कारगिल की कटु यादें भले ही अक्सर हमारी आंखें नम कर देती हो, लेकिन इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने वीरता की एक ऐसी मिसाल कायम की है, जिसे समूचा विश्व याद रखेगा. इस युद्ध में उत्तर प्रदेश स्थित बुलंदशहर के 19 साल के एक लड़के ने भी भाग लिया था. कहते हैं उसने दुश्मन के साथ-साथ इस यु्द्ध में मौत को मात दे दी थी. जी हां यहां बात हो रही है सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र पाने वाले नायब सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव की:
विरासत में मिला था देश सेवा का भाव
10 मई, 1980 (Link in English) में पैदा हुए योगेन्द्र का बचपन अनुशासन में बीता. पिता करन सिंह यादव भी सेना से रिटायर्ड थे. वह 1965 और 1971 की लड़ाइयों का हिस्सा भी रहे थे. इस कारण बचपन से ही योगेन्द्र सेना में भर्ती होने का सपना देखने लगे थे. वह अक्सर पिता के साथ बैठकर सेना की वीरता के किस्से सुना करते थे. बड़े होते ही उन्होंने अपना यह अरमान पूरा किया. महज सोलह साल की उम्र में वह सेना का हिस्सा बनने में सफल रहे थे.
1996 उनके लिए खुशखबरी लेकर आया था. गांव के डाकिया बाबू उनके सेना में भर्ती होने का पैगाम लाये थे. खुशी-खुशी वह पिता का आशार्वाद लेते हुए अपनी ट्रेनिग के लिए निकल गये.
शादी के पंद्रह दिन बाद ही कारगिल
ट्रेनिंग के कुछ साल बाद ही योगेन्द्र के घर शादी की शहनाई बज गई. 1999 में वह शादी के बंधन में बंध गये. नई दुल्हन के साथ उन्हें 15 दिन ही हुए थे कि तभी सेना मुख्यालय से एक आदेश आया. उसमें लिखा था कि आपको तुरंत अपना सामान पैक करके जल्दी से जल्दी कारगिल पहुंचना है. यह आदेश योगेंद्र के लिए सहज नहीं था. एक पल के लिए उनके मन में परिवार का ख्याल आया, लेकिन इतनी जल्दी देश के लिए लड़ने का मौका मिलने से वह उत्साहित थे. वह वापस जम्मू कश्मीर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनकी बटालियन 18 ग्रिनेडियर द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची पहाड़ी तोलोलिंग पर लड़ाई लड़ रही है.
उन्हें अपनी टुकड़ी के साथ हजारों मीटर ऊपर बैठे दुश्मन को मार गिराने का जिम्मा सौंपा गया. उन्होंने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू ही किया था कि दुश्मन ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरु कर दी. इस हमले में उनके ढ़ेर सारे साथी शहीद हो गये थे. वह रुकना चाहते थे, लेकिन अपने साथियों के लिए आंसू बहाने तक का समय उनके पास नहीं था. चूंकि इस रास्ते में दुश्मन सतर्क था, इसलिए उनके अफसर ने ऐसे रास्ते से उन तक पहुंचने का प्लान बताया, जिसके बारे में दुश्मन कभी सोच भी नहीं सकता था. उनको अब बिल्कुल खड़ी चट्टान की मदद से ऊपर जाना था.
दुश्मन से हुआ आमना-सामना तो…
कुछ घंटों में ही वह वहां तक पहुंचने में कामयाब रहे. पहुंचते ही उन्होंने दुश्मनों पर धावा बोला और उनके बंकरों को तबाह कर दिया. यह देखकर कुछ दूर पर मौजूद दूसरे बंकर में छिपे दुश्मनों ने ग्रेनेड फेंकने शुरु कर दिए. इस गोलाबारी में उनके कई सारे साथी शहीद हो गए. योगेन्द्र की टुकड़ी में बहुत कम लोग बचे हुए थे, इसलिए तय किया गया कि कोई अभी फायरिंग नहीं करेगा. वह सही समय का इंतजार करना चाहते थे.
