क्या कहा, फिर से कहो,
हम नहीं सुनते तेरी...
चुप न रहो, कहते रहो,
सुकूं है, अच्छा लगता है,
पर जिद न करो सुनाने की...
तुम्हारे साथ भी तन्हा हूं,
तुम तो न समझोगे मगर,
साथ रहो, चुप न रहो, कहते रहो...
कठिन तो है यह राहगुजर,
शजर का कोई साया भी नहीं,
थोड़ी दूर मगर साथ चलो...
भीड़ बहुत है, लोग कातिल हैं,
सब गुमशुदा हैं, राह कोई नहीं,
पास रहो, हाथ पकड़ तो लो...
मेरे होके रहो कहां जिद है मेरी,
मैं भी कहां अपने से आसानां हूं,
साथ रहो, कहते रहो, अच्छा लगता है...!