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वक़्त सील रहा हूँ ।

13 सितम्बर 2017

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आँगन में गिरे-बिखरे, फटे-पुराने कुछ पल चुन रहा हूँ।

बचपन के सपनों की गुदड़ी से मैं वक़्त सिल रहा हूँ ।।


जिल्द लगा कर कुछ पसंद की किताबें रखी थी छज्जे पर ।

इन दिनों कलम से रेखांकित उसकी पंक्तियों को पढ़ रहा हूँ ।।


रंग बिरंगी स्याही से लिखकर दोस्तों ने बधाइयां भेजी थी ।

रद्दी वाले डब्बों में खुशियों के वो सारे धड़कन ढूंढ रहा हूँ ।।


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ज़हर

12 सितम्बर 2017
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जहर सा फैल गया है माहौल में,सांस लीजियेगा ज़रा संभाल कर ।।कम सांसों पर जीने का रियाज़ कीजिये,के ज़िन्दगी आपकी बहुत क़ीमती है ।।

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वक़्त सील रहा हूँ ।

13 सितम्बर 2017
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आँगन में गिरे-बिखरे, फटे-पुराने कुछ पल चुन रहा हूँ।बचपन के सपनों की गुदड़ी से मैं वक़्त सिल रहा हूँ ।।जिल्द लगा कर कुछ पसंद की किताबें रखी थी छज्जे पर ।इन दिनों कलम से रेखांकित उसकी पंक्तियों को पढ़ रहा हूँ ।।रंग बिरंगी स्याही से लिखकर दोस्तों ने बधाइयां भेजी थी ।रद्दी वाले डब्बों में खुशियों के वो सार

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ठोकर

13 सितम्बर 2017
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सुना था कई बार आते जाते ठोकरों से ।जिंदगी हौले से कान में कुछ कह गई थी ।।मान लेता तो अपनी नज़रों में गिर जाता ।ये नज़रें गुमाँ से ज्यादा क्या देखती है कभी ?!!

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