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क्यों हम बेटियों को बचाएँ

9 अगस्त 2017

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“मुझे मत पढ़ाओ , मुझे मत बचाओ,, मेरी इज्जत अगर नहीं कर सकते ,तो मुझे इस दुनिया में ही मत लाओ मत पूजो मुझे देवी बनाकर तुम

,मत कन्या रूप में मुझे 'माँ' का वरदान कहो अपने अंदर के राक्षस का पहले तुम खुद ही संहार करो।“

एक बेटी का दर्द

चंडीगढ़ की सड़कों पर जो 5 ता० की रात हुआ वो देश में पहली बार तो नहीं हुआ। और ऐसा भी नहीं है कि हम इस घटना से सीख लें और यह इस प्रकार की आखिरी घटना ही हो। बात यह नहीं है कि यह सवाल कहीं नहीं उठ रहे कि रात बारह बजे दो लड़के एक लड़की का पीछा क्यों करते हैं,बल्कि सवाल तो यह उठ रहे हैं कि रात बारह बजे एक लड़की घर के बाहर क्या कर रही थी।

बात यह भी नहीं है कि वे लड़के नशे में धुत्त होकर एक लड़की को परेशान कर रहे थे, बात यह है कि ऐसी घटनाएं इस देश की सड़कों पर आए दिन और आए रात होती रहती हैं।

बात यह नहीं है कि इनमें से अधिकतर घटनाओं का अंत पुलिस स्टेशन पर पीड़ित परिवार द्वारा न्याय के लिए अपनी आवाज़ उठाने के साथ नहीं होता।

बात यह है कि ऐसे अधिकतर मामलों का अन्त पीड़ित परिवार द्वारा घर की चार दीवारी में अपनी जख्मी आत्मा की चीखों को दबाने के साथ होता है।

बात यह नहीं है कि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में न्याय के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, बात यह है कि इस देश में अधिकार भी भीख स्वरूप दिये जाते है।

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा पहलू यह है कि वर्णिका कुंडु जिन्होंने रिपोर्ट लिखवाई है,एक आईएएस अफ्सर की बेटी हैं, यानी उनके पिता इस सिस्टम का हिस्सा हैं। जब वे और उनके पिता उन लड़कों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने के लिए पुलिस स्टेशन गए थे तब तक उन्हें नहीं पता था कि वे एक राजनैतिक परिवार का सामना करने जा रहे हैं लेकिन जैसे ही यह भेद खुला कि लड़के किस परिवार से ताल्लुक रखते हैं तो पिता को यह आभास हो गया था कि न्याय की यह लड़ाई कुछ लम्बी और मुश्किल होने वाली है। उनका अंदेशा सही साबित भी हुआ। न सिर्फ लड़कों को थाने से ही जमानत मिल गई बल्कि एफआईआर में लड़कों के खिलाफ लगी धाराएँ भी बदल कर केस को कमजोर करने की कोशिशें की गईं।

जब उनके साथ यह व्यवहार हो सकता है तो फिर एक आम आदमी इस सिस्टम से क्या अपेक्षा करे? जब एक आईएएस अफ्सर को अपने पिता का फर्ज निभाने में इतनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है तो एक साधारण पिता क्या उम्मीद करे? वर्णिका के पिता ने तो आईएएस लाबी से समर्थन जुटा कर इस केस को सिस्टम वर्सिस पालिटिक्स करके इसके रुख़ को बदलने की कोशिश की है लेकिन एक आम पिता क्या करता? जब एक लोकतांत्रिक प्रणाली में सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष का बेटा ऐसा काम करता है तो वह पार्टी अपने नेता के बचाव में आगे आ जाती है क्योंकि वह सत्ता तंत्र में विश्वास करती है लोकतंत्र में नहीं,वह तो सत्ता हासिल करने का एक जरिया मात्र है।


उसके नेता यह कहते हैं कि पुत्र की करनी की सजा पिता को नहीं दी जा सकती तो बिना योग्यता के पिता की राजनैतिक विरासत उसे क्यों दे दी जाती है। आप अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री के लाल किले से दिए गए भाषण को भी नकार देते हैं जो कहते हैं कि हम अपनी बेटियों से तो तरह तरह के सवाल पूछते हैं,उन पर पाबंदियां भी लगाते हैं लेकिन कभी बेटे से कोई सवाल कर लेते, कुछ संस्कारों के बीज उनमें डाल देते, कुछ लगाम बेटों पर लगा देते तो बेटियों पर बंदिशें नहीं लगानी पड़तीं। यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा से ऊपर अपने नेताओं और स्वार्थों को रखती है? यह कैसी व्यवस्था है जहाँ अपने अधिकारों की बात करना एक "हिम्मत का काम" कहा जाता है।

