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बग्वाल मेला

8 अगस्त 2017

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चम्पावत के देवीधूरा नामक जगह पर मां वाराही का प्रसिद्ध मन्दिर है. हर साल रक्षाबन्धन के दिन यहां विशाल मेला लगता है. इस मेले का मुख्य आकर्षण दो गुटों के बीच होने वाला पाषाण युद्ध है. कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां मानव बलि का प्रचलन था. एक बार किसी वृद्ध महिला के इकलौते पुत्र की बलि होनी थी तो महिला ने माता की आराधना करके उन्हें इस बात के लिये मनालिया कि हर साल पत्थर युद्ध के द्वारा माता को एक मानव के रक्त की मात्रा चढायी जायेगी. इस तरह यह परंपरा हर साल अनवरत रूप से चली आ रही है. इस युद्ध मेंशामिल होने वाले लोगों को कई दिन पहले से विशेष रूप से शुद्ध खान-पान और आचरण का पालन करना पङता है.इस विषय पर अधिक जानकारी इस टापिक पर उपलब्ध करायी जायेगी.


पंकज सिंह महर:बग्वाल मेला अपने पाषाण युद्ध के कारण प्रसिद्ध है, यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसी दिन रक्षाबंधन का भी त्यौहार होता है। इस पर हम बाद में चर्चा करेंगे, पहले हम मां वाराही देवी के बारे में जानते हैं-मां वाराही देवी(देवीधूरा)देवीधूरा में वाराही देवी मंदिर शक्तिके उपासकों और श्रद्धालुओं के लिये वह पावन और पवित्र स्थान है, जहां पहुंचते ही अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। दैविक शक्ति से यहां पहुंचने वाले लोगों को रोग, दोष व विपदाओं से निजात मिल जाती है। यह क्षेत्र देवी का उग्र पीठ माना जाता है और इसे पूर्णागिरी कीतरह ही माना जाता है। समुद्र की सतह से लगभग २००० फीट की ऊंचाई पर स्थित इस प्राचीन एवं ऎतिहासिक स्थल से कई पौराणिक कथायें भी जुड़ी हैं।चन्द राजाओं के शासन काल में इस सिद्ध पीठ में चम्पा देवी और ललत जिह्वा महाकाली की स्थापना की गई थी। तब लाल जीभ वाली महाकाली को महर और फर्त्यालो द्वारा बारी-बारी से प्रतिवर्ष नियमित रुप से नरबलि दी जाती थी।


बताया जाता है कि रुहेलों के आक्रमण के समय कत्यूरी राजाओं द्वारा वाराही की मूर्ति को घने जंगल के मध्य एक भवन में स्थापित कर दिया गया था। धीरे-धीरे इसके चारोम ओर गांव स्थापित हो गये और यह मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र बन गया। बताया जाता है कि पहाड़ी के छोर पर खेल-खेल में भीम ने शिलायें फेंकी थी, ग्रेनाइट की इन विशाल शिलाओं में से दो शिलायें आज भी मन्दिर के निकट मौजूद हैं। जिनमें से एक को राम शिला कहा जाता है, इस पर’पचीसी’ नामक जुए के चिन्ह आज भी विद्यमान हैं। जन श्रुति है कि यहां परपाण्डवों ने जुआ खेला था, उसी के समीप दूसरी शिला पर हाथों के भी निशान हैं।पंकज सिंह महर:इक्कीसवीं सदी में पाषाण युद्ध-बी०बी०सी० संवाददाता शालिनी जोशी की एक रिपोर्टदुनिया में जब इंसानी ज़िंदगी शुरू हुई तो इंसान के हाथ में एक पत्थर था. पेट भरने और अस्तित्व को बनाए रखने के संघर्ष के दरम्यान इंसान ने उस पत्थर को हथियार बनाया और जल्द ही औज़ार भी. आदमी और पत्थर की ये दोस्ती सभ्यताओं के विभिन्न दौर से गुजरती हुई इक्कीसवीं सदी के इस मशीनी युग में भी क़ायम रह सकती है- इस बात पर यकीन नहीं आता.लेकिन भारत के पहाड़ी राज्य उत्तरांचलके चंपावत ज़िले के देवीधुरा कस्बे में आज भी आदिम सभ्यता जीवंत हो उठती है जब लोग ‘पाषाण युद्ध’ का उत्सव मनाते हैं. एक-दूसरे पर निशाना साधकर पत्थर बरसाती वीरों की टोली, इन वीरों की जयकार और वीर रस के गीतों से गूंजता वातावरण, हवा में तैर रहे पत्थर ही पत्थर और उनकी मार से बचने के लिये हाथों में बांस के फर्रे लिये युद्ध करते वीर.


आस-पास के पेड़ों, पहाड़ों औऱघर की छतों से हजारों लोग सांस रोके पाषाण युद्ध के इस रोमांचकारी दृश्य को देख रहे हैं. कभी कोई पत्थर की चोट सेघायल हो जाता है तो फौरन उसे पास ही बने डॉक्टरी कैंप में ले जाया जाता है. युद्धभूमि में खून बहने लगता है, पत्थर की बौछार थोड़ी देर के लिये धीमी जरूर हो जाती है लेकिन ये सिलसिला थमता नहीं. हर साल हजारों लोग दूर-दूर से इस उत्सव में शामिल होने आते हैं.आस-पास के गांवों में हफ़्तों पहलेसे इसमें भाग लेने के लिये वीरों और उनके मुखिया का चुनाव शुरू हो जाता है. अपने-अपने पत्थर और बांस की ढालें तैयार कर लोग इसकी बाट जोहने लगते हैं. चमियाल टोली के मुखिया गंगा सिंह बिष्ट कहते हैं,"सब चाहते हैं कि उनकी टोली जीते लेकिन साथ ही जिसका जितना खून बहता है वो उतना ही ख़ुशक़िस्मत भीसमझा जाता है. इसका मतलब है कि देवी ने उसकी पूजा स्वीकार कर ली."बग्वाल यानी पाषाण युद्ध की ये परंपरा हजारों साल से देवीधूरा में चली आ रही है.


