भारत अनंत काल से ऋषियों और मनीषियों की पावन भूमि रहा है जिन्होंने समूचे विश्व और भटकी मानवता का सदैव मार्ग प्रशस्त कर उन्हें सदाचार और सच्चाई की राह दिखाई है | इसकी अध्यात्मिक पृष्ठभूमि ने हर काल में गुरुओं के सम्मान की परम्परा को अक्षुण रखा है | अनादिकाल से ही आमजन से लेकर अवतारों तक के जीवन में गुरुओं का विशेष महत्व रहा है | इसी क्रम में गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने को परमावश्यक माना गया है क्योकि माता - पिता के बाद यदि कोई व्यक्ति हमारे जीवन को संवारता है तो वह गुरु ही है | इसी लिए गुरु को ब्रह्म ,विष्णु , महेश नहीं बल्कि साक्षात परमब्रह्म की उपाधि दी गई है ------ 'गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा: गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।' गुरुहमारे भीतर के अन्धकार को मिटा वहांज्ञानके प्रकाश को भरते हैं | तभी गुरु को अंधकार से प्रकाश की और ले जाने वाला बताया गया है -- अर्थात गु यानि अन्धेरा और रु यानि प्रकाश | अपने गुरुओं की उपासना पर्व के रूप में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पर्व मनाया जाता है| इसे गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है |
कहते हैं इसी पूर्णिमा के दिन परम श्रद्धेय वेदों के रचियता व्यास जी का भारतभूमि पर अवतरण हुआ था | उन्ही व्यास जी के नाम पर इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है | भारतवर्ष में कहीं भी कथा हो तो कथावाचक के बैठने के स्थान को व्यास पीठ कह कर सम्मान दिया जाता है | यही परम पूजनीय वेदव्यास को प्रथम गुरु भी कहा गया क्योंकि उन्होंने ही पहली बार अपने मुखारविंद से वेदों की महिमा का बखान कर मानवता को धन्य किया था | वैसे तो हर प्रकार के ज्ञान प्रदाता को गुरु कहा गया है पर अध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरु का जीवन में विशेष महत्व है ,इसी लिए उन्हें सतगुरु कर कर पुकारा गया है |
हिन्दू धर्म , सिख धर्म , मुस्लिम धर्म या फिर ईसाई सबमे परम ज्ञानी पथ प्रदर्शक की महता को स्वीकारा गया है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो अपनी भक्ति , अपनी रचनात्मकता सभी का श्रेय अपने गुरु को दे कर , अपना सर्वस्व अपने गुरु के चरणों में अर्पण कर उनके प्रति अपनी परम आस्था को दर्शाया है | वे गुरु को कृपा का सागर और भगवान् का मानव रूप बताते हुए उनके चरणों में वंदना करते लिखते हैं ------- बदौं गुरु पद कंज --कृपा सिन्धु नर रूप हरि | महा मोह तम पुंज , जासु वचन रवि कर निकर | | उन्होंने अपने रचना संसार में हर कहीं गुरु को असीम महत्व दे कर अपनी श्रद्धा उन्हें समर्पित की है |सूरदास जी भी गुरु की महिमा का बखान कर लिखते हैं --- सब्दहिं-सब्द भयो उजियारो -- सतगुरु भेद बतायो | ज्यौ कुरंग नाभि कस्तूरी , ढूंढत फिरत भुलायो || सहजो बायीं कहती हैं ------- राम तजूं गुरु ना बिसारूँ ------ गुरु के सम हरिको ना निहारूं | अर्थात भले ही हरि को तजना पड़े पर गुरु को कभी नहीं भुलूं और गुरु के जैसे हरि कोकभी ना निहारूं |
मीरा बाई ने भी हरि धन की प्राप्ति का श्रेय अपने गुरु रविदास जी को दिया ; वे कह उठी -------- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो वस्तु अमोलक दई मोरे - सतगुर किरपा कर अपनायो | अर्थात मैंने राम के नाम का धन पा लिया है | मेरे सतगुरु ने कृपा करी है जो मुझे अपनाकर ये अनमोल वस्तु मुझे दी है | सिख धर्म में तो गुरुओं को सर्वोच्च स्थान दिया गया है क्योकि गुरु नानकदेव जी ने सिख धर्म की नींव रखी तो उनके बाद अगले नौ गुरुओं ने सिख धर्म में गुरु परम्परा को कायम रख इसे आगे बढाया | पर दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिखोंको गुरुओं के स्थान पर गुरवानी युक्त पुस्तक गंथ साहिब को ही गुरु का दर्जा दे उसे अपने जीवन में अपनाने की सीख दी | तब से सिख धर्म में ग्रन्थ साहिब को गुरु ग्रन्थ साहिब कहकर पुकारा जाता है और इसमें संग्रहित अनेक गुरुओं की पवित्र वाणी को सुनकर सभी सिख अपना सौभाग्य मानते हैं | भगवान् श्री कृष्ण ओर श्री राम ने भी अपने जीवन में गुरुओं के सानिध्य में अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा ली | उन्होंने गुरु को अपने ह्रदय में धारण कर उनके अधीन रहने में जीवन को सार्थक माना | गुरु के चरणों की सेवा को अपना पूजा का मूल माना | माना कि मोक्ष का मूल गुरु की कृपा का मिलना है उसके बिना मोक्ष मिलना असम्भव है |
बिना गुरु कृपा के जीव भाव सागर से पार नहीं हो सकता | उन्ही की परम कृपा से जीवन में दिव्यता और चैतन्यता आती है | तभी तो कहा गया है ------------- गुरु गोविन्द दोउ खड़े काकें लागूं पांव , बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो मिलाय|| अर्थात गुरु और भगवान् दोनों खड़ें हैं -- किसके पांव लगूं? मैं तो अपने गुरु पर बलिहारी जाऊँ जिसने भगवान् से मुझे मिलवा दिया है | संक्षेप में वेदांत अनेक हैं संदेह भी बहुत है और जानने योग्य आत्म तत्व भी अति सूक्षम है पर गुरु के बिना मानव उन्हें कभी जान नहीं पाता | वेदों ,उपनिषदों में वर्णित परमात्मा का रहस्य रूप या ब्रह्म ज्ञान हमें गुरु ही दे सकते है |
आज इन्ही गुरु जनों की उपासना और वंदना का पावन दिन है, जिसे हम उनके पवित्र ज्ञान का अनुसरण कर सार्थक कर सकते हैं -- सभी को इस पावन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |