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किस्साग़ोई

6 जुलाई 2017

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अन्वेष .....किस्सा-दास्ताँ हूँ ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ |

जो भी ज़ख़्म दिखते हैं , उन्हें अपनी रचना में सजा लेता हूँ |

पहले ख़ुद खोदता हूँ कब्र अपनी, फिर खुद को ही काँधे पे उठा लेता हूँ |

कमाल की लोच है मेरी रीढ़ की हड्डी में ,

जहाँ भी,... जब भी,...जैसे भी ,....

इसे हाक़िम (मालिक) की मानिन्द घुमा लेता हूँ |

किस्सा-दास्ताँ हूँ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ |

जो भी ज़ख़्म दिखते हैं, उन्हें अपनी रचना में सजा लेता हूँ |


वो भागता रहा जीवन का बोझ लिए दसों मील उड़ीसा में * 1

पगला नहीं जानता !!! ... रियो विज्ञ (जानकार) बैठें हैं ब्राज़ील में,*2

तीन सौ पैंसठ दिन आसमाँ की छत

और दो सौ पैंसठ दिनों के रोज़े को,

एक ट्वन्टी-ट्वन्टी (क्रिकेट) की जीत में,

संग प्याज- नमक,

रुपए पच्चीस के पव्वे में भुला लेता हूँ |

किस्सा-दास्ताँ हूँ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ |

जो भी ज़ख़्म दिखते हैं, उन्हें अपनी रचना में सज़ा लेता हूँ |


सावन के झूलों में वो बात कहाँ ???

जो कइयों बरस बाद,

गँगा माई के घर आई में है !!! *3

गर्भ से छूटने का शिफ़ा,

बरसते सावन की बरखा से उफनती,

गँगा की लहरों में धुआ लेता हूँ |

किस्सा-दास्ताँ हूँ,...किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ|

जो भी ज़ख़्म दिखते हैं,...उन्हें अपनी रचना में सज़ा लेता हूँ |


कभी बहलाकर - कभी फुसलाकर,

सदियों से दबाता आ रहा हूँ उनकी दो जून की हसरतें,

हरबार दिखा!!!... बड़े रंगीं सब्ज़-बाग़!!!

आज भी,...अब भी,...जब भी,...उठता सवाल भूख का ???

उसे मस्ज़िद की गर्द में!!! ,...मन्दिर की अर्ज़ में!!!, ...

लाशों से पटा लेता हूँ !!!???!!!...

किस्सा-दास्ताँ हूँ,...किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ|

जो भी ज़ख़्म दिखते हैं...उन्हें अपनी रचना में सज़ा लेता हूँ!!! ???!!! ...


(मनोज कुमार खँसली " अन्वेष")


*1 उड़ीसा में एक शख्स ने अपनी मृत पत्नी को अन्तिम सँस्कार हेतु काँधे पे लिए मीलों पैदल तय किए!!!???


* 2 रियो (ब्राज़ील) में हुए ओलम्पिक के संदर्भ में, जहां खेलों के बड़े -बड़े विद्वान थे जबकि यहाँ भारत में पैदल भागते कन्धों में जीवन दम तोड़ रहा था!!!???


*3 अभी हाल ही में आई बाढ़ के उपरांत माननीय श्री लालूप्रसाद यादव जी का बयान आया , ये बाढ़ नहीं बल्कि स्वयं साक्षात् गँगा मैया आपके घरों में दर्शन देने आई है!!!???....और ये आप सबका सौभाग्य है!!!???!!!



मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष" की अन्य किताबें

उमा शंकर  -अश्क-

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अब क्या कहना मेरे पास तो तारीफ़ के लब्ज ही शेष नहीं बचा है. बहुत सुन्दर

29 जुलाई 2017

कुसुम लता

कुसुम लता

भारतीय राजनीति पर गंभीर कटाक्ष मनोज जी आप सचमुच बहुत अच्छा लिखते हो |

8 जुलाई 2017

रेणु

रेणु

बाहुत विचारणीय विषयों को उकेरती आपकी रचना बहुत अच्छी लगी मनोज जी ------ सचमुच किसी का दर्द या ख़ुशी जब शब्दों में ढल जाता है तो कविता या गीत बन जाता है --------

7 जुलाई 2017

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

एक उत्तम श्रेणी की रचना , शुभकामनाएं आपको

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