कुछ देर बाद जब दुश्मन को लगा कि योगेन्द्र की पूरी टीम खत्म हो गई है तो वह थोड़े सुस्त हो गये और अपनी तसल्ली के लिए आगे बढ़े. इस मौके का फायदा उठाकर योगेन्द्र समेत सभी भारतीय सैनिकों ने दुश्मन पर हमला कर दिया. इस हमले में इत्तेफाक से एक पाकिस्तानी भाग निकला, जो आगे मुसीबत का सबब बना.
दुश्मन ने छिपकर किया वार, और…
बचकर भागे हुए पाकिस्तानी सैनिक ने योगेन्द्र की टुकड़ी की जानकारी अपने साथियों को दे दी. उसने बताया कि किस तरह भारतीय सैनिक तेजी से उनकी ओर बढ़ रहे हैं. पाकिस्तानी अफसर ने यह सुनते हुए तुरंत उन्हें रोकने का आदेश दिया. वह पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़े. छिपकर उन्होंने योगेन्द्र और उनके साथियों के पास आने का इंतजार किया. जैसे ही वह पास पहुंचे उन्होंने गोलियों की बौछार शुरु कर दी.
योगेन्द्र के सारे साथी शहीद हो चुके थे. उनको भी कई गोलियां लगी हुई थी. वह लगभग खत्म हो चुके थे, लेकिन उनकी सांसे अभी चल रही थी. दुश्मन को पास आता देख उन्होंने मरने का नाटक किया. दुश्मन उन्हें मरा समझकर आगे बढ़ गया. शायद दुश्मन की यही सबसे बड़ी गलती थी.
दुश्मन पर योगेन्द्र का पलटवार
योगेन्द्र ने मौका पाकर पास में पड़े ग्रेनेड से दुश्मन को अचम्भे में डाल दिया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया. ढ़ेर सारे पाकिस्तानी इसका शिकार हुए. बाकियों को योगेन्द्र ने अपनी बंदूक से रोका. उन्होंने चतुराई से जगह बदल-बदल कर दुश्मन पर गोलियां बरसाई. इससे दुश्मन को यह लगा कि भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी वहां तक पहुंच गई है. इस डर से वह वहां से भाग निकले.
इस मुठभेड़ में योगेन्द्र बुरी तरह घायल हो चुके थे. वह चलने की हालत में नहीं थे. उनको लग रहा था कि उनके पास वक्त बहुत कम था.
खून से लथपथ थे, पर हौंसला नहीं टूटा
योगेन्द्र के सिर से खून बह रहा था. उनका बायाँ हाथ भी काम नहीं कर रहा, पर उन्होंने हौंसला बनाए रखा. उन्होंने दूसरी टुकड़ी का इंतजार न करते हुए, पहाड़ी में खिसकना शुरु कर दिया. जल्द ही वह लहू-लूहान हालत में नीचे अपने साथियों के पास पहुंचने में सफल रहे. उनकी हालत देख सभी की आंखें खुली की खुली रह गई थी. सभी योगेन्द्र की बहादुरी को सलाम कर रहे थे. इससे पहले कि उन्हें उपचार के लिए बेस कैंप में भेजा जाता उन्होंने पाकिस्तानी दुश्मन की सही जानकारी सेना को सौंपी. इसके बाद दुश्मन को मार गिराया गया और टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा लहराया.
इस युद्ध में योगेंद्र इतने ज्यादा घायल हो गये थे कि उन्हें ठीक होने में कई महीने लग गये थे. वर्तमान में वह 18 ग्रेनेडियर्स में देश की सेवा कर रहे हैं.
भारत सरकार उन्हें उनके अदम्य साहस, वीरता और पराक्रम के लिए परमवीर चक्र (Link in English) से सम्मानित कर चुकी है. बताते चलें कि वह सबसे कम उम्र (19) में ‘परमवीर चक्र’ पाने वाले सैनिक हैं. इतनी कम उम्र में इतिहास रचने वाली उनकी वीरता की कहानी को आने वाला वक्त हमेशा याद रखेगा. योगन्द्र के जज्बे को सलाम…