shabd-logo

छिद्रान्वेषी

20 सितम्बर 2017

155 बार देखा गया 155
उनके वार्तालाप -- में -- उनकी वार्ता-- उनके मूल्यांकन -- में-- उनका न्यून अंकन-- वे छिद्रान्वेषी-- संत में -- असंत भेषी-- उनके हास्य परिहास-- में-- उनका ह्रास-- उनके भावों -- में-- उनका अभाव-- वे महादानी--- दानियों में--- अभिमानी--- उनके उत्सव-- में--- उनके शव-- उनकी सम्पनता-- में-- उनकी विपन्नता-- वे बुद्धिमान--- बुद्धिमानियों में--- न बुद्धि न मान---
1

प्रथम लेख

10 सितम्बर 2017
0
3
2

यह प्रथम लेख ।।।उल्लेख है।।कि सामान्य हूँ ।न ज्ञानी हुँ ।न ज्ञान से अज्ञान हूँ।खोज में हूँ।।उसके, जो पूर्ण है , सम्पूर्ण है ।सरल भी और गूढ़ है।।नित नीलाकाश में ,व्यस्त मैं, अवकाश में,वह छवि यथा शशि - यथा रविवह सत्ययथा कथनीय - यथा अकथ्यप्राप्त हो। आप्त को।।

2

बादल

11 सितम्बर 2017
0
2
3

नीले आकाश में बादलबादलों के दल के दलवे रजाई से रुई से पाले सेनरम मुलायम उड़ते पंख वाले सेविशाल भरे भरेफूले सेडोलते रहते जहां तहाँझूले से

3

।। प्रद्युमन..तुम्हारी याद में ।।

17 सितम्बर 2017
0
2
3

(रेयान इंटरनेशनल स्कूल,गुरुग्राम के छात्र सात साल के प्रद्युमन के लिए.....जिसके साथ स्कूल परिसर में निर्ममता हुई)----*।।प्रद्युमन..तुम्हारी याद में।।*---- *(द्वारा :-कुमार मनीष)*----( 8418056591)-----प्रद्युमन...तुम गए नहीं हो---प्रद्युमन...तुम यहीं कहीं हो---मैंने देखी तुम्हारी तस्वीर,--

4

मच्छर

19 सितम्बर 2017
0
1
0

अपने मित्र से पूँछा कि----बहुत देर से एक मच्छर काट रहा है बताओ में क्या करूं----मच्छर को कैसे मारूं या खुद डूब मरूं----तो मित्र बोले कि----मच्छर से कटवाने में अपना सहयोग दीजिये----मच्छरों को अपना रक्त दान कीजिये----वैसे भी आम आदमी हो आम आदमी के खून को कौन पूँछेगा----मच्छर नहीं तो कोई और आकर आपका ख

5

छिद्रान्वेषी

20 सितम्बर 2017
0
0
0

उनके वार्तालाप --में --उनकी वार्ता--उनके मूल्यांकन --में--उनका न्यून अंकन--वे छिद्रान्वेषी--संत में --असंत भेषी--उनके हास्य परिहास--में--उनका ह्रास--उनके भावों --में--उनका अभाव--वे महादानी---दानियों में---अभिमानी---उनके उत्सव--में---उनके शव--उनकी सम्पनता--में--उनकी विपन्नता--वे बुद्धिमान---बुद्धिमान

6

।।मेरे हृदय में बस जाओ।।

21 सितम्बर 2017
0
0
2

मेरे हृदय में बस जाओ---तुम मेरे हो ---प्रेम तुम्ही से---आओ मुझमें समाओ---मेरे हृदय में बस जाओ---दिवा निशा का भान नहीं है---प्रेम का मधुमय गान यही है---विकल विकल जीवन यह मेरा---प्रेमपाश ने तन मन घेरा---और न अब तरसाओ---मेरे हृदय में बस जाओ---प्रेम की लह लह जले अंगीठी--- प्रेम की पीड़ा मीठी मीठी---प्रेम

