समाज में अक्सर सुनने और देखने को मिलता है की बेटे को बेटे की तरह, बेटी को बेटी की तरह,पिता को पिता की तरह,माता को माता की तरह , सास-ससुर को सास-ससुर की तरह और तो और दामाद को दामाद की तरह प्यार,सम्मान और आदर देते है लेकिन जब बात बहू की आती है तो बहू को बेटी की तरह प्यार करने की बात होने लगती है।
जब हम समाज के अन्य रिश्तों की तुलना एक दूसरे से नही करते तो बहू और बेटी के रिश्तों की तुलना क्यों?
जब हम किसी की तुलना किसी और से करते है तो उसके अस्तित्व पर प्रहार करते है जिसकी तुलना की जाती है। बहू बेटी जैसी होनी चाहिए यह वाक्य बहू के अस्तित्व और पहचान पर एक सवाल बनकर खड़ा होता है , कि क्या समाज में बहू पद की अपनी कोई गरिमा नही? यदि ऐसा नही है तो बेटी से बहू की तुलना क्यों और यदि है तो ऐसा क्यों?
क्या बहू होने में अपनी कोई खासियत नही ,जो बेटी होने में है। हमारे इस सो-कॉल्ड मॉडर्न समाज में क्या बहू होना इतना बुरा है ?
लोग ये कहते है कि हम बहू को बेटी जैसा प्यार देंगे ! तो इसका मतलब की बहू जैसा प्यार होता ही नही या फिर देने लायक ही नही होता।
लड़के की शादी के पहले खूब हो-हल्ला कि बेटे के लिए एक संस्कारी और आदर्श बहू चाहिए जो घर के साथ साथ बेटे को भी सम्भाले। आने वाली बहू के लिए नया घर, घर के पर्दे से लेकर पेंट तक सारी चीजें बहू के पसन्द की, हनीमून के लिए कहाँ जाना है और तमाम चीजें शादी के पहले ही सोच ली जाती है। जब हम इतना सारा इंतजाम आने वाली प्यारी बहू के लिए करते है तो अचानक से हमारा बहू के प्रति प्यार बेटी के रुप में कैसे बदल जाता है?
न जाने इन बेबुनियादी और घटिया सोच वालो की बहू के प्रति सोच कब बदलेंगी, न जाने उन्हें कब समझ में आएगा की बहू बहू होती है और बेटी बेटी।
लोगों को ये समझना होगा की बेटी का बचपन अपने घर में गुजरता है उसका रोना, हँसना, बदमाशी करना,घर को सजाना, जिद करना ये सारी बाते घर के आंगन में ही छूट जाती है और बहू ये सारी बाते अपने घर छोड़कर आप के घर में एक नए अनुभव के साथ प्रवेश करती है ! जब इन दोनों में इतना फर्क है तो इनके प्रति प्यार में भी फर्क होना चाहिए।
जिस तरह बेटी स्वम् में सम्पूर्ण है उसी तरह बहू भी स्वम् में सम्पूर्ण है ! दोनों की अपनी अपनी हस्ती और पहचान है और सबसे बड़ी बात समाज और परिवार में दोनों पदों का अपना अपना विशेष महत्व है। जितना सम्मान और प्यार बेटी को बेटी की तरह दिया जाता है उतना ही सम्मान और प्यार बहू को बहू की तरह दिया जाना चाहिए।
बेटी अधिकतम सत्ताईस साल में घर से विदा हो जाती है लेकिन बहू अपनी अंतिम सांस तक आपके घर और परिवार का बखूबी ख्याल रखती है।
जब इन दोनों के कर्तव्यों में इतना बड़ा फर्क है तो हमारे समाज को भी इनके प्रति प्यार में फर्क रखना पड़ेगा तभी समाज में दोनों का आदर-सम्मान बरकार रहेगा, दोनों अपने अपने पदों पे सशक्त होंगी जिससे हमारे समाज में महिला सशक्तिकरण को एक नई पहचान मिलेगी।
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©गौरव मौर्या