हम एक ऐसा देश क्यों नहीं बना सकते जहाँ हमारी बेटियाँ भी बेटों की तरह आजादी से जी पाँए ? हम अपने भूतपूर्व सांसदों विधायकों नेताओं को आजीवन सुविधाएं दे सकते हैं लेकिन अपने नागरिकों को सुरक्षा नहीं दे सकते।

हम नेताओं को अपने ही देश में अपने ही क्षेत्र में जेड प्लस सेक्यूरिटी दे सकते हैं लेकिन अपनी बेटियों को सुरक्षा तो छोड़िये न्याय भी नहीं ? देश निर्भया कांड को भूला नहीं हैं और न ही इस सच्चाई से अंजान है कि हर रोज़ कहीं न कहीं कोई न कोई बेटी किसी न किसी अन्याय का शिकार हो रही है।

उस दस साल की मासूम और उसके माता पिता का दर्द कौन समझ सकता है जो किसी और की हैवानियत का बोझ इस अबोध उम्र में उठाने के लिए मजबूर है। जिसकी खिलौनों से खेल ने की उम्र थी वो खुद किसी अपने के ही हाथ का खिलौना बन गई। जिसकी हँसने खिलखिलाने की उम्र थी वो आज दर्द से कराह रही है।जो खुद एक बच्ची है लेकिन माँ बनने के लिए मजबूर है। क्यों हम बेटियों को बचाएँ ? इन हैवानों के लिए? हम अपने बेटों को क्यों नहीं सभ्यता और संस्कारों का पाठ पढ़ाएँ ?

बेहतर यह होगा कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के बजाय बेटी बचानी है तो पहले बेटों को सभ्यता और संस्कारों का पाठ पढ़ाओ ।उन्हें बेटियों की इज्जत करना तो सिखाओ।

डॉ नीलम महेंद्र

डॉ नीलम महेंद्र की अन्य किताबें

Kokilaben Hospital India

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8 मार्च 2018

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

बेहद भावुक एवं अक्षरतः सत्य।

10 अगस्त 2017

रेणु

रेणु

समाज के कडवे सच को दि खाता ये आलेख बहुत ही गहन चिंतन से भरा है ------- एक एक शब्द झझकोरने वाला है ---------- सब वातें सोच ने की हैं सचमुच संस्कारों में ही इस समस्या का हल है ------- इस शोध परक लेख के लिए बधाई आपको नीलम जी ---

10 अगस्त 2017

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत ही सराहनीय, सशक्त और आँखें खोलने वाला लेख हैः। इसके लिए बधाई भी व् ह्रदय से आभार भी ।

10 अगस्त 2017

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भारत को असली ख़तरा आतंकवादियों से नहीं उनके मददगारों से है दीपावली की रात जेल से भागे 8 आतंकवादी जो कि प्रतिबंधित संगठन सिमी से ताल्लुक रखते थे उन्हें मध्यप्रदेश पुलिस 8 घंटे के भीतर मार गिराने के लिए बधाई की पात्र है । बधाई स्थानीय लोगों को भी जिन्होंने पुलिस की मदद कर के देशभक्ति का परिचय देते ह

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एक हाथ से दिया गया दान हज़ारों हाथों से लौट कर आता है

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एक हाथ से दिया गया दान हज़ारों हाथों से लौट कर आता है जो हम देते हैं वो ही हम पाते हैं दान के विषय में हम सभी जानते हैं। दान , अर्थात देने का भाव , अर्पण करने की निष्काम भावना । हिन्दू धर्म में दान चार प्रकार के बताए गए हैं , अन्न दान ,औषध दान , ज्ञान दान एवं अभयदान

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स्त्री ईश्वर की एक खूबसूरत कलाकृति ! यूँ तो समस्त संसार एवं प्रकृति ईश्वर की बेहतरीन रचना है किन्तु स्त्री उसकी अनूठी रचना है , उसके दिल के बेहद करीब । इसीलिए तो उसने उसे उन शक्तियों से लैस करके इस धरती पर भेजा जो स्वयं उसके पास हैं मसलन प्रेम एवं ममता से भरा ह्दय ,

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“हम भारत के लोग “ और नेताओं के बीच यह अंतर क्यों

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“हम भारत के लोग “ और नेताओं के बीच यह अंतर क्योंलोकतंत्र में देश की प्रजा उसका शरीर होती हैलोकतंत्र उसकी आत्मा जबकि लोगों के लिए , लोगों के ही द्वारा चुनी गई सरकार उस देश का मस्तिष्क होता है उसकी बुद्धि होती है । यह लोगों द्वारा चुनी ह

