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धरती की गुहार अम्बर से

19 अगस्त 2017

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प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |

दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||


पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकल

मेरी गोदी जो खेल रहे थे, नदियाँ, जलाशय, पेड़-पल्लव

पशु पक्षी सब भूखे प्यासे, हो गये हैं जर्जर

भटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसको

प्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |


इक की गलती भुगत रहे हैं, बाकी सब बे-कल बे-हाल

इक-इक कर सब वृक्ष काट कर, बना लिया महल अपना

छेद-छेद कर मेरा सीना, बहा रहे हैं निर्मल जल

आहत हो कर इस पीड़ा से, देख रही हूँ तुम को

प्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |


सुन कर मेरी विनती अब, नेह अपना छलकाओ तुम

गोद में मेरी बिलख रहे जो, उनकी प्यास बुझाओ तुम

संतति कई होते इक माँ के, पर माँ तो इक होती है

एक करे गलती तो क्या, देती है सजा सबको ?

प्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |


जो निरीह,आश्रित हैं जो, रहते हैं मुझ पर निर्भर

मेरा आँचल हरा भरा हो, तब ही भरता उनका उदर

तुम तो हो प्रियतम मेरे, तकती रहती हूँ हर पल

अब जिद्द छोड़ो, इक की खातिर, दण्ड न दो सबको

प्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |


झड़ी लगा कर वर्षा की, सिंचित कर दो मेरा दामन

प्रेम की बूंदों से छू कर, हर्षित कर दो मेरा तनमन

चहके पंक्षी, मचले नदियाँ, ओढूं फिर से धानी चुनर

बीत गए हैं बरस कई, किये हुए आलिंगन तुमको

प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को ||

मीना धर


रेणु

रेणु

आदरणीय मीना जी आपकी सुन्दर रचना पर दो दिन से लिखने के लिए प्रयासरत थी ---- पर हो ना सका -- आज संभव हो पा रहा है ----- धरती की इस करुणा भरी पुकार के बाद की स्थिति पर मेरी ये पंक्तियाँ सादर समर्पित हैं ---- सृजन की ये अद्भुत बेला चले सृष्टि के रास का खेला ; बरसे अम्बर झूमे धरती तन --मन में बूंद - बूंद रस भरती हरित वसन में सजा है कण कण संतप्त हृदय को शीतल करती खग दल ने अम्बर चूम लिया लगा रहे कलरव का मेला सृजन की ये अद्भुत बेला !! अनुपम रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभ कामना -------

22 अगस्त 2017

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

बहुत सुंदर भावभीनी रचना

20 अगस्त 2017

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

अच्छा गीत है |

19 अगस्त 2017

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रचनाएँ
meenadharkikavita
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मैं कभी-कभी यूँ ही अपने भावों को कविता का रूप दे देती हूँ
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गृहणी हूँ ना !

18 अगस्त 2017
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गृहणी हूँ ना ! नही आता तुकान्त – अतुकान्तमैं नही जानती छन्द-अलंकार लिखती हूँ मै, भागते दौड़ते, बच्चों को स्कूल भेजते ऑफिस जाते पति को टिफिन पकड़ातेआटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते ब्लाउंज की आस्तीन से पसीना सुखातेअपनी भावनाओं को दिल में छुपाते,मुस्कुराते, सारे दिन की थकन लिए रात में आते-आते बि

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धरती की गुहार अम्बर से

19 अगस्त 2017
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प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकलमेरी गोदी जो खेल रहे थे, नदियाँ, जलाशय, पेड़-पल्लवपशु पक्षी सब भूखे प्यासे, हो गये हैं जर्जरभटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसकोप्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |इक की

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दोहे

28 सितम्बर 2017
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हे भगवन ! वर दीजिए, रहे सुखी संसार |घर परिवार समाज पर, बरसे कृपा अपार ||दीन दुखी कोई न हो, औ सूखे की मार |अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||मीना

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वंदना

16 अक्टूबर 2017
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हे जग जननी आस तुम्हाराशब्दों को देती तुम धारावाणी को स्वर मिलता तुमसेकण-कण में है वास तुम्हारा |दिनकर का है ओज तुम्ही सेशशि की शीतलता है तुमसेनभ गंगा की रजत धार मेंझिलमिल करता सार तुम्हारा |सिर पर रख दो वरद हस्त माँलिखती रहूँ अनवरत मैं माँहर पन्ने पर अंतर्मन केलिखती हूँ उपकार तुम्हारा || मीना धर

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