shabd-logo

''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा' )

8 जुलाई 2017

271 बार देखा गया 271
featured image

वह आज भी उन्हीं सन्नाटों में देखता है, कुछ सोचता है ,पैरों में कीचड़ सी मिट्टी मानों उसके जेवर हों कंधे पर रखा मैला अंगोछा जिससे बार-बार अपने पसीनों को पोछता है,घुटने तक पहनी धोती संभवतः जिसका रंग उजला रहा होगा किसी ज़माने में ! वर्तमान में रंग का निर्धारण करना अपने आप को छलने जैसा प्रतीत होता है। एक छोटी सी बालिका उम्र लगभग आठ वर्ष न जाने किसे पुकार रही है बापू, ओ ! बापू तुम्हीं हो क्या? घर क्यूँ नहीं आते ?

वो अधेड़ सा मानव न जाने क्या सोचता हुआ वीरान उजड़े हुए खेतों से नज़र हटाकर बच्ची की तरफ देखता है मानो कोई अपरिचित हो ! जो उससे, उसके यहाँ एकांत बैठने की सफाई माँग रही हो ! चेहरे की वो झुर्रियां प्रतीत होता है वह पागल स्वयं से यह प्रश्न पूछ रहा हो ! वास्तव में वो यहाँ क्यों बैठा है ? क्या उसे जीवन में जीने का विश्वास खत्म हो गया है ,अथवा दुनिया से भरोसा उठ गया है कुछ क्षण नीले साफ आसमान की ओर देखता मानो कोई कहानी याद कर रहा हो !

ठाकुर देवी प्रसाद 'जमींदार' या यों कहें गाँव के मालिक भारत आजाद हो गया किन्तु इनकी जमींदारी वाली शान और शौक़त अभी भी बरक़रार !

हवेली के चबूतरे पर लठैतों का काफ़िला ,देवी प्रसाद का राजाओं की तरह दरबार लगाना,हनुमान ,दीना,रामू न जाने कितने इनके टुकड़ों पर पलने वाले गाँव के दबंग फिर मुखिया जी जो इनके दरबार की शोभा ,गॉंव का साहूकार ,पुजारी सभी नतमस्तक।

इनकी पुस्तैनी बग्घी जिस पर ये गॉंव में घूमा करते ,इनके लठैत लाठी के दम पर गरीब किसान ,मजदूरों को परेशान करते और ठाकुर साहब किसानों की आधी फसल अपने गोदामों में भिजवाते और हो भी क्यूँ न जागीरदार जो ठहरे।

भीमा की छोटी सी ज़मीन जिसके दम पर वह अपना परिवार पालता ,परिवार में उसकी बीबी ,तीन बच्चे एक गाय जिसका कुछ दिनों पहले स्वर्गवास हो गया। अब 'मनुष्य मरे तो मुसीबत नहीं होती' किन्तु गाय मरे तो गोहत्या ! अब क्या था इसका ख़ामियाज़ा तो भुगतना ही पड़ेगा ,ब्राह्मणों को भोजन ,दान-दक्षिणा दिए बिना आप इस पाप से नहीं बच सकते और बच भी गए तो तथाकथित विद्वानों के अनुसार स्वर्ग के दरवाज़े आप क्या आपके सम्पूर्ण कुटुम्ब के लिए बंद होंगे ! थक हार कर आपको नरक की ओर प्रस्थान करना ही होगा।

भीमा गौ हत्या के पाप से बचने के लिए साहूकार से उधार ले लिया। ......... शेष अगले अंक में



"एकलव्य"


ध्रुव सिंह -एकलव्य- की अन्य किताबें

1

"बिम्ब सा !" 'कविता'

11 मई 2017
0
3
2

बिम्ब सा !दिखता हैमुझको मन के कोनों में अभी कुछ नहीं,ये भ्रम है ! मेरा वेदना ! मुझमें कहीं संभवतः ! हताशा होगी ये तोड़ती ! हिम्मत मेरीअर्जित नहीं जो कर सका !

2

"चरखा" 'कविता'

15 मई 2017
0
2
3

हे ! वरदानीतुम आनबसो !मेरे अंदर वो प्राण भरो ! कायर होता,मैंमन ही मनवीर सा तुमउत्कर्ष भरो ! हे ! मानव रक्षकअभिमानीविश्वास भरो !आभास भरो ! चित्त को पावन अब कर दो ! तुम अमृत वाणी ! कुछ कहके तुमजीवन का मार्गप्रशस्त्र करो !हे ! वरदानीतुम आनबसो !मेरे अ

3

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "दिवास्वप्न"

30 मई 2017
0
1
2

"दिवास्वप्न" मैं सदैव विचार करता, कि ये दिवास्वप्न है क्या बला ? किन्तु जीवन के आज तक के अनुभव मुझे ये बताने लगे हैं कि हमारा कर्महीन होकर,अत्यधिक पाने की कल्पना का दूसरा नाम 'दिवास्वप्न' है।''एकलव्य"

4

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "दुःख"

31 मई 2017
0
0
0

"दुःख" "अपूर्ण इच्छाओं की सूक्ष्म , रंध्रयुक्त पेटिका है जो समय-समय पर रिसती रहती है , निकलती इच्छायें दुःख रूपी अनुभव में परिणीत होती हैं""एकलव्य

5

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "क्रोध"

1 जून 2017
0
1
0

"क्रोध" "हमारे शरीर में उत्पन्न क्षणिक विकृति मात्र है, जो आवेग के रूप में प्रस्फुटित होती है, दिशाविहीन होना इसका विशिष्ट लक्षण है जो हमारे मस्तिष्क को क्षणभर के लिए शक्तिहीन बना देती है" "एकलव्य"

6

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "मृत्यु"

2 जून 2017
0
1
2

"मृत्यु" "नवीन जीव संरचना की उत्पत्ति का उद्देश्य ,प्रकृति के परिवर्तन का सन्देश जो सारभौमिक सत्य है"

7

''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा' )

8 जुलाई 2017
0
4
0

वह आज भी उन्हीं सन्नाटों में देखता है, कुछ सोचता है ,पैरों में कीचड़ सी मिट्टी मानों उसके जेवर हों कंधे पर रखा मैला अंगोछा जिससे बार-बार अपने पसीनों को पोछता है,घुटने तक पहनी धोती संभवतः जिसका रंग उजला रह

8

''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा') दूसरा भाग

21 जुलाई 2017
0
1
1

'काला अक्षर भैंस बराबर' भीमा के लिए, टिका दिए अँगूठे साहूकार के कहने पर 'कोरी भूमि' पर, क्या पता था ? ये कर्ज़ नहीं चलनी ले ली रेत टिकाने के लिए। घर लौटा मांचे पर बैठकर पसीना पोंछने लगा कहते हुए ,अरे सुनती है 'नटिया' की माँ पैसे मिल गए, चलो एक चिंता दूर हुई। 'कम्मो'

---

किताब पढ़िए