पटना। कल शाम अचानक एक ऐसी खबर आई जिसने देश की राजनीति खासकर बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शाम साढ़े छ: बजे के अचानक राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप दिया। हालांकि तब तक नहीं पता था कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। लेकिन आज जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर एक बार फिर सीएम की कुर्सी संभाल ली है तो सबकुछ लगभग साफ हो गया है।
खास बातें-
- हत्या, आर्म्स ऐक्ट के आरोपी हैं नीतीश कुमार
- सुशील मोदी के साथ 11,412 करोड़ के गबन का भी है आरोप
- साल 2010 में सरकारी धन की अनियमितता का लगा है आरोप
- साल 1991 में हत्या का लग चुका है आरोप
नीतीश कुमार ने लालू यादव और उनके परिवार पर लगे भ्रष्टाचार पर लगे आरोपों के बाद नैतिकता की बात कहते हुए इस्तीफा देने की बात कही। अगर आरोपों की बात करें तो नीतीश कुमार भी कई बड़े मामलों में आरोपी रह चुके हैं। हत्या, आर्म्स एक्ट और साल 2010 में मुख्यमंत्री रहते हुए उनके और उस समय उप-मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी पर धोखाधड़ी से निकासी और भ्रष्टाचार के अनियमितताओं को लेकर 11,412 करोड़ रुपए गबन करने का आरोप लगा था।
साल 2010 में शिकायतकर्ता मोहन कुमार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और 45 अन्य लोगों को कल्याणकारी योजनाओं के निष्पादन के लिए जिम्मेदार विभिन्न विभागों में अनियमितताओं में शामिल होने का आरोप लगाया था। इस गंभीर मामले की स्पेशल विजिलेंस कोर्ट में सुनवाई चल रही थी।
शिकायत दर्ज करवाने वाले मोहन कुमार ने नीतीश कुमार और सुशील मोदी समेत 45 नेताओं को वेलफेयर स्कीन के पैसे हड़पने का आरोपी बनाया था। मोहन कुमार ने शिकायत में कहा था कि मनरेगा, वाटर रिसोर्स, ह्यूमन रिसोर्स, हेल्थ डिपार्टमेंट, सिंचाई विभाग, रोड डिपार्टमेंट, वित्त विभाग इन सभी विभागों में घोटाले वर्ष 2002 से लेकर 2008 के बीच किए गए थे। घोटाले में मुख्य रुप से चीफ मिनिस्टर रहे नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम रहे सुशील मोदी को आरोपी बनाया गया है।
वहीं आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने भी कल नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद पटना में एक प्रेस कांफ्रेंस करके साल 1991 के नवंबर महीने में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव के दौरान सीताराम सिंह नामक व्यक्ति की हत्या का जिक्र किया, इस हत्याकांड में नीतीश कुमार बतौर अभियुक्त नामजद हैं।
आरजेडी सुप्रीमो ने मीडिया के सामने कुछ दस्तावेज भी दिखाते हुए कहा कि खुद को ईमानदार बताने वाले नीतीश कुमार को पता था कि वह अब इस मामले में घिरने वाले हैं। इसी डर से उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और दोबारा बीजेपी के साथ जाने का मन बना लिया। लालू ने नीतीश पर हमला करते हुए कहा, ‘भ्रष्टाचार से बड़ा अपराध अत्याचार है।’
आपको बता दें कि साल 1991 में पंडारख थानाक्षेत्र में पड़ने वाले ढीबर गांव के रहने वाले अशोक सिंह ने नीतीश कुमार सहित कुछ अन्य लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था। अशोक सिंह ने दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया था कि बाढ़ सीट पर मध्यावधि चुनाव में वह अपने भाई सीताराम सिंह के साथ वोट देने मतदान केंद्र गए थे, तभी इस सीट से जनता दल उम्मीदवार नीतीश कुमार वहां आ गए। उनके साथ मोकामा से विधायक दिलीप कुमार सिंह, दुलारचंद यादव, योगेंद्र प्रसाद और बौधु यादव भी थे।
सभी लोग बंदूक, रायफल और पिस्तौल से लैस होकर आए थे। फिर अचानक नीतीश कुमार ने मेरे भाई को जान से मारने की नीयत से फायर किया, जिससे घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई। एफआईआर के मुताबिक, इस घटना में शिकायतकर्ता के अलावा चार अन्य लोग भी घायल हो गए। नीतीश के खिलाफ दर्ज इस FIR का मामला वर्ष 2009 में दोबारा उछला था।
1 सितंबर 2009 को बाढ़ कोर्ट के तत्कालीन अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मामले में ट्रायल शुरू करने का आदेश दिया था। इस पर फिर नीतीश कुमार ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दर्ज कर मामले को रद्द करने की मांग की थी। इस पर हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के आदेश पर स्टे लगा दिया और इस हत्याकांड में नीतीश के खिलाफ चल रहे सभी मामलों को उसके पास स्थानांतरित करने को कहा था। हालांकि हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद इन 8 वर्षों के दौरान इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई।
साभार : नेशनल दस्तक