shabd-logo

मेरी मधुशाला

15 जुलाई 2017

195 बार देखा गया 195

कभी जो अधरों से पिलायी थी तुमने प्रेम हाला

अभी भी उस खुमारी में झूमु मैं होकर मतवाला

ना मंदिर में ना मस्जिद में दिखे मुझे दुनिया बनाने वाला

मेरा तो तू ही रब तू ही मेरा शिवाला

मधु रस में डूबे सभी पर तू ही मेरा प्रेम प्याला

तू ही साकी मेरा तुम ही हो हाला

जीवन में आयी हो तुम बन मेरी मधुशाला


उलझनों में जकड़ा था मन निष्प्राण सा था तन

पिंजरे की कैद सा था ये जीवन

आशाओं के परो को बांधे हुए कट रहा था यौवन

कमी कुछ नहीं थी फिर भी एक प्यास थी

मुक्त हो गया इन ज़ंजीरो से जब तुम मेरे पास थी

अब नहीं डराता मुझको काल विकराला

जब से पिया है तेरे प्रेम का हाला

जीवन में आयी हो तुम बन मेरी मधुशाला


प्रेम का प्यासा मैं ही नहीं, है वो भी ऊपरवाला

वैदही बिना, बिना देह का हो गया था तारने वाला

कृष्ण के विरह में निष्प्राण हो गयी थी वृषभाना

शबरी के झूठन में घुली थी यही प्रेम हाला

विदुरे के खिलाई थी यही कदली छाला

सुदामा के अक्षतों में भरी थी यही अक्षय हाला

कृष्णा ने कृष्ण के घाव पर लगाया था यही मधु हाला

महारास की हर रात आज भी बरसती है ये हाला

इसी तरह तुम भी बन आयी हो मेरी मधुशाला



नन्द किशोर कुमावत की अन्य किताबें

1

अभी हारा नहीं हूँ

14 जुलाई 2017
0
0
0

मैं अभी रुका हूँ थोड़ा थमा हूँ पर हारा नहीं हूँ नज़र अभी भी मुकाम पर है पैरो के छालो को देखा नहीं हूँ पीठ पर कई खंजर लहू बहा रहे है पर आखों से आंसू नहीं छलका हूँ विचारो की कश्मकश में उलझा है मन पर आस को छोड़ा नहीं हूँ निष्प्राण सा है तन पर दिल क

2

मेरी मधुशाला

15 जुलाई 2017
0
0
0

कभी जो अधरों से पिलायी थी तुमने प्रेम हाला अभी भी उस खुमारी में झूमु मैं होकर मतवाला ना मंदिर में ना मस्जिद में दिखे मुझे दुनिया बनाने वाला मेरा तो तू ही रब तू ही मेरा शिवाला मधु रस में डूबे सभी पर तू ही मेरा प्रेम प्याला तू ही साकी मेरा तुम ही हो हाला ज

3

मेरा शहर

16 जुलाई 2017
0
0
0

टूटते परिवारों का; बढ़ते मकानों काज़िंदा लाशो का; घटते शमशानों कामरते अरमानो का; भूलते अहसानो काबिछड़ते दोस्तो का; बढ़ते अनजानो काशहर हुआ मेरा कब्रिस्तानों कावक्त न होने का रोना है; वक्त पर रोना नही आताअजनबी तो बहुत मिलते है; अपना कोई मिलने नही आतासमय तो गुजर जाता है; सुकून कभी नही आताआते तो बहुत है यहा

4

अब नहीं हैं

17 जुलाई 2017
0
1
1

सावन तो हर साल है आता; अब बस पेड़ो पर उसके झूले नही हैपानी तो अब भी है बहता; बस उसमें कागज की किश्तियाँ नही हैबचपन तो अभी भी है खिलखिलाता; बस उसमें मासूमियत नही हैकहानियां तो अभी भी है सुनाने को; बस उसमें यादें बसी नही हैकहीं गुजर हुआ आज भी है साथ; उससे मुलाकात का वक्त नही हैज़िन्दगी गुज़र तो रही है; ब

5

मेरा मरना

18 जुलाई 2017
0
0
0

ख्वाबों का सिलसिला खत्म हुआ; आज में खुद ही ख्वाब हुआज़िंदा लाशो को छोड़; आज कब्रिस्तान में आबाद हुआबैठा अब सोचता हूं कि कैसे जीवन बर्बाद हुआमरा नही अभी तो धड़कनों का साज; ना-साज हुआमरना अभी शेष है; अभी कुछ धागे टूटना बाकी हैकुछ आंखों में अभी; मेरी यादों का पानी बाकी हैघरौंदे में अभी; रिश्तों के कुछ तिन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए