वेद पुरानो के अध्यन से सिर्फ एक बात निकलकर आती है की जितने भी इस प्रथ्वी पर देव,महापुरुष अवतरित हुए उन सभी का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था बनाना था ! भगवान श्रीराम जी ने एक राजा के होने के बाबजूध पिता के वचन की खातिर राजमहल का त्याग कर वनवासी हो गए क्योकि कुल का यह सदाचार था की प्राण चले जाए पर वचन ना जाये इसीलिए भगवान् ने एक कर्तब्य परायण पुत्र की भूमिका निभाते हुए कुल की मर्यादा और पिता के आदेश का पालन किया ! वहीँ दूसरी ओर एक भाई ने भाई के लिए राजमहल का त्याग कर दिया और उसने भी 14 वर्ष वन में रहने का निर्णय लिया भगवान् के भ्राता भरत के इस त्याग और बलिदान को पूरे समाज और प्रजा ने सराहा भरत का भाई श्रीराम जी के प्रति प्रेम इतना था की निश्चित ही श्रीरामचरित मानस की उस लीला ने हजारों वर्ष तक हमारे देश में भाई भाई के प्रेम को ज़िंदा रखा श्रीरामचरित मानस में तो यहां तक कह दिया है की सारा जग राम को जपता है और श्रीरामजी श्रीभरत जी को जपते थे इसका उद्देश्य यही था की एक परिवार के स्तम्भ भाई-भाई होते है भरत जी की भाई के ंप्रतिः प्रीती को इतना सराहा की श्रीराम जी भरत जी को ही जपने लगे यानी आने वाले समय में इस प्रेम को याद रखकर भाइयों में प्रेम बना रहे सायद यही उद्देश्य था भगवान् श्री राम जी का !!क्यों की जहाँ भाइयो में प्रेम नहीं रहा तो निश्चित ही परिवार टूटेगा परिवार टूटने पर सामाजिक प्रेम भाईचारा समाप्त हो जायेगा और उससे हिंसा उतपन्न होगी जिससे सामाजिक व्यवस्था बिगड़ने लगेगी ! वहीँ पिता एक परिवार का मुखिया होता है जिन परिवारों में मुखिया की बात को तबज्जो दिया जाता हो परिवार के मुखिया की बनायीं गयी व्यवस्थाअनुशार सभी सदस्य चलते हो निश्चित ही वह घर किसी मंदिर से कम नहीं होता ! रामचरित मानसा में रावण का पुत्र मेघनाथ ये समझ चूका था की जिससे वह युद्ध कर रहा है वह कोई आम मनुष्य नहीं बल्कि स्वम् नारायण का अवतार है यह बात उन्होंने अपने पिता रावण को भी बताई पर रावण ने यह कहकर उसे दुत्कार दिया की तुम मौत के भय के कारन ऐसा बोल रहे हो , यह सुनकर मेघनाथ ने पिता से कहा की आज में यह जानकार की मेरी मौत निश्चित है तब भी में पिता की खातिर रणभूमि में स्वम् नारायण से युद्ध करूँगा रावण दल में मेघनाथ ही एक ऐसा योद्धा था जिसका वध करते श्रीरामजी ने कहा की यह पिता का भक्त है इसलिए मेघनाथ का वध करना साधारण नहीं है यानी रामायण में दूसरी जगह स्वम भगवान के द्वारा बतया गया है की जो पिता का भक्त है उस पर भगवान् की सदैव कृपा रहती है ,वहीँ भगवान श्रीशिव जी के पुत्र श्री गणेश जी को माता की आज्ञा के पालन में श्रीशिवजी के कोप का भाजन होना पड़ा यहां माता की आज्ञा के पालन में प्राण न्योछार करने वाले माँ के भक्त श्रीगणेश जी को भगवन ने स्रवश्रेष्ठता का वरदान दिया यानी