मान्यता है कि बाराही देवी को मनाने के लिए ही ये खेल किया जाता है. पहले यहाँ आदमी की बलि दी जाती थी. लेकिन जब एक वृद्धा के इकलौते पोते की बारी आई तो उसने उसे बचाने के लिये देवी से प्रार्थना की. देवी उसकी आराधना से खुश हुई और उसके पोते को जीवनदान दिया लेकिन साथ ही शर्त रखी किएक व्यक्ति के बराबर ख़ून उसे चढ़ाया जाए. तभी से पाषाण युद्ध में खून बहाकर देवी को प्रसन्न किया जाता है." पुजारी जयदत्तकिंवदंतीमंदिर के पुजारी जयदत्त इसके महत्त्व के बारे में बताते हैं, "पहले यहाँ आदमी की बलि दी जाती थी. लेकिन जब एक वृद्धा के इकलौते पोते की बारी आई तो उसने उसे बचाने के लिये देवी से प्रार्थना की. देवी उसकी आराधना से खुश हुई और उसके पोते को जीवनदान दिया लेकिन साथ ही शर्त रखी कि एक व्यक्ति के बराबर ख़ून उसे चढ़ाया जाए. तभी से पाषाण युद्ध में खून बहाकर देवी को प्रसन्न किया जाता है." आज भी जब पुजारी संतुष्ट हो जाता है कि एक व्यक्ति के बराबर ख़ून बह गया तभी बग्वाल का समापन होता है. पुजारी के शँखनाद के साथ ही जैसे ही इस युद्ध का समापन होता है सभी टोलियों केलोग एक-दूसरे से गले मिलकर खुशी मनाते हैं और घायलों की कुशलक्षेम पूछते हैं.सैलानियों के बीच भी बग्वाल का आकर्षण बढ़ता जा रहा है.दिल्ली,मुंबई,हरियाणा,पंजाब के साथ-साथ बड़ी संख्या में विदेशी भी इस अनोखे युद्ध को देखने इस समय यहां आते हैं.यूरोप से आईं कैथलीन कहती हैं," पत्थरों की इस तूफ़ानी बरसात से डर भी लगता है लेकिन सबसे ज्यादा कौतूहल की बात ये है कि लोगों को चोट आती है, गिरतेहैं लेकिन फिर इस खेल में शामिल हो जाते हैं".पंकज सिंह महर:बगवाल : देवीधुरा मेलादेवीधुरा में वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षावन्धन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है ।


मेले को ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में मत-मतान्तर हैं । लेकिन आम सहमति है कि नह बलि की परम्परा के अवशेष के रुप में ही बगवाल का आयोजन होता है ।लोक मान्यता है कि किसी समय देवीधुरा के सघन बन में बावन हजार वीर और चौंसठ योगनियों के आतंक से मुक्ति देकर स्थानीय जन से प्रतिफल के रुप में नर बलि की मांग की, जिसके लिए निश्चित कियागया कि पत्थरों की मार से एक व्यक्ति के खून के बराबर निकले रक्त से देवी को तृप्त किया जायेगा, पत्थरों की मार प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा को आयोजित की जाएगी । इस प्रथा को आज भी निभाया जाता है । लोक विश्वास है कि क्रम से महर और फव्यार्ल जातियों द्वारा चंद शासन तक यहाँ श्रावणी पूर्णिमा को प्रतिवर्ष नर बलि दी जाती थी ।इतिहासकारों का मानना है कि महाभारत में पर्वतीय क्षेत्रों में निवास कर रही एक ऐसी जाति का उल्लेख है जो अश्म युद्धमें प्रवीण थी तथा जिसने पाण्डवों की ओर से महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । ऐसी स्थिति में पत्थरों के युद्ध की परम्परा का समय काफी प्राचीन ठहरता है । कुछ इतिहासकार इसे आठवीं-नवीं शती ई. से प्रारम्भ मानते हैं । कुछ खास जाति से भी इसे सम्बिन्धित करते हैं ।


बगवाल को इस परम्परा को वर्तमान में महर और फव्यार्ल जाति के लोग ही अधिक सजीव करते हैं । इनकी टोलियाँ ढोल, नगाड़ो के साथ किंरगाल की बनी हुई छतरी जिसे छन्तोली कहते हैं, सहित अपने-अपनेगाँवों से भारी उल्लास के साथ देवी मंदिर के प्रांगण में पहुँचती हैं । सिर पर कपड़ा बाँध हाथों में लट्ठ तथा फूलों से सजा फर्रा-छन्तोली लेकर मंदिर के सामने परिक्रमा करते हैं । इसमें बच्चे, बूढ़े, जवान सभी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं । बगवाल खेलने वाले द्यौके कहे जाते हैं । वे पहले दिन से सात्विक आचार व्यवहार रखते हैं । देवी की पूजा का दायित्व विभिन्न जातियों का है । फुलारा कोट के फुलारा मंदिर में पुष्पों की व्यवस्था करते हैं । मनटांडे और ढ़ोलीगाँव के ब्राह्मण श्रावण की एकादशी के अतिरिक्त सभी पर्वों� पर पूजन करवा सकते हैं । भैंसिरगाँव के गढ़वाल राजपूत बलि के भैंसों पर पहला प्रहार करते हैं ।बगवाल का एक निश्चित विधान है । मेले के पूजन अर्चन के कार्यक्रम यद्यपि आषाढि कौतिक के रुप में एक माह तक लगभग चलते हैं लेकिन विशेष रुप से श्रावण माह की शुक्लपक्ष की एकादशी से प्रारम्भ होकर भाद्रपद कष्णपक्ष की द्वितीया तिथि तक परम्परागत पूजन होताहै ।


बगवाल के लिए सांगी पूजन एक विशिष्ट प्रक्रिया के साथ सम्पन्न किया जाता है जिसे परम्परागत रुप से पूर्व से ही सम्बन्धित चारों खाम (ग्रामवासियों का समूह) गढ़वाल चम्याल,वालिक तथा लमगडिया के द्वारा सम्पन्न किया जाता है । मंदिर में रखा देवी विग्रह एक सन्दुक में बन्द रहता है । उसी के समक्ष पूजन सम्पन्न होता है । यही का भार लमगड़िया खाम के प्रमुख को सौंपा जाता है । जिनके पूर्वजों ने पूर्व में रोहिलों के हाथ से देवी विग्रह को बचाने में अपूर्व वीरता दिखाई थी । इस बीच अठ्वार का पूजन होता है । जिसमें सात बकरे और एक भैंस का बलिदान दिया जाता है ।पूर्णिमा को भक्तजनों की जयजयकार के बीच डोला देवी मंदिर के प्रांगण में रखा जाता है । चारों खाम के मुखिया पूजन सम्पन्न करवाते है । गढ़वाल प्रमुख श्री गुरु पद से पूजन प्रारम्भ करते है । चारों खामों के प्रधान आत्मीयता, प्रतिद्वेंदिता, शौर्य के साथ बगवाल के लिए तैयार होते हैं ।द्यीकों के अपने-अपने घरों से महिलाये आरती उतार, आशीर्वचन और तिलक चंदन लगाकर हाथ में पत्थर देती हैं।(संकलित)

रेणु

रेणु

कृपया प्रकाशित पढ़े ------ गलती के लिए खेद है

10 अगस्त 2017

रेणु

रेणु

प्रिय नृपेन्द्र आपकी बहुत ही दिलचस्प जानकारी से भरपूर बग्वाल मेले पर ये सुंदर आलेख पढ़ा सबसे ज्यादा ख़ुशी हुई की शब्द नगरी ने इसे अपने मुख्य लेख के रूप में प्र्क्सषित किया बहुत बधाई आपको | मेले का हाल शब्दों में सजीव हो उठा पर मुझे बलि का प्रसंग बिलकुल अच्छा नहीं लगा | निरीह पशु पर वार करके कौन सी भक्ति का प्रदर्शन ? मैं व्यक्तिगत रूप से इसके बिलकुल खिलाफ हूँ | उत्तर भारत में सब जगह ते बंद है | पर आपका लेख बहुत अच्छा था -- लिखते रहिये -- आजकल आप खूब लोकप्रिय हो रहे हैं | सस्नेह शुभ कामना ----

10 अगस्त 2017

पूनम शर्मा

पूनम शर्मा

बहुत ही रोचक जानकारी दी है आपने , और साथ में सुन्दर कथा भी जानने को मिली. ये परम्पराएं , पूजा पाठ हमारे देश को सरे संसार से अलग करता है . जैसा आपने बताया की - भैंसिरगाँव के गढ़वाल राजपूत बलि के भैंसों पर पहला प्रहार करते हैं, बस पता नहीं क्यों इन मेलों में पशु बलि को इतना महत्त्व क्यों दिया जाता है ?

9 अगस्त 2017

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रचनाएँ
नृपेंद्र कुमार शर्मा की डायरी
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मेरी पसंद की मेरी लिखी हुई चुनिंदा कहानियाँ, कविताएं एवं शेरोशायरी पढ़ने के लिए मेरी डायरी देखें..-
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हरीतिमा

6 मई 2017
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चहुँ और फैली हरीतिमा धरती का हरा गलीचा है।ऐंसा है भारत देश मेरा जो एक संपूर्ण बगीचा है।इसकी धरती है हरी भरी हमने इसे खून से सींचा हैऐंसा है भारत देश मेरा जो एक संपूर्ण बगीचा है।फल फूल महकते हैं इसमें सुन्दर कलियाँ खिलखिलाती हैं।पते हम जी प्राण वायु इसका कारण ये हरित ही है।इसलिए हे भेंट के सूक्मरों ह

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और वह मर गई।

6 मई 2017
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नदी किनारे गांव के एक छोर पर एक छोटे से घर में रहती थी गांव की बूढी दादी माँ।घर क्या था उसे बस एक झोंपडी कहना ही उचित होगा।गांव की दादी माँ, जी हां पूरा गांव ही यही संबोधन देता था उन्हें।नाम तो शायद ही किसी को याद हो, 70/75 बरस की नितान्त अकेली अपनी ही धुन में मगन।कहते हैं पूरा परिवार था उनका नाती

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दिल गुलाब

7 मई 2017
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मेरा दिल गुलाब जैसा है, यूँ ही न इसे कुचल देना। <div> तुम रहती हो दिल के अंदर, टुकड़े ना इस

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पर्वत

7 मई 2017
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ऊँचे-ऊंचे शिखरों वाले ,ये पर्वत खड़े हुए हैं।आंधी गर्मी वर्षा सह कर ,भी अडिग अड़े हुए हैं।।देते हैं ये हमको शिक्षा ,कष्टों में भी मुस्काने की।देते है ये हमको शिक्षा ,कभी ना शीश झुकाने की।।आओ भारत के सुकुमारो, पर्वत से कुछ शिक्षा लेलो।तुम अपना भय इनको देदो ,और इनसे कुछ सहस लेलो।।प्रण लो कि अपने भारत को

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महाभारत

8 मई 2017
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घर - घर में हो रहा महाभारत का युद्ध।फिरभी विधाता नहीं है दुर्योधनों से क्रुद्ध।।झगडे का कारण बनी हैं जर जमीन और जोरू।अपने ही सब लड़ रहे कोई नहीं है और।राजा सारे बने हैं आज यहाँ धृतराष्ट।इसी लिए हो रहा यहाँ धर्मराज को कष्ट।।शकुनि चलते हैं यहाँ नित्य नई-नई चाल।शासन करती हैं यहाँ बंदूकों की नाल।।नहीं को

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अपरिचिता

9 मई 2017
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सुगढ़ अंग सघन केश, उजला रंग परी भेष।विखेरती शीतल सुगंध, मुस्कुराकर मन्द-मन्द।'अपरिचिता' परिचय तो बता, क्या है तेरा अता-पता।है कोई अप्सरा सुर राज की, या विधि की अद्भुत कृति।ले रही मादक तरंग, हुई कमान मेरु दण्ड।देख कर तेरा रंग -रूप, हो रहा मेरा मन उदण्ड।।नयन भटकें बार बार , हो न जाये तुमसे प्यार।।तुम ह

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यादें,,,,,,

9 मई 2017
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यादें-मन भावनी सुहावनी यादें, बारिश से भीगी हुई लुभावनी यादें।आती रही रात भर प्रेम भरी यादें,नींद चुराती रहीं मुस्कान भरी यादें।।।बातें-दिल में बसी हैं तेरी मीठी बातें,मन हर गई कई छोटी -छोटी बातें।ख्वाब दिखा गई प्रेम भरी बातें।।नींद चुरा गई उस पल की बातें।।।आँखें-मन में बस गेन तेरी गहरी स्याह आँखें,

