shabd-logo

साम्यवादी मार्क्स बनाम दक्षिणपंथी मोदी का ७ नवंबर

15 नवम्बर 2017

194 बार देखा गया 194
कार्ल मार्क्स ने 1848 के अपने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में कहा था कि साम्यवादी क्रांति का लक्ष्य उत्पादन के साधनों पर विश्व के मजदूरों का आधिपत्य स्थापित करके पूंजीवाद की कब्र खोदना है। एक नई समतामूलक संस्कृति को जन्म देना, समाज को वर्गविहीन बनाना और विश्व विजय करना था। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मार्क्स ने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, वर्ग संघर्ष और अतिरिक्तमूल्य के सिद्धांत प्रतिपादित किए और हिंसक क्रांति का समर्थन किया। मार्क्स के जीते जी तो कुछ नहीं हुआ मगर उसके जाने के 30-35 साल बाद रोजा लंग्जमबर्ग, लियोन वॉल्सकी और लेनिन जैसे नेताओं ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया व रुस में क्रांति कर दी। रुसी क्रांति पिछले सौ साल की सबसे बढ़ी घटना है। पूरा विश्व प्रथम विश्वयुद्ध में उलझा हुआ था। रुस की जारशाही, ऑस्ट्रो-हंगेरियन, जर्मन, तुर्क और ब्रिटिश साम्राज्य अंदर से हिल रहे थे। ऐसे में व्लादिमीर येलिच लेनिन के नेतृत्व में जो खूनी क्रांति हुई वह वैसी नहीं थी जैसे फौजी तख्ता पलट हमारे पड़ोसी देशों में होते रहते हैं। यह क्रांति 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से भी अलग थी। रुसी क्रांति का विश्वव्यापी असर हुआ। पूर्वी यूरोप के अनेक देश जैसे यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, पूर्वी जर्मनी आदि साम्यवादी हो गए। पश्चिम में क्यूबा तथा पूर्व तक चीन लाल हो गए। भारत, फ्रांस, इंडोनेशिया, ब्रिटेन, वियतनाम, अफगानिस्तान और ईराक जैसे देशों पर लाल नहीं तो समाजवादी रंग तो चढ़ ही गया। पूंजीवाद के विरुद्ध जंग पूरे विश्व में चमकने लगी। साम्यवाद के नाम पर खून की नदियां बहीं। करोड़ों लोग मारे गए। 50 साल तक विश्व शीतयुद्ध में सिहरता रहा। लेकिन साम्यवादी क्रांति के इस शताब्दी वर्ष में यह सोचने पर विवश होना पड़ रहा है कि 70-80 साल में ही यह क्रांति दिवंगत क्यों हो गई। चीन की दुकान पर बोर्ड तो साम्यवाद का लगा है मगर माल अब वहां पूंजीवाद का बिकता है। मार्क्स एवं लेनिन की क्रांति कुछ ही देशों तक सिमटकर विश्व धर्म नहीं बन पाई। रुसी क्रांति के विश्व धर्म नहीं बन पाने के निम्न कारन हो सकते हैं। प्रथमत: यह क्रांति मानव स्वभाव के विपरीत थी। हिंसात्मक क्रांति के बाद भी आम जनता पर तानाशाही थोपे रखना अव्यावहारिक सिद्ध हुआ। लाखों करोड़ों लोग केवल मजबूरी में सिर झुकाते रहे और मन से उन्होंने कभी साम्यवाद को स्वीकर नहीं किया। मामला केवल यहीं तक रहता तो ठीक था मगर साम्यवादियों ने राज्य को समाप्त करने के स्थान पर राज्य को ही महादैत्य में परिवर्तित कर दिया जिसने सोवियत साम्राज्य को ही कच्चा चबा लिया। दूसरा कम्युनिस्ट पार्टी का सर्वेसर्वा बन जाना। पार्टी के अधिकारी धन्ना सेठ व अहंकारी बन गए। जनता की सुख-सुविधाओं की उन्हें कोई परवाह नहीं थी। लेख कों, पत्रकारों, इतिहासकारों, कलाकारों और विद्वानों को पार्टी नेताओं की तारीफ के कसीदे काढने होते थे। उनके भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नहीं होता था। संसद व विधानसभाएं रबर स्टैंप व विपक्ष शून्य। इसलिए जब सोवियत व्यवस्था के विरुद्ध बगावत हुई तो लोगों ने राहत की सांस ली। कम्युनिस्ट पार्टी के कमजोर होते ही यूएसएसआर भी टुकड़े-टुकड़े हो गया। तीसरा सामान्य वर्ग की स्थिति पूंजीवादी सामान्य वर्ग के मुकाबले बहुत कम सुधरी। मार्क्स की सर्वहारा नीति अपनी जड़े जमा ही नहीं सकी। चौथा है विश्व की खेमेबाजी। एक गुट नॉटो-गुट बन गया तथा दूसरा वारसा-समूह। यूएसएसआर (रुस) ने शीतयुद्ध के दौरान अपनी बहुत सी शक्ति खो दी। चीन ने अपनी अलग राह पकड़ ली। यूगोस्वालिया व चेकोस्लाविया जैसे देशों में बगावत हो गई और रुस को छोड़ वारसा-समूह के लगभग सभी देश नॉटो-गुट में शामिल हो गए। गुटनिर्पेक्ष देशों ने भी अपनी