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वंदना

16 अक्टूबर 2017

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हे जग जननी आस तुम्हारा

शब्दों को देती तुम धारा

वाणी को स्वर मिलता तुमसे

कण-कण में है वास तुम्हारा |

दिनकर का है ओज तुम्ही से

शशि की शीतलता है तुमसे

नभ गंगा की रजत धार में

झिलमिल करता सार तुम्हारा |

सिर पर रख दो वरद हस्त माँ

लिखती रहूँ अनवरत मैं माँ

हर पन्ने पर अंतर्मन के

लिखती हूँ उपकार तुम्हारा ||

मीना धर

11 नवम्बर 2017

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

अस्वस्थ था . इसलिए वंदना आज पढ़ पाया . बहुत ही सुगठित , मधुर और अपने आप मैं पूर्ण रचना है .बस ऐसे ही लिखती रहिये . बहुत बहुत शुभ कामनाएं .

6 नवम्बर 2017

रेणु

रेणु

आदरणीय मीना जी ---- माँ वीणावादिनी की अभ्यर्थना में लिखी गयी आपकी पंक्तियाँ बहुत ही भावपूर्ण और लाजवाब हैं | सस्नेह शुभकामना आपको --------

16 अक्टूबर 2017

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रचनाएँ
meenadharkikavita
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मैं कभी-कभी यूँ ही अपने भावों को कविता का रूप दे देती हूँ
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गृहणी हूँ ना !

18 अगस्त 2017
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गृहणी हूँ ना ! नही आता तुकान्त – अतुकान्तमैं नही जानती छन्द-अलंकार लिखती हूँ मै, भागते दौड़ते, बच्चों को स्कूल भेजते ऑफिस जाते पति को टिफिन पकड़ातेआटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते ब्लाउंज की आस्तीन से पसीना सुखातेअपनी भावनाओं को दिल में छुपाते,मुस्कुराते, सारे दिन की थकन लिए रात में आते-आते बि

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धरती की गुहार अम्बर से

19 अगस्त 2017
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प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकलमेरी गोदी जो खेल रहे थे, नदियाँ, जलाशय, पेड़-पल्लवपशु पक्षी सब भूखे प्यासे, हो गये हैं जर्जरभटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसकोप्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |इक की

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दोहे

28 सितम्बर 2017
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हे भगवन ! वर दीजिए, रहे सुखी संसार |घर परिवार समाज पर, बरसे कृपा अपार ||दीन दुखी कोई न हो, औ सूखे की मार |अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||मीना

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वंदना

16 अक्टूबर 2017
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हे जग जननी आस तुम्हाराशब्दों को देती तुम धारावाणी को स्वर मिलता तुमसेकण-कण में है वास तुम्हारा |दिनकर का है ओज तुम्ही सेशशि की शीतलता है तुमसेनभ गंगा की रजत धार मेंझिलमिल करता सार तुम्हारा |सिर पर रख दो वरद हस्त माँलिखती रहूँ अनवरत मैं माँहर पन्ने पर अंतर्मन केलिखती हूँ उपकार तुम्हारा || मीना धर

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