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अनुशासन कि आड़ में कहीं शोषण तो नहीं भ्रष्टाचार जिसकी जड़ें इस देश को भीतर से खोखला कर रही हैं उससे यह देश कैसे लड़ेगा ? यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काफी अरसे बाद इस देश के बच्चे बूढ़े जवान तक में एक उम्मीद जगाई है। इस देश का आम आदमी भ्रष्टाचार और सिस्

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सबको सम्मति दे भगवान यह सही है कि लफ्जों में इतनी ताकत होती है कि किसी पुरानी डायरी के पन्नों पर कुछ समय पहले चली हुई कलम आज कोई तूफान लाने की क्षमता रखती है लेकिन किसी डायरी के खाली पन्ने भी आँधियाँ ला सकते हैं ऐसा शायद पहली बार हो रहा है। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के 2017 के वो कैलेंडर और डायरी आ

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उस गुनाह की माफ़ी जो किया ही नहीं

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उस गुनाह की माफ़ी जो किया ही नहीं दंगल फ़िल्म में गीता फोगट का किरदार निभाने वाली जायरा वसीम द्वारा सोशल मीडिया पर माफी माँगने की खबर पूरे देश ने पढ़ी और सुनी। आम आदमी से लेकर क्रिकेट और कला जगत, हर क्षेत्र से उसके समर्थन में देश आगे आया लेकिन सरकार की ओर से किसी ठोस कदम का

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कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए

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कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए अपनी आजादी की कीमत तो हमने भी चुकाई है तुम जैसे अनेक वीरों को खो के जो यह पाई है। कहने को तो हमारे देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी लेकिन क्या यह पूर्ण स्वतंत्रता थी? स्वराज तो हमने हासिल कर लिया था लेकिन उसे ' सुराज ' नहीं बना

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घी गेहूँ नहीं रोज़गार चाहिए साहब

28 जनवरी 2017
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यह हैं असली नायिकाएँ भंसाली का कहना है कि पद्मावती एक काल्पनिक पात्र है ।इतिहास की अगर बात की जाए तो राजपूताना इतिहास में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का नाम बहुत ही आदर और मान सम्मान के साथ लिया जाता है। भारतीय इतिहास में कुछ औरतें आज भी वीरता और सतीत्व की मिसाल हैं जैसे स

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15 फरवरी 2017
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क्या यह पूरा न्याय है 'व्यापम' अर्थात व्यवसायिक परीक्षा मण्डल, यह उन पोस्ट पर भर्तियाँ या एजुकेशन कोर्स में एडमिशन करता है जिनकी भर्ती मध्यप्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन नहीं करता है जैसे मेडिकल इंजीनियरिंग पुलिस नापतौल इंस्पेक्टर शिक्षक आदि। साल भर पूरी मेहनत से पढ़कर बच्चे इस परीक्षा को एक बेहतर भविष्

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16 फरवरी 2017
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यह कैसी पढ़ाई है और ये कौन से छात्र हैं

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सुख की खोज में हमारी खुशी कंहीं खो गई

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आहार से उपजे विचार ही शिशु के व्यक्तित्व को बनाते हैं

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कश्मीर में शान्ति बहाली ही शहीदों को सच्ची श्रधांजलि होगी

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आजादी आपनी सोच में लायें

31 जुलाई 2017
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आजादी आपनी सोच में लायें भारत हर साल 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। यह दिन जहां हमारे आजाद होने की खुशी लेकर आता है वहीं इसमें भारत के खण्ड खण्ड होने का दर्द भी छिपा होता है। वक्त के गुजरे पन्नों में भारत से ज्यादा गौरवशाली इतिहास किसी भी देश का नहीं हुआ। लेक

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क्यों हम बेटियों को बचाएँ

9 अगस्त 2017
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“मुझे मत पढ़ाओ , मुझे मत बचाओ,, मेरी इज्जत अगर नहीं कर सकते ,तो मुझे इस दुनिया में ही मत लाओमत पूजो मुझे देवी बनाकर तुम,मत कन्या रूप में मुझे 'माँ' का वरदान कहोअपने अंदर के राक्षस का पहले तुम खुद ही संहार करो।“ एक बेटी का दर्द चंडीगढ़ की स

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खुशियों का फैसला

24 अगस्त 2017
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खुशियों का फैसला जो भावना मानवता के प्रति अपना फर्ज निभाने से रोकती हो क्या वो धार्मिक भावना हो सकती है? जो सोच किसी औरत के संसार की बुनियाद ही हिला दे क्या वो किसी मजहब की सोच हो सकती है? जब निकाह के लिए लड़की का कुबूलनामा जरूरी होता है तो तलाक में उसके कुबूलनामे को अ

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जनता तो भगवान बनाती है साहब लेकिन शैतान आप

28 अगस्त 2017
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जनता तो भगवान बनाती है साहब लेकिन शैतान आप 13 मई 2002 को एक हताश और मजबूर लड़की, डरी सहमी सी देश के प्रधानमंत्री को एक गुमनाम ख़त लिखती है। आखिर देश का आम आदमी उन्हीं की तरफ तो आस से देखता है जब वह हर जगह से हार जाता है। निसंदेह इस पत्र की जानकारी उनके कार्याल

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३५ए जैसे दमनकारी कानूनों का बोझ देश क्यों उठाए

4 सितम्बर 2017
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35A जैसे दमनकारी कानूनों का बोझ देश क्यों उठाए भारत का हर नागरिक गर्व से कहता कि कश्मीर हमारा है लेकिन फिर ऐसी क्या बात है कि आज तक हम कश्मीर के नहीं हैं? भारत सरकार कश्मीर को सुरक्षा सहायता संरक्षण और विशेष अधिकार तक देती है लेकिन फिर भी भारत के नागरिक के कश्मीर में क

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साहब भारत इसी तरह तो चलता है

17 सितम्बर 2017
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साहब भारत इसी तरह तो चलता है वैसे तो भारत में राहुल गाँधी जी के विचारों से बहुत कम लोग इत्तेफाक रखते हैं (यह बात 2014 के चुनावी नतीजों ने जाहिर कर दी थी) लेकिन अमेरिका में बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में जब उन्होंने वंशवाद पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में "भारत इसी तरह चलता है " कहा,

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क्यों ना हम पहले आपने अन्दर के रावण को मारें

23 सितम्बर 2017
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क्यों ना हम पहले आपने अन्दर के रावण को मारें “रावण को हराने के लिए पहले खुद राम बनना पड़ता है ।“ विजयादशमी यानी अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि जो कि विजय का प्रतीक है। वो विजय जो श्रीराम ने पाई थी रावण पर, वो रावण जो प्रतीक है बुराई का, अधर्म का ,अहम् का, अहंका

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जागरूक जनता ही करेगी स्वच्छ भारत का निर्माण

2 अक्टूबर 2017
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जागरूक जनता ही करेगी स्वच्छ भारत का निर्माण 2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को अक्टूबर 2017 में तीन वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान के मकसद की बात करें तो इसके दो हिस्से हैं, एक सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर साफ सफाई तथा दूसरा भारत के गाँवों को खुले

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न जयप्रकाश आंदोलन कुछ कर पाया न ही अन्ना आंदोलन

14 अक्टूबर 2017
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न जयप्रकाश आंदोलन कुछ कर पाया न ही अन्ना आंदोलन वीआईपी कल्चर खत्म करने के उद्देश्य से जब प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मई 2017 में वाहनों पर से लालबत्ती हटाने सम्बन्धी आदेश जारी किया गया तो सभी ने उनके इस कदम का स्वागत किया था लेकिन एक प्रश्न रह रह कर देश के हर नागरिक के मन मे

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क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें

16 अक्टूबर 2017
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क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें दिवाली यानी रोशनी, मिठाईयाँ, खरीददारी , खुशियाँ और वो सबकुछ जो एक बच्चे से लेकर बड़ों तक के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है। प्यार और त्याग की मिट्टी से गूंथे अपने अपने घरौंदों को सजाना भाँति भाँति के पकवान बनाना नए कपड़े और पटाखों की खरीददारी

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क्या विश्व महाविनाश के लिए तैयार है

10 नवम्बर 2017
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क्या विश्व महाविनाश के लिए तैयार है अमेरीकी विरोध के बावजूद उत्तर कोरिया द्वारा लगातार किए जा रहे हायड्रोजन बम परीक्षण के परिणाम स्वरूप ट्रम्प और किम जोंग उन की जुबानी जंग लगातार आक्रामक होती जा रही है। स्थिति तब और तनावपूर्ण हो गई जब जुलाई में किम जोंग ने अपनी इन्टरकाँ

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क्या हार्दिक मान सम्मान की परिभाषा भी जानते हैं?

17 नवम्बर 2017
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क्या हार्दिक मान सम्मान की परिभाषा भी जानते हैं? मैं वो भारत हूँ जो समूचे विश्व के सामने अपने गौरवशाली अतीत पर इठलाता हूँ। गर्व करता हूँ अपनी सभ्यता और अपनी संस्कृति पर जो समूचे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करती है। अभिमान होता है उन आदर्शों पर जो हमारे समाज के महानायक हमें

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आखिर क्यों हम अपने बच्चों को नहीं बचा पा रहे

6 दिसम्बर 2017
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आखिर क्यों हम अपने बच्चों को नहीं बचा पा रहे 1 दिसंबर 2017,कोलकाता के जीडी बिरला सेन्टर फाँर एजुकेशन में एक चार साल की बच्ची के साथ उसी के स्कूल के पी टी टीचर द्वारा दुष्कर्म। 31 अक्तूबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कोचिंग से लौट रही एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार। इसी साल सितंबर में रेहान

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क्या कभी नारी को गुस्सा आया है

17 दिसम्बर 2017
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क्या कभी नारी को गुस्सा आया है आज से पांच साल पहले 16 दिसंबर 2012 को जब राजधानी दिल्ली की सड़कों पर दिल दहला देने वाला निर्भया काण्ड हुआ था तो पूरा देश बहुत गुस्से में था । अभी हाल ही में हरियाणा के हिसार में एक पाँच साल की बच्ची के साथ निर्भया कांड जैसी ही बरबरता की ग

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सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ

20 दिसम्बर 2017
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सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ "चिड़ियाँ नाल मैं बाज लड़ावाँ गिदरां नुं मैं शेर बनावाँ सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ" सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह द्वारा 17 वीं शताब्दी में कहे गए ये शब्द आज भी सुनने या पढ़ने वाले की आत्मा को

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क्या यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा का अपमान नहीं है

24 दिसम्बर 2017
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क्या यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा का अपमान नहीं है वर्तमान में चल रहे संसद के शीतकालीन सत्र में भारतीय लोकतंत्र की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा माफी की मांग पर सदन की कार्यवाही में लगातार बाधा डालने का काम कर रही है। वैसे ऐसा पहली

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डूबते सूरज की बिदाई नववर्ष का स्वागत कैसे

29 दिसम्बर 2017
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डूबते सूरज की बिदाई नववर्ष का स्वागत कैसे पेड़ अपनी जड़ों को खुद नहीं काटता, पतंग अपनी डोर को खुद नहीं काटती, लेकिन मनुष्य आज आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ें और अपनी डोर दोनों काटता जा रहा है।काश वो समझ पाता कि पेड़ तभी तक आज़ादी से मिट्टी में ख

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क्या भंसाली निर्दोष हैं?

29 जनवरी 2018
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क्या भंसाली निर्दोष हैं? 26 जनवरी 2018, देश का 69 वाँ गणतंत्र दिवस, भारतीय इतिहास में पहली बार दस आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्ष समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित, पूरे देश के लिए गौरव का पल, लेकिन अखबारों की हेडलाइन क्या थीं? समारोह की तैयारियाँ? विदेशी मेहमानों का आगमन और स्वागत? जी

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नीरव मोदी को नीरव मोदी बनाने वाला कौन है?

20 फरवरी 2018
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नीरव मोदी को नीरव मोदी बनाने वाला कौन है एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में भ्रष्टाचार खत्म करने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ देश के एक प्रमुख बैंक में 11400 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है। लोग अभी ठीक से समझ भी नहीं पाए थे कि हीरों का व्यवसाय करने वाले नीरव

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क्यों ना इस महिला दिवस पुरुषों की बात हो ?

7 मार्च 2018
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"हम लोगों के लिए स्त्री केवल गृहस्थी के यज्ञ की अग्नि की देवी नहीं अपितु हमारी आत्मा की लौ है, रबीन्द्र नाथ टैगोर।" 8 मार्च को जब सम्पूर्ण विश्व के साथ भारत में भी "महिला दिवस" पूरे जोर शोर से मनाया जाता है और खासतौर पर जब 2018 में यह आय

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नई ऊर्जा के साथ नववर्ष का स्वागत करें

16 मार्च 2018
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नई ऊर्जा के साथ नववर्ष का स्वागत करें कर्नाटक में युगादि, तेलुगु क्षेत्रों में उगादि, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज में चैती चांद, मणिपुर में सजिबु नोंगमा नाम कोई भी हो तिथि एक ही है चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा, हिन्दू पंचांग के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति का दिन, न

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नक्सलवाद को हराती सरकारी नीतियाँ

1 मई 2018
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नक्सलवाद को हराती सरकारी नीतियाँ 24 अप्रैल 2017 को जब "नक्सली हमले में देश के 25 जवानों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे" यह वाक्य देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, तो देशवासियों के जहन में सेना द्वारा 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक की यादें ताजा हो गई थी

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कर्नाटक का जनमत किसके पक्ष में है?

19 मई 2018
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कर्नाटक का जनमत किसके पक्ष में है? चुनावों के दौरान चलने वाला सस्पेन्स आम तौर पर परिणाम आने के बाद खत्म हो जाता है लेकिन कर्नाटक के चुनावी नतीजों ने सस्पेन्स की इस स्थिति को और लम्बा खींच दिया है। राज्य में जो नतीजे आए हैं और इसके परिणामस्वरूप जो स्थिति निर्मित हुई है और

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जीवन जीने की कला है योग

21 जून 2018
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जीवन जीने की कला है योग"योग स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा है, गीता "योग के विषय में कोई भी बात करने से पहले जान लेना आवश्यक है कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आदि काल में इसकी रचना, और वर्तमान समय में इसका ज्ञान एवं इसका प्रसार स्वहित

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देश देख रहा है

3 अगस्त 2018
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देश देख रहा है आज राजनीति केवल राज करने अथवा सत्ता हासिल करने मात्र की नीति बन कर रह गई है उसका राज्य या फिर उसके नागरिकों के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है। यही कारण है कि आज राजनीति का एकमात्र उद्देश्य अपनी सत्ता और वोट बैंक की सुरक्षा सुनिश्चित करना रह गया है न कि र

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सीक्रेट्स ऑफ़ वूमेन एम्पावरमेंट

8 अगस्त 2018
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सीक्रेट्स ऑफ़ वूमेन एम्पावरमेंट

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क्या गूगल पर लगाम लगा पाएंगे ट्रम्प?

1 सितम्बर 2018
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क्या गूगल पर लगाम लगा पाएंगे ट्रम्प? क्या यह संभव है कि दुनिया की नजर में विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति भी कभी बेबस और लाचार हो सकता है? क्या हम कभी अपनी कल्पना में भी ऐसा सोच सकते हैं कि एक व्यक्ति जो विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के सर्वोच्च पद पर आसीन है, उसके साथ उस

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केवल पुरुषों को दोष देने से काम नहीं चलेगा।

14 अक्टूबर 2018
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,केवल पुरुषों को दोष देने से काम नहीं चलेगा।पुरानीयादें हमेशा हसीन और खूबसूरत नहीं होती। मी टू कैम्पेन के जरिए आज जब देश में कुछमहिलाएं अपनी जिंदगी के पुराने अनुभव साझा कर रही हैं तो यह पल निश्चित ही कुछपुरुषों के लिए उनकी नींदें उड़ाने वाले साबित हो रहे होंगे और कुछ अपनी सांसें थामकर बैठे होंगे। इति

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महिलाओं के लिए ये कैसी लड़ाई जिसे महिलाओं का ही समर्थन नहीं

1 नवम्बर 2018
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महिलाओं के लिए ये कैसी लड़ाई जिसे महिलाओं का हीसमर्थन नहीं मनुष्य की आस्था ही वो शक्ति होती है जो उसे विषम से विषम परिस्थितियों से लड़कर विजयश्री हासिल करने की शक्ति देती है। जब उस आस्था पर ही प्रहार करने के प्रयास किए जाते हैं, तो प्रयास्कर्ता स्वयं आग से खेल रहा होता है।क्योंकि वह यह भूल जाता है कि

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राष्ट्रवाद एक विवाद

5 नवम्बर 2018
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डॉ नीलम महेंद्र कृत“राष्ट्रवाद एक विवाद” में राष्ट्रवाद की सीमाओं का विश्लेषण डॉ नीलम महेंद्र कृत राष्ट्रवाद एक विवाद निश्चित हीएक महत्वपूर्ण कृति है कम से कम पठनीय एवं विचारणीय तो अवश्य ही है। इसचिंतन पटक कृति के आवरण पर पुस्तक के शीर्षक के साथ ही उसकी मूल विषय वस्तुको स्पष्ट करने वाला वाक्य राष्ट्

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क्या यह दबी चिंगारी को हवा देने की कोशिश है?

