम तुम्हारे हिज़्र में


खो गयी है अब नज़र की तिश्नगी जाने कहाँ

अश्क़ में डूबा है ये आलम तुम्हारे हिज़्र में


दे भी जाओ अब सनम आकर सुकूं दिल को मेरे

या बता जाओ करें क्या हम तुम्हारे हिज़्र में


तुम नहीं तो सांस भी भारी लगे है बोझ सी

यूँ ही निकलेगा लगे है दम तुम्हारे हिज़्र में


फ़िक्र-ए-दुनिया है न खुद की है ख़बर कोई मुझे

अब ख़ुशी है न ही कोई ग़म तुम्हारे हिज़्र में


फूल उम्मीदों के सारे आज कांटे बन गए

हर क़दम पतझर का है मौसम तुम्हारे हिज़्र में


एक-एक लम्हा लगे है अब क़यामत सा नदीश

ख़्वाब भी होने लगे हैं नम तुम्हारे हिज़्र में


- लोकेश नदीश

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तुम्हारे हिज़्र में

6 जुलाई 2017
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गिर रही है आँख से शबनम तुम्हारे हिज़्र में एक ही बस एक ही मौसम तुम्हारे हिज़्र में क़तरे-क़तरे में शरारों सी बिछी है चांदनी बन गयी है हर ख़ुशी मातम तुम्हारे हिज़्र में आईना-ओ-

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शामिल रहा है वो

7 जुलाई 2017
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खोया है कितना, कितना हासिल रहा है वोअब सोचता हूँ कितना मुश्किल रहा है वोजिसने अता किये हैं ग़म ज़िन्दगी के मुझकोखुशियों में मेरी हरदम शामिल रहा है वोक्या फैसला करेगा निर्दोष के वो हक़ मेंमुंसिफ बना है मेरा कातिल रहा है वोपहुँचेगा हकीकत

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वक़्त बिताया जा सकता है

8 जुलाई 2017
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यूँ भी दर्द-ए-ग़ैर बंटाया जा सकता हैआंसू अपनी आँख में लाया जा सकता हैखुद को अलग करोगे कैसे, दर्द से बोलोदाग, ज़ख्म का भले मिटाया जा सकता हैमेरी हसरत का हर गुलशन खिला हुआ हैफिर कोई तूफ़ान बुलाया जा सकता हैअश्क़ सरापा ख़्वाब मेरे कहते हैं मुझसेग़म की रेत पे बदन सुखाया जा

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ख़ुदकुशी करते रहे

9 जुलाई 2017
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यूँ मुसलसल ज़िन्दगी से मसख़री करते रहेज़िन्दगी भर आरज़ू-ए-ज़िन्दगी करते रहे एक मुद्दत से हक़ीक़त में नहीं आये यहाँ ख्वाब कि गलियों में जो आवारगी करते रहे बड़बड़ाना अक्स अपना आईने में देखकर इस तरह ज़ाहिर वो अपनी बेबसी करते रहे रोकने कि कोशिशें तो खूब कि पलकों ने पर इश्क़ में पागल थे आंसू ख़ुदकुशी करते रहे आ गया

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मुश्किल रहा है वो

10 जुलाई 2017
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खोया है कितना, कितना हासिल रहा है वोअब सोचता हूँ कितना मुश्किल रहा है वोजिसने अता किये हैं ग़म ज़िन्दगी के मुझकोखुशियों में मेरी हरदम शामिल रहा है वोक्या फैसला करेगा निर्दोष के वो हक़ मेंमुंसिफ बना है मेरा कातिल रहा है वोपहुँचेगा हकीकत तक दीदार कब सनम कासपनों के मुसाफिर की मंज़िल रहा है वोकैसे यक़ीन

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वो गाँव दर्द का है और ठहरना है अभी

23 सितम्बर 2017
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अपने होने के हर एक सच से मुकरना है अभीज़िन्दगी है तो कई रंग से मरना है अभीतेरे आने से सुकूं मिल तो गया है लेकिनसामने बैठ ज़रा मुझको संवरना है अभीज़ख्म छेड़ेंगे मेरे बारहा पुर्सिश वालेज़ख्म की हद से अधिक दर्द उभरना है अभीनिचोड़ के मेरी पलक को दर्द कहता हैमकीन-ए-दिल हूँ मैं

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