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तलाक

11 मई 2017
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तलाक नहीं तुम्ही लायक हो बस मेरे अब बस यही कहना होगाजिंदगी भर साथ हमको एक दूजे के रहना होगा।ये अरमान हर पुरुष को निज मन में जगाना होगा।जिसको चुना अर्धांग्नी उसे मान दिलाना होगा।मेहर के नाम पर न उसका मूल्य लगाना होगा।तलाक कहकर उसे न अब वस्तु बनाना होगा।जिवंत है इंसान है दिल में उसके भी ज़ज़्बात है।सब छ

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मर जाने को जी चाहता है।

13 मई 2017
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मेरा भी बस अबतो मर जाने को जी चाहता है।सुना मज़े हैं बहुत खुदा के घर जाने को जी चाहता है।झूठे जग के रिश्ते नातों से ये मन छूटना चाहता है। सुना मज़े हैं बहुत खुदा के घर जाने को जी चाहता है।नही कोई रिश्ता है सच्चा, सब मतलब के यार बने हैं।बिन मतलब के संबंधों से दिल अब न दुखना चाहता है।सुना मज़े है बहुत खु

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फ़रिश्ता

14 मई 2017
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आज रमेश का कॉलेज में आखिरी दिन था। लेकिन उसने गांव न जाकर यहीं शहर में ही कोई नोकरी करने का फैसला किया था।और उसने एक दफ्तर में नोकरी की बात भी कर ली थी। कल से ही तो उसे नोकरी पर जाना है, अभी वो गांव नहीं जा पायेगा। गांव में बस उसकी बुड्ढी माँ के अलावा उसका कोई और सागा संबंधी नहीं है।माँ के अलावा दुन

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माँ

14 मई 2017
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माँ की ममता का मूल्य चुका सकता है कौन।जिससे माँ की तुलना करलूं कोई ऐंसा ला सकता है कौन।जब बचपन में गिर जाता था थोड़ा -मोड़ा छिल जाता था।। माँ के शब्द भीग जाते थे आँखों से पानी आता था।।स्पस्ट वेदना की रेखाएं उनके माथे पर पढ़ पता था।लेकिन कुछ भी नहीं हुआ बस मरी चींटी सुन पता था।रात- रात जागती थी माँ जब भ

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परछाईं।

15 मई 2017
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मैंने अपनी परछाईं का पीछा करना छोड़ दिया। जग के झूठे रिश्ते नाते सब को पीछे छोड़ दिया।अपने मन को मनमुख करके वैराग्य से जोड़ दिया।मैने भी अब परछाईं का पीछा करना छोड़ दिया।। कोई कहे विरक्त मुझे और कोई कहता सन्यासी।सब जो मेरे साथ कभी थे कहते हैं अब वनवासी। जबसे मैंने उनके मत से जग में चलना छोड़ दिया।मैंन

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इंसान

17 मई 2017
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नफरत की दीवार गिरा दो , सबके दिल में प्यार जग दो।हिन्दू और मुसलमा पीछे,पहले सब इंसान बना दो।जाती धर्म सरहद के झगड़े,किसे क्या मिला जरा बता दो।मानवता के ये दुश्मन हैं,इन्हें हरा दो दूर भगादो।नफरत की दीवार गिरा दो ,सबके दिल में प्यार जगा दो।हिन्दू और मुसलमा जागो,और अमन के फूल खिला दो।जो नश्लो में बाँट

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सरहदें

19 मई 2017
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नफरत दिलों के बीच बढाती हैं सरहदें।इंसान को हैवान बनाती हैं सरहदें।मालिक ने तो बक्शी थी ये कितनी हसीं दुनिया,सीने पर इसके दाग लगाती हैं सरहदें।मालिक के बन्दों में नहीं है फ़र्क़ जरा सा,है एक सा लहू और है एक सी काया।बंदों से खून बन्दों का कराती हैं सरहदें,इन्सान को शैतान बनाती हैं सरहदें।मालिक ने न बां

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प्रेम विवाह में तलाक कियूं?

20 मई 2017
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दोनों ने प्यार किया था, सीमाओं से पार प्यार।दुनिया ही सिमट गई थी उनकी एक दूजे के प्यार में।और प्यार को परवान भी चढ़ाया , समाज जाती के बंधन तोड़ कर।शादी कर ली उन्होंने दिल का पवित्र बंधन जोड़ कर।एक साल जैसे पंख लगाकर उड़ गया , दोनों खोये रहे प्रेम के स्वप्निल संसार में।बस प्रेम ही छलकता रहा उनके जीवन व्य

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ऐ खुदा,,,

23 मई 2017
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ऐ खुदा मुझे अपने पास बुला ले, मुझको अपना दास बना ले।लाखों की फरियादें सुनता, सबको जाने क्या-क्या देता।तू भी कितना थक जाता है, सब को खुश न कर पाता है।थोड़ा काम मुझे भी देदे, अब थोड़ा आराम तो कर ले।मैं भी अपनाकाम बना लूँ , थोड़ा सा अब मूल्य चुका लूँ। लोगों को अहसास तो होगा,

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रहस्यमयी खजाना भाग-2

25 मई 2017
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अपने पिछले भाग में पढ़ा के कैसे एक अँधेरी बरसाती रत में दो लोग एक डरावने खँडहर तक पहुँचते हैं। जहाँ उन्हें कुछ अजीब आवाजें आती हैं। और किसी की वेदनापूर्ण चीख उन्हें आकर्षित करती है।अब आगे पढ़िए-यार अंदर पता नहीं भूत हैं जिन हैं या शायद राक्षस ही हों।यार पंडित कियूं न रात उसी पेड़ के नीचे रह कर सुबह इस

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उज्जैन

4 जून 2017
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सांदीपनि आश्रम

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पिता

18 जून 2017
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पिता का ह्रदय विशाल है कितना, आसमां का विस्तार है जितना।पिता के पास है सुरक्षा का अटूट घेरा,पिता हर मुश्किलों में देते सहारा।पिता ईस्वर से पहले साथ देता है।पिता हर दुःख को मोड़ देता है।पिता की गोद में मिलता है असर ऐंसा,लगे सुख के समंदर के जैसा।पिता के क्रोध में भी प्यार का पुट होता है,पिता भी छिप छिप