21 नवम्बर 2018
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क्या यह दबी चिंगारी को हवा देनेकी कोशिश है?अभीज्यादा दिन नहीं हुए थे जब सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने एक कार्यक्रम के दौरानपंजाब में खालिस्तान लहर के दोबारा उभरने के संकेत दिए थे। उनका यह बयान बेवजहनहीं था क्योंकि अगर हम पंजाब में अभी कुछ ही महीनों में घटित होने वाली घटनाओं परनजर डालेंगें तो समझ मे

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बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपा के लिए केस स्टडी हो सकते हैं

4 जनवरी 2019
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बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपाके लिए केस स्टडी हो सकते हैं वैसे तो आने वाला हर साल अपनेसाथ उत्साह और उम्मीदों की नई किरणें ले कर आता है, लेकिन यह सालकुछ खास है। क्योंकि आमतौर पर देश की राजनीति में रूचि न रखनेवाले लोग भी इस बार यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि 2019 में राजनीति का ऊँठ किस करवटबैठेगा। खास

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सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदम

15 जनवरी 2019
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सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदमभारत की राजनीति का वो दुर्लभदिन जब विपक्ष अपनी विपक्ष की भूमिका चाहते हुए भी नहीं नहीं निभा पाया और न चाहतेहुए भी वह सरकार का समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया, इसे क्या कहा जाए?कांग्रेस यह कह कर क्रेडिट लेनेकी असफल कोशिश कर रही है कि बिना उसके समर्थन के भाजपा इस बिल को

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महागठबंधन देश हित या स्वार्थ

26 जनवरी 2019
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महागठबंधन देश हित या स्वार्थ‘’मंजिल दूर है, डगर कठिन हैलेकिन दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते चलिए", कोलकाता मेंविपक्षी एकता के शक्ति प्रदर्शन के लिए आयोजित ममता की यूनाइटिड इंडिया रैली में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का यहएक वाक्य "विपक्ष की एकता" और उसकी मजबूरी दोनों का ही बखानकरने के लिए काफी है।

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नए भारत का आगाज़

18 फरवरी 2019
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नए भारत का आगाज़ यह सेना की बहुत बड़ी सफलता है किउसने पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड अब्दुल रशीद गाज़ी को आखिरकार मार गिराया हालांकिइस ऑपरेशन में एक मेजर समेत हमारे चार जांबांज सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए। देश इस समय बेहद कठिन दौर से गुज़र रहा है क्योंकि हमारे सैनिकों कीशहादत का सिलसिला लगातार जारी है। अभ

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न्यू इंडिया

18 फरवरी 2019
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न्यू इंडिया

18 फरवरी 2019
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ट्रिपल तलक आस्था नही, अधिकारों की लड़ाई है ।

29 जुलाई 2019
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ट्रिपल तलक आस्था नही,अधिकारों की लड़ाई है ।ट्रिपल तलाक पर रोक लगाने काबिल लोकसभा से तीसरी बार पारित होने के बाद एक बार फिरचर्चा में है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में ही इसे असंवैधानिक करार दे दिया था लेकिन इसे एक कानून का रूप लेने केलिए अभी और कितना इंतज़ार करना होगा यह तो समय ही बताएगा। क्योंकि

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केवल जन आन्दोलन से प्लास्टिक मुक्ति अधूरी कोशिश होगी

29 सितम्बर 2019
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केवल जन आन्दोलन से प्लास्टिकमुक्ति अधूरी कोशिश होगीवैसे तो विज्ञान के सहारे मनुष्यने पाषाण युग से लेकर आज तक मानव जीवन सरल और सुगम करने के लिए एक बहुत लंबासफर तय किया है। इस दौरान उसने एक से एक वो उपलब्धियाँ हासिल कीं जोअस्तित्व में आने से पहले केवल कल्पना लगती थीं फिर चाहे वो बिजली से चलने वालाबल्ब

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आपने स्वार्थ के लिये जनता को मुर्ख न बनाएं

25 दिसम्बर 2019
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आपनेस्वार्थ के लिये जनता को मुर्ख न बनाएं जब देश के पढ़े –लिखे बुद्धिजीवी लोग जिनमें कुछ डॉक्टर वकील, शिक्षक,प्रोफेसर, स्कूल कॉलेज के डायरेक्टर, पत्रकार, संपादक जैसे लोग सी ए ए और एन आर सी में अंतर समझे बिना मुस्लिम समुदाय को भृमित करने वाली बातें सोशल मीडिया मेंकथित

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कब तक सामने आते रहेंगे प्यारेमियाँ जैसे चरित्र ?

