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खगोलशास्त्र और गणित ज्योतिष - भाग 1

11 जुलाई 2017

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यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.


हम सब ने कभी न कभी आकाश में विचरण करते ग्रहों और नक्षत्रों का अवलोकन किया है। इस अवलोकन से हम सब के मानस में भिन्न भिन्न प्रकार के भाव आते हैं। सूर्य प्राची में उदय होता है और पश्चिम में अस्त होता है। इसका कारण सूर्य नहीं है बल्कि पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना है।

जिस प्रकार सूर्य पूर्व में उदित होकर पश्चिम में अस्त होता है उसी प्रकार सभी खगोलीय पिंड पूर्व से उदय होकर पश्चिम में अस्त हो जाते हैं। इसका कारण इन पिंडों की गति न होकर पृथ्वी का घूर्णन है।किन्तु इसके भी कुछ अपवाद हैं।


हमारे सौर मंडल के सभी ग्रहों से उसी प्रकार सूर्योदय और सूर्यास्त होता है जैसे कि हमें पृथ्वी से दिखाई देता है। किन्तु इसके कुछ अपवाद हैं। बुध (mercury) में कुछ स्थानों पर वर्ष के कुछ दिनों में सूर्योदय तो होता है किन्तु दोपहर के बाद सूर्य उल्टी दिशा में चलते हुए पूर्व दिशा में ही अस्त हो जाता है। सूर्य की आभासी गति का ऐसा दृश्य हमें पृथ्वी से तो दिखाई नहीं देता किन्तु अन्य ग्रहों की इसी प्रकार की आभासी उल्टी गति हमें निरन्तर दिखाई देती है। इसे वैज्ञानिक भाषा में apparent retrograde movement कहा जाता है। जितने भी ग्रह पृथ्वी से परे हैं उन सभी की ऐसी उल्टी गति वर्ष के कुछ दिनों में देखी जा सकती है। ग्रहों की गति की परिभाषा मैं ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दोनों आधारों पर करने का प्रयास करूँगा। साथ ही जिस गणितीय माडल पर मैं संप्रति अपने सीमित दायरे में कुछ शोधकार्य करने का प्रयास कर रहा हूँ उसकी भी चर्चा करूँगा किन्तु किसी और दिन। जैसा मैंने पहले ही कहा कि आज संभवत: इस विषय पर चर्चा का उचित अवसर नहीं है।


ग्रहों की चाल और स्थिति की गणना ज्योतिष में भी होती है और विज्ञान में भी। किन्तु दोनों के दृष्टिकोण में अन्तर है। इस अन्तर को समझाने के लिये मैं रेलगाड़ी और विमान प्रवास के उदाहरण का प्रयोग करना चाहूँगा। जब आप रेलगाड़ी या पृथ्वी पर चलने वाले किसी वाहन पर बैठते हैं तो आपको अपनी चाल का आभास अन्य वस्तुओं के सापेक्ष अपनी चाल से हो जाता है। किन्तु विमान के प्रवास में किसी सापेक्षता की अनुपस्थिति में आपको अपनी या विमान की चाल का आभास नहीं होता।


ज्योतिष में ग्रहों की चाल और स्थिति की गणना राशियों के सापेक्ष की जाती है जबकी विज्ञान में ग्रहों की चाल और स्थिति की गणना ग्रहों की कक्षा में उनकी स्थिति के अनुसार की जाती है। पहले बात ज्योतिष की। आप सब ने आकाश में तारों को प्राय: देखा होगा। यद्यपि आकाश हमें एक विशाल गुम्बद के जैसा दिखाई देता है फिर भी हमें आकाश और तारों का द्वि-आयामी (2 dimensional) दृश्य ही दिखता है। अर्थात उनकी पृथ्वी से दूरी हमें दिखाई नहीं देती।


जो आकाशीय पिंड हमें दिखाई देते हैं उनमें से अधिकांशत: तारे हैं किन्तु साथ ही आकाश में हमें सौर मंडल के सभी ग्रह भी दिखाई देते हैं। दोनों में अन्तर यह है कि तारे ग्रहों के सापेक्ष पृथ्वी से बहुत दूर हैं। इतने दूर कि उन्हें हम सौर मंडल के सापेक्ष लगभग स्थिर मान सकते हैं। तारों के सापेक्ष ग्रहों की गति स्पष्ट रूप से उसी प्रकार देखी जा सकती है जैसे स्थिर वृक्षों के सापेक्ष रेलगाड़ी की गति पहचानी जा सकती है।इस गुम्बद रूपी द्वि-आयमी आकाश का जो दृश्य हमें दिखाई देता है वह ज्यामितीय भाषा में १८० अंश (180 degree) दृश्य है।


पूर्ण द्वि-आयामी दृश्य ३६० अंश दृश्य है। इस पूर्ण दृश्य को ज्योतिष ने १२ राशियों में बाँटा है। इस हिसाब से हर राशि के हिस्से में ३० अंश आते हैं।

इन १२ राशि खण्डों की पहचान आकाश में स्थिर रूप से दृश्यमान तारों की विभिन्न आकृतियों से की गयी है। समझने के लिये राशियों को आप १ से १२ खंड समझ लीजिये जो आकाश के ३६० अंशों को १२ बराबर भागों में बाँटते हैं। सौर मंडल के नव ग्रह इन १२ राशियों के सापेक्ष गतिमान दिखाई देते हैं। ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति की गणना इन १२ राशियों के सापेक्ष होती है। उदाहरणार्थ जब ज्योतिष में कहते हैं कि बुध (mercury) कन्या राशि में प्रवेश कर रहा है इसका अर्थ यह है कि बुध ३६० अंश के उस ३० अंश में प्रवेश कर रहाहै जिसे कन्या राशि का नाम दिया गया है।


मान लीजिये कि आप किसी ऐसे कक्ष में बैठे हैं जो गोल है। इस कक्ष की दीवारें ३६० अंश का प्रतीक हैं जिन्हें १२ खण्डों में बाँटकर उनपर १२ राशियों के नाम लिखे हैं। आप इस कक्ष के केन्द्र में एक कुर्सी पर बैठे हैं जो अपनी धुरी पर घूम रही है और एक चक्कर २४ घण्टे मेंलगाती है। उसी प्रकार जैसे कि पृथ्वी लगाती है। मान लीजिये कि इस कुर्सी पर बैठकर बिना गर्दन घुमाये आपको आपको एक बार में १८० अंश का दृश्य दिखाई देता है। अब कल्पना कीजिये कि आपके और इस गोल कमरे की दीवारों के बीच में ९ ग्रह गतिमान हैं। आपको हर ग्रह कमरे की दीवारों पर चित्रित किसी न किसी राशि की पृष्ठभूमि में दिखाई देगा। इस प्रकार हर ग्रह की स्थिति की गणना संबन्धित राशि के सापेक्ष की जा सकती है।


हर ग्रह की स्थिति किसी न किसी राशि के ३० अंशों के सापेक्ष नापी जाती है। यह ग्रहों की गति और स्थिति की गणना का मूल सिद्धान्त है।


वैज्ञानिक सिद्धान्त की चर्चा फिर कभी। आज के लिये इतना ही।

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