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जीवन

20 सितम्बर 2017

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घर चाहे कैसा भी हो... उसके एक कोने में... खुलकर हंसने की जगह रखना... सूरज कितना भी दूर हो... उसको घर आने का रास्ता देना... कभी कभी छत पर चढ़कर... तारे अवश्य गिनना... हो सके तो हाथ बढ़ा कर... चाँद को छूने की कोशिश करना... अगर हो लोगों से मिलना जुलना... तो घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना... भीगने देना बारिश में... उछल कूद भी करने देना... हो सके तो बच्चों को... एक कागज़ की किश्ती चलाने देना... कभी हो फुरसत, आसमान भी साफ हो... तो एक पतंग आसमान में चढ़ाना... हो सके तो एक छोटा सा पेंच भी लड़ाना... घर के सामने रखना एक पेड़... उस पर बैठे पक्षियों की बातें अवश्य सुनना... घर चाहे कैसा भी हो... घर के एक कोने में... खुलकर हँसने की जगह रखना... चाहे जिधर से गुज़रिये... मीठी सी हलचल मचा दिजिये... उम्र का हरेक दौर मज़ेदार है... अपनी उम्र का मज़ा लिजिये... जिंदा दिल रहिए जनाब... ये चेहरे पे उदासी कैसी... वक्त तो बीत ही रहा है... उम्र की एेसी की तैसी!!!

अमन सिंह की अन्य किताबें

21 सितम्बर 2017

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सलाह

13 सितम्बर 2017
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*अपने घर के युवा बच्चों या स्कूल कॉलेज के युवा बच्चों को उपासना(मन्त्र जप-ध्यान-स्वाध्याय) से कैसे जोड़ें?*पढ़ना है बहुत पढ़ना है, कम्पटीशन की तैयारी करना या जॉब का बहुत लोड है। उपासना के लिए वक़्त नहीं है।दो कहानियों के माध्यम से उपासना का महत्त्व समझाएं:-1- दो लकड़हारों में पेड़ काटने की कम्पटीशन हुई, द

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जीवन

20 सितम्बर 2017
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घर चाहे कैसा भी हो...उसके एक कोने में...खुलकर हंसने की जगह रखना...सूरज कितना भी दूर हो...उसको घर आने का रास्ता देना...कभी कभी छत पर चढ़कर...तारे अवश्य गिनना...हो सके तो हाथ बढ़ा कर...चाँद को छूने की कोशिश करना...अगर हो लोगों से मिलना जुलना...तो घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना...भीगने देना बारिश में...उछल

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समय चक्र

30 अक्टूबर 2017
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*एक अच्छी कविता है, जो मनन योग्य है।*जाने क्यूँ,अब शर्म से,चेहरे गुलाब नहीं होते।जाने क्यूँ,अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।जाने क्यूँ,अब चेहरे,खुली किताब नहीं होते।सुना है,बिन कहे,दिल की बात,समझ लेते थे।गले लगते ही,दोस्त हालात,समझ लेते थे।तब ना फेस बुक था,ना स्मार्ट

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