25 जुलाई 2020
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कब तक सामने आते रहेंगे प्यारेमियाँ जैसे चरित्र ? “हरचेहरेपर नकाबहै यहाँबेनकाबकोई चेहरानहींहर दामनमें दागहै यहाँबेदागकोई दामननहीं।यह अजीबशहर हैजहाँऔरत बेपर्दाकर दीजाती हैलेकिनसफेदपोशोंके नकाबकायम हैंयहाँ” मध्यप्रदेशकीराजधानीएकबारफिरकलंकितहुई।एकबारफिरसाबितहुआकिहमएकसभ्यसमाजहोनेकाकितनाभीढोंगकरेंलेकिनसत

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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति

3 अगस्त 2020
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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद कीराजनीति वैशविक परिदृश्य में कुछ घटनाक्रम ऐसेहोते हैं जो अलग अलग स्थान और अलग अलग समय पर घटित होते हैं लेकिन कालांतर में अगरउन तथ्यों की कड़ियाँ जोड़कर उन्हें समझने की कोशिश की जाए तो गहरे षड्यंत्र सामने आतेहैं। इन तथ्यों से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सामान्य से लगने

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मौत में अपना अस्तित्व तलाशता मीडिया

3 सितम्बर 2020
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मौतमेंअपनाअस्तित्वतलाशतामीडियाआजकलजबटीवीऑनकरतेहीदेशकालगभगहरचैनल "सुशांत केस में नया खुलासा" या फिर "सबसे बडी कवरेज" नाम के कार्यक्रम दिन भर चलाता है तो किसी शायर के ये शब्द याद आ जाते हैं, "लहूकोहीखाकरजिएजारहेहैं,हैखूनयाकिपानी,पिएजारहेहैं।" ऐसालगताहैकिएकफिल्मीकलाकारमरतेमरतेइनचैनलोंकोजैसेजीवनदानदेगय

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क्या लोकतांत्रिक सरकार की यही कार्यशैली है ?

15 सितम्बर 2020
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महाराष्ट्र की राजनीति में इस वक्त भूचाल आया हुआ है। जिस प्रकार से बीएमसी ने अवैध बताते हुए नोटिस देने के 24 घंटो के भीतर ही एक अभिनेत्री के दफ्तर पर बुलडोजर चलाया और अपने इस कारनामे के लिए कोर्ट में मुंह की भी खाई उससे राज्य सरकार के लिए भी एक असहज स्थिति उत्पन्न हो गई है। इससे बचने के लिए भले ही शि

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वो यात्रा जो सफलता से अधिक संघर्ष बयाँ करती है।

19 सितम्बर 2020
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वो यात्रा जो सफलता से अधिक संघर्षबयाँ करती है।आज भारत विश्व में अपनी नई पहचान केसाथ आगे बढ़ रहा है। वो भारत जो कल तक गाँधी का भारत था जिसकी पहचान उसकी सहनशीलताथी,आज मोदी का भारत है जो खुद पहल करता नहीं, किसीको छेड़ता नहीं लेकिन अगर कोई उसे छेड़े तो छोड़ता भी नहीं। गाँधी के भारत से शायद हीकिसी ने सर्जिकल

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किसान मुद्दा क्या केवल विपक्ष जिम्मेदार है?

2 अक्टूबर 2020
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किसानमुद्दा क्या केवल विपक्ष जिम्मेदार है?ऐसापहली बार नहीं है कि सरकार द्वारा लाए गए किसी कानून का विरोध कांग्रेस देश कीसड़कों पर कर रही है। विपक्ष का ताजा विरोध वर्तमान सरकार द्वारा किसानों से संबंधित दशकों पुराने कानूनों में संशोधन करके बनाए गए तीन नए कानूनोंको लेकर है। देखाजाए तो ब्रिटिश शासन काल

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बिहार चुनाव फैसला किसके पक्ष में।

16 अक्टूबर 2020
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बिहार चुनाव फैसला किसके पक्ष में।बिहारदेश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है जहाँ कोरोना महामारी के बीच चुनाव होने जारहे हैं और भारत शायद विश्व का ऐसा पहला देश। आम आदमी कोरोना से लड़ेगा औरराजनैतिक दल चुनाव। खास बात यह है कि चुनाव के दौरान सभी राजनैतिक दल एक दूसरेके खिलाफ लड़ेंगे लेकिन चुनाव के बाद अपनी

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बंगाल चुनाव देश की राजनीति की दिशा तय करेगा।

26 दिसम्बर 2020
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बंगाल चुनाव देश की राजनीति की दिशातय करेगा।बंगाल एक बार फिर चर्चा मेंहै। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर,स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, औरोबिंदो घोष, बंकिमचन्द्र चैटर्जी जैसी महान विभूतियोंके जीवन चरित्र की विरासत को अपनी भूमि में समेटे यह धरती आज अपनी सांस्कृतिक धरोहरनहीं बल्कि अपनी हिंसक राजनीति के

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