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देवलोक में मच्छर

24 जून 2017
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देवराज का दरबार लगा हुआ है , सभी देवता अपने आसनों पैर एवं देवराज अपने इंद्रासन पैर आसन्न हैं।वातावरण में मधुर संगीत स्वरलहरी गूँज रही है।गंधर्व अपने वाद्ययंत्रों पर अपनी सम्पूर्ण कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।अप्सराएं सुर से सुर एवं ताल से ताल मिला कर थिरक रही हैं।तभी देवराज के कानों में कुछ भिन्न स्व

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जाने क्या होता,,

22 जुलाई 2017
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उत्तराखण्ड कुमायूं में एक छोटा सा गांव , कोई 30 परिवार आबादी यही कोई 200। गांव के लोग बहुत सीधे सरल और उन सब में सबसे ज्यादा सरल स्वभाव के मुखिया जी कुंदन सिंह नेगी जी।गांव में अधिकतर लोग फलों की और सब्जियों की खेती करते या बकरी ,गाये और भैंस पालते दूध बेचते।अल्मोड़ा और हल्द्वानी में उनके फल , सब्जी

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दुल्हन

30 जुलाई 2017
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मेहँदी भरे हाथ और किये सोलह सृंगार, मन में उथल पुथल कि जाने केसा होगा ससुराल।नाजुक मन है नाजुक तन है और है दिल में भाव अपार,क्या सास ससुर दे पाएंगे अम्मा बाबा जैसा प्यार।लाल परिधानों से सजी और लज्जातुर कपोल भी लाल,अभी उम्र बीती ही कितनी यही कोई साढ़े उन्नीस साल। कहाँ फिक्र थी उसी किसी की रही खेल खेलन

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प्रार्थना

1 अगस्त 2017
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सतगुरु शरण में लेलो ,हम दर पे आ पड़े हैं।हम पर दया दिखादो,कर जोड़ कर खड़े हैं।।हम जीव वे सहारा , तुम बिन कौन हमारा।यम के नगर का फेरा,दिन चार का बसेरा।।जन्मो जन्म का आना,कैसे छूटे हमारा।ये चौरासी का चक्कर, गुरु बिन नहीं किनारा।।इस फंद से छुड़ाना, यम जाल से बचाना।हे सतगुरु हमारे, तुम बिन न कोई जाना।।उस सच

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दादी

4 अगस्त 2017
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चिंटू अरे ओ चिंटू,,,,अस्सी बरस की रामकली बिस्तर पर लेटे लेटेअपने पोते को पुकार रही है।रामकली बूढी अवश्य हो गई है किंतु जीवन जीने की आशा ने उसे कभी जीर्ण होने नहीं दिया।खाल सिकुड़ अवश्य गई है किंतु मन की तरुणाई कहीं उसके मनन करते मन के किसी कोने में अभी भी जीवित है।और जीवन की इसी आशा ने कभी उसके हाथ

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चाहत

5 अगस्त 2017
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ईश्वर की अदिवतीय कृति , हृदय में प्रेम अनंत लिए।मेरे ख्यालों में रहती थी, मूर्ति एक सदा हे प्रिये।मैं उसे निरखता रहता था, निशदिन अपने स्वप्नों में।और मन मे चाहत रखता था, कि मुझको उसका प्रेम मिले।वह मेरे मन मे रहती थी, जैसे कि, सुमन में सुगंध रहे।मेरे मन की केवल इच्छा थी, जीवन भर वो

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मित्र दिवस

6 अगस्त 2017
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मित्रता एक शब्द नही बल्कि एक संपूर्ण काव्य है। इसमे भावनाओ के रंग हैं सुरक्षा की भावना है।मित्रता में अपने पन का अहसास है कि मुसीबत की घड़ियों में कोई अपना अपने साथ है।मित्रता में बत्सल्य है प्रेम है और कभी कभी पिता की कठोरता भी।मित्र यदि सच्चा है तो पूरी करता है कमी , जीवन मे कई रिश्तों की।मित्र भाई

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रक्षाबंधन

7 अगस्त 2017
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रक्षाबंधन यानी भी बहन के प्यार का त्योहार।हमारे हिन्दू धर्म मे समय समय पर अनेक उत्सव त्योहार मनाए जाते रहते हैं। उसी क्रम में आज दिनांक 7 अगस्त 2017 को हम रक्षा बंधन का पवित्र एवं महत्वपूर्ण पर्व मन रहे हैं।मान्यता के अनुसार इस दिन बहन अपने भाई को तिलक लगा कर उसके हाथ मे रक्षा सूत्र (राखी) बांध कर भ

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बग्वाल मेला

8 अगस्त 2017
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चम्पावत के देवीधूरा नामक जगह पर मां वाराही का प्रसिद्ध मन्दिर है. हर साल रक्षाबन्धन के दिन यहां विशाल मेला लगता है. इस मेले का मुख्य आकर्षण दो गुटों के बीच होने वाला पाषाण युद्ध है. कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां मानव बलि का प्रचलन था. एक बार किसी वृद्ध महिला के

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दुर्घटना

10 अगस्त 2017
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सुबह का समय था, सूरज अभी पूरी तरह से निकल नही था।सड़क पर काम भीड़ का सभी गाड़ियों वाले अनुचित फायदा उठा रहे थे। सभी अपनी रफ्तार तेज किये भागे जा रहे थे।धड़ाम,,,,,, तभी अलसाई हवा की खामोशी को तोड़ता एक भयानक शब्द सबको स्तब्ध कर गया।एक नई कार सड़क किनारे खड़े टैंकर में पीछे से तेज़ टक्कर मार कर उसके नीचे फंस

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जन्माष्टमी एवं आजादी दिवस।

15 अगस्त 2017
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आज मेरा देश दुगुनी खुशियां मना रहा है। एक और श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की धूम है वहीं हमारे अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति का दिन।श्री कृष्ण एक संपूर्ण अवतार जो आये थे सोलह ललित कलाएं लेकर। ईश्वर के यूं तो अनेकों अवतार हुए हैं , किन्तु सबसे अधिक पूजनीय एवं प्रसिद्ध है बाल गोपाल ,माखन चोर ,मदनगोपाल, गोपियों

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तुम मेरी

17 अगस्त 2017
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तुम मेरी कविता हो , कल्पना हो । अहसास हो।।तुम मेरीधड़कन हो,दर्पण हो।अक्स हो।।तुम मेरी चांदनी हो, रागनी हो।खुशी हो।।तुम मेरीजिंदगी हो,आरज़ू ही।प्यास हो।।तुम मेरीआकांक्षा हो,आशा हो।विस्वास हो।।तुम मेरी प्रेरणा हो,प्रेयसी हो।श्वांस हो।।तुम मेरीराह हो,मंज़िल हो।तलाश हो।।तुम मेराहृदय

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उज्ज्वल तेरा मन।

18 अगस्त 2017
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स्वप्न में उसको देखा था कल।मन हरिणी हर ले गई मेरा मन।।चांदनी में नहाया हुआ दूधिया बदन।प्रेम से भरा हुआ उज्ज्वल तेरा मन।।नवजीवन देती हुई मधुर मुस्कान।शिथिल तन -मन में भरती नव प्राण।।महकी हुई सांसे विखेरती चन्दन।प्रेम से भरा हुआ उज्ज्वल तेरा मन।।आकर्षित करती चमकीली आंखें।आमंत्रण देती फैली कोमल बाहें।।

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जिंदगी,,,,,

28 अगस्त 2017
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मेरी ज़िंदगी को इतनी मिले जिंदगी,सौ जनम भी न हो वो मुझसे जुदा।चाँद तारों से ज्यादा हो उसमे चमक,हर गुलिशता से ज्यादा हो उसमे महक।नींद आये मुझे उसके आगोश में,उसकी आवाज से ही हो मेरी सुबह।मेरा जीवन हो वो मेरी जन्नत हो बो,वो मधुर मेरे जीवन का संगीत हो।हो कोई रंग चाहे कोई रागिनी,मेरी 'कविता' बने बस मेरी स

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प्रेम अगन,,,

30 अगस्त 2017
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शीतल तपन सी ज्वाला ,ये प्रेम अगन है।तन -मन झुलस रहे हैं, फिर भी इसकी लगन है।ये प्रेम है मनोहर, महकी हवा का झोंका।कहते है लोग इसको, जगती नज़र का धोखा।है प्रेम की ही शक्ति, संसार चल रहा है।इसकी मधुर तपन में , हर प्रेमी जल रहा है।जो प्रेम की अगन में, जल कर भसम हुए है।संसार की नज़र में, वो मरकर अमर हुए ह

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प्रथम अध्यापक

5 सितम्बर 2017
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पिछले सप्ताह हमारे टाउन में जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में झांकी का आयोजन किया गया।झांकियां मंत्रमुग्ध कर रही थीं ।मैं भी अपने 8 वर्ष के बेटे के बहुत जिद करने के कारण उसे झांकी दिखाने ले गया।हम एक दुकान के ऊंचे चबूतरे पर खड़े होकर झांकियीं के आकर्षण में खोए थे , मेरा बेटा बहुत प्रसन्न था और बार बार मुझसे

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कलयुग

7 सितम्बर 2017
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कहते हैं कि कलयुग है, पर किसी को भी कल नही है। हर किसी के पास कल है , फिर भी सबको बेकली है। जितनी बनती कल नई है, उतनी बढ़ती बेकली है।। काम होता सभी कल से ,फिर भी कल पर टल रहा है। कल से मानव आलसी ,दिनपर दिन होता जा रहा है। काम बिगड़ा कल से, मानव खुद पर गुस्सा खा रहा है।। कल का क्षेत्र आज बढ़ता जा रहा है

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हिंदी दिवस

14 सितम्बर 2017
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हिंदी दिवस की सभी हिंदी प्रेमियों को हार्दिक बधाई।

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हिंदी ,,,,,,,

14 सितम्बर 2017
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मैं हिंदुस्तान की मातृ भाषा हूँ, हिंदी। आप में से बहुत लोग मुझे पहचान तो गए ही होंगे।वही हिंदी जिसकी लिपि देवनागरी है। संस्कृत जिसकी जननी है।किन्तु एक राष्ट्र की मातृभाषा होकर भी मैं पूर्णतया उपेक्षित हूँ।ऐंसा लगता है कि मेरा प्यार देश अंग्रेजों के जाने के बाद भी मानसिक गुलामी की जंजीरे नही तोड़ पाया

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नवरात्रि

21 सितम्बर 2017
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आज नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री की उपासना का दिन।आज से माता के भक्त नवजोत जला कर माता के नो दिनों के व्रत करेंगे । उपवास या अर्ध उपवास करके माता की भक्ति पुझा में मन रामाएँगे।कभी विचार किया कि , कियूं नवरात्रि वर्ष में दो बार आती है और दोनों बार ऋतु परिवर्तन की मध्य वेला होती है अर्थात एक ऋत

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प्रेम मन प्यास

28 सितम्बर 2017
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प्रेम भरा मन प्रेम प्यासा प्रेम मिलन की है मन आशा।प्रेम भरी प्यारी की आंखे रोज़ दिलाती प्रेम दिलासा।।रस अधरों पर मधु सा झलके मन का भ्रमर मन ही में कलपे।प्रेम मिलन को मन ये तरसे वही तड़फ अँखियन में झलके।गोरी दो संकेत जरा सा पूरी हो जाए मन आशा।हो जाए तृप्त प्रेम मन प्यास कर दो प्रिये उपकार जरा सा।।

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दीदी,,,,,

28 अक्टूबर 2017
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दीदी, बिल्कुल माँ जैसी होती है दीदी।ममतामय बत्सल्यमूर्ति माँ के सारे गुण अपने मे समा लेती है दीदी।भाई भले हो कितनी दूर , भी के दर्द की एक आह पर सारी रात करवटे बदल काट लेती है दीदी।जाने क्या शक्ति है देवी की दीदी में कैसे भाई के छोटे से दुख का भी पता पा लेती है दीदी।खुद परेशानियों में घिरी रहे भी के