7

।।बन्द दरवाजे।।

25 सितम्बर 2017
0
0
1

बन्द दरवाजों से---आती आवाजों से--- पता चलता है कि---कोई वहां रहता है कि---खुला नहीं था वह दरवाजा ---कई सालों---पूंछा था मैंने कई बार---मुहल्ले वालों से---तो कोई कुछ तो कोई कुछ कहता है।---जैसे भूले थे कि कोई वहां रहता है।।---बाहर धूल की परतें ऊपर मकड़ी के--- जाले थे---अंदर दिखता अँधेरा, न रौशनी---,न उ

8

।।शर्ट के बटन टूटे थे।।

29 सितम्बर 2017
0
1
0

।।शर्ट के बटन टूटे थे।।-(द्वारा:-कुमार मनीष)-(8418056591)---शर्ट के बटन टूटे थे।।--उस दिन पकड़ा-पकड़ी में तुम,---झूठे-मूठे-रूठे थे।---शर्ट के बटन टूटे थे।।---घेर लिया था मैंने कसकर,---तुम मेरी बाँहों में फंसकर;---अब जाने क्या होने वाला,---यही सोच भागे थे हँसकर;---दूर खड़े खिल-खिल हँसते थे;---जब तुम मुझ

9

।। बुझ गए सब दिए ।।

3 अक्टूबर 2017
0
1
3

।।बुझ गए सब दिए।।- (द्वारा-:©कुमार मनीष)-- (8418056591)--- बुझ गए सब दिए ,--- निराश चहरे हो गए;--- आस में जब उठे,--- कदमों पे पहरे हो गए।--- बुझ गए सब दिए,--- निराश चहरे हो गए।--- रात है गहरी घनी कि,--- धीरे बहता रक्त है।--- हर दिशा चुप सी बैठी,--- और ठहरा वक्त है।--

10

।।आईये-खाना-खाइये।।

4 अक्टूबर 2017
0
1
0

।।आईये-खाना-खाइये।।--(द्वारा:-कुमार मनीष)--टोकरी में रखे,पके-पके;---लाल-लाल टमाटर,---हरी-हरी धनिया,मटर,---और मिर्ची ;--- टेडी-मेड़ी-तिरछी;---और बगल में खोया-पनीर,---पास ही तैयार,---पतीली में काजू वाली खीर;---दो और सब्जियां,---एक सूखी-एक रसीली;---साथ में दाल वाली कचौड़ी,---अच्छे से तली;---काली मिर्च-लौ

11

।।जो मन आये लिख डालो।।

6 अक्टूबर 2017
0
1
0

।।जो मन आये लिख डालो।।(द्वारा:-©कुमार मनीष)(8418056591)मन में छिड़ी हो जंग,तो लिख डालो;---कोई न हो जब संग,तो लिख डालो;---खिलें या सूखें रंग,तो लिख डालो;---मन-की-उदासी-हो--- बात-ताज़ी-बासी-हो---हारे-हो-जीते-हों---दिन-जैसे-बीते-हों---"लिख-डालो"---कोई छोड़ दिया,कोई तोड़ दिया,---कोई दुखती नब्ज़ मरोड़ दिया;---

12

।।प्रणाम।।

7 अक्टूबर 2017
0
0
0

।।प्रणाम।।-(द्वारा:-कुमार मनीष)--"प्रणाम"---स्वीकार्य हो ,---निराकार को ।"---"शुभ्र संयोजन ,---मग्न-मुग्ध-उत्सुक जनगण"---"सहस्त्र प्रज्ज्वलित दीप,--- प्रमुदित विरत महीप"---"दिव्य विरुद यशोगान,---सारूप्य सहज मन प्राण"---"स्वीकार्य हो ,---आत्म को ,---परमात्म को ।"---(द्वारा-:कुमार मनीष)

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए