shabd-logo

भाषा और शब्द

15 जुलाई 2017

523 बार देखा गया 523

मस्तिष्क में वो शब्द जो अर्थों के साथ भरे हुए हैं उनका ही प्रयोग हम संवाद के लिए, लेखन के लिए, विचार व्यक्त करने के लिए करते हैं, यह आपकी बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है कि आप अपनी शब्दों की तिजोरी से कैसे और कहाँ उन शब्दों का प्रयोग करने में कुशल हैं इस कुशलता में कारीगरी जतनी कम होती है भाषा उतनी ही सहज हृदय स्पर्शी और भावगम्य हो प्रवाहमान बनती है.ऐसे कुछ आपके करीबी अवश्य होंगे जिनकी भाषा इतनी कोमलता लिए होती है कि उनके हर शब्द के संग लगता है कि फूल झर रहें हों. सोंचता हूँ उनके स्नायु तंत्र के तंतु मूलाधार से सहश्रार तक कहीं न कहीं लय अवश्य लिए होंगे.


अगर यह लय अनुनाद की अवस्था को प्राप्त करता है तो चेतना ब्रम्ह से एक रूप हो शब्द ब्रम्ह के लोक अवश्य ले जाती है . अतः वह प्रथम प्रयोगशाला जिसमे शब्द रोपण का कार्य प्रारंभ किया जाता है अपनी चेतना का घर है, जिसकी प्रमुख अभियंता नवजात शिशु की माँ होती है, उसके नीचे पिता, दादी, बाबा, बुआ, मौसी, चाची, ताई व मामी फिर जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है शब्द मस्तिष्क में बनी कोठरी में मित्र से भरते जाते है वैसे वैसे बच्चे के मस्तिष्क में भाषा शोधन का कार्य गति पकड़ लेता है. इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि घर के सदस्यों द्वारा जितने सरल सहज व् शुद्ध शब्दों का प्रयोग किया जायेगा उस परिवार की भाषा उतनी ही परिमार्जित और स्पर्शी होगी. इसी के साथ यह अति आवश्यक है कि परिवार के सदस्यों में सहज सामजस्य हो उनकी प्रकृति में घोर आत्मीयता और दर्शन में आस्था हो.


क्यूंकि शब्द चेतना का quantum रूप है और चेतना आत्मा की चेरी. दूसरी प्रयोगशाला का नाम है स्कूल, जहाँ बालक उन सब शब्दों की आकाश गंगा से परिचय पाता है जिससे जीवन को गति प्राप्त होने वाली है, इसलिए आवश्यक हो जाता है कि शिक्षक अपने विषय का मर्मज्ञ हो प्रबंधक प्रकृति उपासक और राज्य व्यवस्था ज्ञान की चेरी हो तब राज्य उन तेजस्वी सपूतो को जन्म देती है जिनके सुयश संपन्न कीर्ति से धरती माँ गद गद होती है प्रफुल्लित होती है वही माँ शस्य श्यामला सुजला और सुफला कहलाती है.

वन्दे मातरम् .......

डॉ. संदीप कुमार शुक्ल

किताब पढ़िए