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प्रेम पंथ,,,

1 नवम्बर 2017
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प्रेम पंथ है कितना पावन, इसकी महिमा कोन कहे।विश्वामित्र से महा योगी भी , प्रेम जाल से बच न सके।इसकी महिमा बड़ी अनोखी, इससे है संसार सुखी।प्रेम न होता इस जग में तो, होती ना फिर ये सृष्टि।प्रेम के पथ पर चलने वाले,

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प्रेम और बदला,,,,

20 नवम्बर 2017
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भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा के पास माठ तहसील है, जहाँ पर राधा रानी का मंदिर है। वहीं की एक सच्ची घटना है ये ,बात साल 2012 या 13 की है, के चबूतरे पर कुछ बंदर बैठे थे उनके 3,4 छोटे छीटे बच्चे बही खेलने में मगन थे। तभी कहीं से एक नाग निकल आया और बंदर के एक बच्चे को डस लिया। सारे बन्दर क्रुद्ध क

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कॉफी का मग,,,,,

27 नवम्बर 2017
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एक लड़का एक लड़की एक दूजे को बहुत प्यार करते थे, अपने आप से ज्यादा प्यार का हर दम दम भरते थे।खोये रहते थे घंटों एक दूजे की आंखों में ,जब भी अकेले में मिलते थे।प्यार के मधुर क्षणों में जीवन की ,सदियों को जीते हुए ,सुख लेते हुए, प्रेमी युगल निज स्वप्न संसार मे सुखी थे।अपनी जीवन सांसों को एक दूजे से बा

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याद

10 दिसम्बर 2017
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मैं सोचता हूँ कि उन्हें अब याद न करूँ।दिल की इस वेवसी की उनसे कुछ फरियाद ना करूँ।पर क्या करूँ लम्हा कोई जाता नही ऐंसा।कि हर सांस और धड़कन में उन्हें मैं याद ना करूँ।जाने क्या होता इश्क़ में जादू हसीन सा।याद आती ही है यार की चाहे मैं करु न करूँ।

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मोहब्बत

16 दिसम्बर 2017
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कभी सोचा नही था रात एक ऐंसी भी आएगी,मेरे कंधों पर मेरे अरमानों की लाश जाएगी।अगर सो जाएं मेरी धड़कने थक कर कभी इंतज़ार में,अगर खो जाये मेरी सांसे कभी वेवफा के प्यार में।न करना कोई शिकवा कभी वो लौट आएगी,ये बात और है मुझे वो फिर ना पाएगी।मोहब्बत आजमाती है कभी इंतिहान लेती है,मगर खुद को सही साबित करो म

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ग़ज़ल

30 दिसम्बर 2017
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चन्द अल्फ़ाज़ आज मेरे भी सुन लीजिए, इस सफर मुझको अपना हमसफर चुन लीजिये।वादा करता हूँ कभी साथ न छोडूंगा तेरा, राहे ज़िन्दगी में कभी हाथ ना छोडूंगा तेरा।तुझको रक्खूँगा छिपा कर के अपनी आंखों में। तेरी ही याद रहेगी मेरी हर सांसो में।ख्याब आंखों का मेरी अपनी पलकों में बुन लीजिये,इस सफर मुझको अपना हमसफर चुन

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सोच,,,,

16 फरवरी 2018
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आज हम जो सोच रखते हैं और निभाते हैं, वह हमारे लिए नवीन सोच है।किन्तु जो हमारे माता पिता हमे बताते हैं वह पुरानी सोच हो गई।वही सोच जो उनके माता पिता के समय नवीन सोच हुआ करती थी।सोच का क्या है वह तो पीढ़ियों के अनुसार बदलती रहती है।जो आज नया है कल वही पुराना होगा।और क्या पता जो कल पुराना था वही आज नया

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गरीबी और दुर्घटना।

17 फरवरी 2018
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सड़क किनारे के पेड़ों को काटने का काम चल रहा था।ठेकेदार उस्मान अली बार बार मजदूरों को डाँट रहा था, कामचोरो ज़रा तेज़ी से हाथ चलाओ सुबह से बस 4 पेड़ ही गिरे हैं , कितना काम बाकी ही। अरे मज़दूरी तो तुम्हे खरी चाहिए और काम के वक़्त दम और बीड़ी के इलावा कुछ सूझता नही नमकहराम कहीं के।तभी अचानक एक जोर का शोर मचा

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श्रीदेवी

25 फरवरी 2018
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अभी रेडियो पर दुखद समाचार सुना।श्रीदेवी एक ऐंसी शशक्त अदाकारा जिन्होंने सिने जगत में अपनी विशेष पहचान बनाई, और सुपरस्टार का खिताब पाया।वो अब हमारे बीच नही रहीं।दुबई में किसी फंक्शन में शिरकत करने गए परिवार के साथ थीं वे।वहीं दिल का दौरा पड़ने से उनकी दुखद मृत्यु हो गई।मुझे तो विस्वास ही नही ह्या खबर

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पहलवान बल्देव प्रसाद,,,,

28 फरवरी 2018
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कोई सो साल पहले उत्तरप्रदेश के मोरादाबाद जिले में एक छोटे गाँव मे रहते थे पंडित बल्देव प्रसाद शर्मा।जैसा नाम वैसा ही डीलडौल, छः फीट से ऊँचा निकलता कद, चौड़े कंधे गोरा रंग, ऊंचा मस्तिष्क। एक दर्शनीय मूर्ति स्वभाव ऐंसा की हर किसी की मदद को हरदम ततपर।बचपन से ही पहलवानी का शौक था उनको। गाये भैंसे पालते ख

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होली,

2 मार्च 2018
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होली भी हो ली अब चारों और सन्नाटा है, त्योहारों में भी अब बस फर्ज निभाया जाता है।नही रहा वह वक़्त त्योहारी उत्सब की खुशियां छाती थीं,होली और दीवाली की तैयारी हफ्तों पहले से होती थी।नही समय अब पास किसी को त्योहारों को मनाने का,सबको चिंता फिक्र है बस तो सुबह काम पर जाने का।बदल रही है जीवन मूल्य आज व्य

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बेरुखी

11 मार्च 2018
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चन्द अल्फ़ाज़ भी मयस्सर नही हमको अबतो उनकी जानिब से ,जो कभी मेरे वास्ते ठोकर पे ज़माना रखते थे।न जाने मोहब्बत को किसकी नज़रे स्याह लग गई जो अब हम,उस रूखसार के एक रुख को तरसते हैं।कभी बातों में मिश्री घोलकर कितनी बातें बोलते थे ,अब लगता है शायद मेरे कान अब काम नही करते हैं।

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माँ,,,,

20 मार्च 2018
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सागर से भी विशाल हृदय वह मां है, मन मे ममतत्व का मान लिए वह मां है।ईस्वर भी जिसका नमन करें वह मां है, देवों के लिए भी वन्दनीय वह मां है।मां के उपकारों से उऋण हो पाना न सम्भव है, फिर भी जो जो कहे ये कर्तव्य मेरा वह माँ है।मां की शक्ति से ही ये संसार चला है, जो हर लेती हर बला संतान की

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स्वप्न्न,,,,,

4 अप्रैल 2018
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आज चौधरी हरपाल सिंह की हवेली पर बहुत रौनक हो रही है।हो भी कियूं न उनका बेटा चेतन आज डॉक्टरी पास कर के गांव लौट कर आ रहा है।उन्होंने पूरे गांव के जलपान की व्यवस्था कर रखी है, और मन मे एक विचार भी रखा है कि किस शान से वह अपने चेतन को गांव बालो से मिलायेगे ।मिलिए मेरे बे

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बिटिया।

10 मई 2018
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जाने कब देखते ही देखते बिटिया बड़ी हो गई।मेरी सोच से बढ़कर उम्मीदों से ज्यादा सोचने लगे गई।पाप यूं देर रात तक जाग कर काम करने से आपका दर्द बढ़ जाएगा ,ज्यादा चाय से आपका बीपी बढ़ जाएगा की नसीहत करती ,मां जैसी वात्सल्यमयी हो गई।देखते ही देखते बिटिया बड़ी हो गई।घर को संवारने लगी छोटे भाई को दुलारने लगी अब भ

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अलविदा ,,,,,,

17 मई 2018
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मुझको क्षमा करना मित्रों मैं जा रहा हूं छोड़कर , मेरे शब्दों को शब्दनगरी पर उचित पहचान ना मिली।रचनाओं को लिखा कितने अरमानो से सदा ,पर मेरी रचनाओं पर वाहवाही की कभी काली न खिली।बहुत अपने थे कभी यहां सराहते थे हमे भी,किन्तु लगता है उन सभी ने यहां से अपनी राहें बाद लीं।एक लेखक एक कवि एक भाव भरा ह्रदय,बस

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बद्रीनाथ धाम यात्रा

29 जून 2018
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आज दिनांक,19 मई 2018 , मैं और मेरे 4 मित्र बद्रीनाथ यात्रा पर निकले हैं।उमंगित ,उल्लासित, भक्तिरस में डूबे।सुबह 4 बजे है, मैं , योगेश, मनोज, प्रियांक, और रजत, हमने काशीपुर , उत्तराखंड से जो कि कुमाऊं और गढ़वाल का प्रवेश द्वार है।से अपनी आल्टो कार से  बद्रीविशाल की हैघिस के साथ हमने अपनी यात्रा प्रारं

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परिवार,,,,,,

30 जून 2018
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फिलीपींस के एक शहर सेबु में एक परिवार रहता था।बांस और लकड़ी के बने छोटे से घर में अपनी काम आय में भी सुखी प्रसन्न।परिवार में , श्री अल्बर्ट उनकी पत्नी नेनेथ तथा उनका 8 वर्ष का बेटा ऐरिल।समय अच्छा बीत रहा था। ऐरिल का 11 जन्मदिन दो दिन पहले ही मनाया गया था , लेकिन नेनेथ को कहा पता था कि उसकी खुशी के आख

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भूल,,,

2 अगस्त 2018
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मनोहर , पच्चीस वर्ष का मेहनती किसान है, सांवला मज़बूत दरमियाना कद ऊंचे चौड़े मज़बूत कंधों बाला आकर्षक युवक।अभी पिछले साल ही उसकी शादी हुई है मालती के साथ।मालती एक सीधी शादी गांव की मेहनती लड़की है , बहुत सुंदर तो नहीं किन्तु सांवली सलोनी आकर्षक अवश्य है।माध्यम कद और पतली सी  मालती, जब लहरा कर चलती तो मन

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३१कि पार्टी

3 जनवरी 2019
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2010 के 31 दिसंबर की कोहरे वाली रात थी, जगह जगह नए साल की पार्टी से शहर भर के होटल ढावे गेस्ट हाऊस रौनकमय होकर झूम रहे थे। शहर तो शहर आसपास के फार्महाउस उससे भी ज्यादा रंगीनी में डूबे हुए थे। युवाओं की पार्टी हो और शराब का दौर ना चले ऐसा होना असम्भव ही होता है ऐसे ही शहर से सूनसान में एक बड़ा फार्म

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बेरुखी

4 सितम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">रात भर जगते थे हम जिनकी मोहब्बत के लिए।</span></div><div><span s

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सम्बन्ध

6 सितम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">जमाने में नहीं मिलता, कहीं भी भाईचारा अब।</span></div><div><span

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उपेक्षित हिंदी

14 सितम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">मेरे प्यारे हिंदी भाषियों,</span></div><div><span style="font-si

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मोहब्बत

16 सितम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">मैंने आग और पानी से दोस्ती कर ली।</span></div><div><span style="

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पतझड़

18 सितम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">पतझड़ अंत नहीं आरम्भ है,<br> ये शुरुआत है नई कोंपलों की।<br> ये दस्तक

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जीवन का सत्य

23 सितम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">जीवन क्या है?</span></div><div><span style="font-size: 16px;">एक

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दिल लगाना

3 अक्टूबर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">लगाना दिल मगर सबसे छिपाकर,</span></div><div><span style="font-si

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आशिकी या पागलपन

3 अक्टूबर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">गज़ब के लोग हैं इस मतलबी दुनिया में यारों,</span></div><div><span

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घरौंदे

11 नवम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">निल बटे सन्नाटा</span></div><div><span style="font-size: 16px;">

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हौसले

9 दिसम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 16px;">हौसला</span></div><div><span style="font-size: 16px;"><br></span

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