अलग राह पकड़ ली। साम्यवादी सपना लुटपिट कर रह गया। व्लादिमीर पुतिन का भी साम्यवाद से मोहभंग हो चुका है और वे साम्यवाद का रास्ता छोड़कर अपना अलग दल आल रशियन क्रांति फ्रंट बनाकर रुस को पुन: शक्तिशाली बनाने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। इसीलिए वे 7.11.2017 को बोल्शेविक क्रांति के सौ साल पूरे होने वाले आयोजनो से दूर रहे तथा इस आयोजन का दूरदर्शन पर प्रसारण तक नहीं किया गया। सबका साथ सबका विकास, भ्रष्टाचार के समूल नाश तथा कालाधन देश में लाकर 15-पंद्रह लाख प्रत्येक भारतीय के खाते में डालने जैसे लोकलुभावन नारों के साथ सत्ता पर काबिज हुए मोदी को जब यह मालूम हुआ कि उनके पैर उखड़ने को हैं तो वे 8 नवंबर, 2016 को रात 8.00 बजे टीवी पर आए व 15.44 लाख की 500-1000 की करेंसी को कागज घोषित कर दिया। 125 करोड़ की आबादी वाले भारतीय अनेक तरीकों से अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। इनमें से अनेक यात्रा में थे, कुछ रिश्तेदारों का ईलाज करा रहे था, कुछ अपना आशियाना तैयार करने में व्यस्त थे तथा अनेकों के घरों में शादियों की तैयारियां चल रही थीं । यात्रियों को बच्चों के लिए खाना व दूध मिलना दूभर हो गया। बीमार बिस्तरों पर दम तोड़ने लगे व रिश्तेदार पैसों की व्यवस्था करने हेतु झूझते दिखे। अनेकों आशियाने तैयार कराने वालों के सपने चकनाचूर हो गए और शादी के खर्च की व्यवस्था न कर पाने वाले अनेक भारतीयों ने आत्महत्याएं करलीं। पूरा का पूरा देश बैंकों तथा एटीएम के सामने लाईन लगाकर खड़ा हो गया। अपनी सेवाएं देते देते बहुत से बैंक कर्मी अपनी जान से हाथ धो बैठे। लुधियाना के एक व्यापार ी ने एक बैंक कर्मी की इसीलिए हत्या करवादी क्योंकि वह उस व्यापारी का 13 लाख रुपया बदली करवाने में असफल रहा था। 100-150 के बीच भारतीय नागरिक अपनीजान से हाथ धो बैठे मगर मोदीजी के तुगलकी फरमानो के बावजूद भी पूरी की पूरी करंसी बैंकों में जमा हो चुकी है। हैरानी की बात तो यह है कि पूरा का पूरा पैसा वापस आ जाने के बाद भी 500-1000 की पुरानी करंसी पकड़ी जा रही है और कुछ नागरिक जिनके पास पुरानी करंसी मौजूद है बदलवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं। 8000 करोड़ नई करंसी छापने पर खर्च करने तथा लगभग 20000 करोड़ का अप्रत्यक्ष व्यय करने के बावजूद भी सरकार तीन मुख्य विषयों अर्थात कालेधन की वसूली, भ्रष्टाचार पर लगाम तथा आतंकवाद के खातमे जैसे विषयों पर केवल गोल पोस्ट ही बदलने को मजबूर है। मतलब साफ है कि खाया पीया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना। अब सरकार के पूरे के पूरे संसाधन यह साबित करने पर खर्च हो रहे हैं कि नोटबंदी भारत को कैशलेस बनाने के लिए लागू की गई है। नोटबंदी के दौरान तो मजबूरी में लोग अधिक दाम देकर भी प्लास्टिक करंसी का इस्तेमाल करते थे। बिचौलियों ने जनता की मजबूरी का खूब फायदा उठाया। मगर जैसे ही बाजार में नकदी उपलब्ध हुई अवांछित स्वाइप मशीनें अव्यावहारिक हो गई हैं। आम नागरिक तो महंगाई की मार से पिस रहा है। बैंक अलग से नए नए तरीके से वसूली कर रहे हैं और कैशलेस के नाम पर या तो चंद भारतीय व्यापारियों की चांदी हो रही है या विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपंनिया बहती गंगा में हाथ धो रही हैं। इस संगठित लूट व कानूनी डाके के बारे में सबकुछ जाँचने-परखने के बावजूद भी सरकार अपनी गलती मानने को तैयार नहीं व तानाशाही और अहंकारी रवैये के माध्यम से बीजेपी के विश्व की सबसे बढ़ी पार्टी का दम भरने के नशे में चूर है। संसद व विधानसभायों को रबर स्टैंप मात्र मानकर सभी घोषनाएं या तो विदेशी धरती से होती हैं या वैधानिक संस्थाओं के बाहर। विरोधियों को देशद्रोही घोषित किया जा रहा है और लेखकों, पत्रकारों, इतिहासकारों, कलाकारों और विद्वानों को अपनी तारीफों के कसीदे काढने को विवश किया जा रहा है। 7 नवंबर, 2017 को सौ साल पूरा करने वाली रुसी क्रांति जिस प्रयोजन हेतु हुई थी वह अर्थहीन हो चुका है। 7 नवंबर, 2017 को एक साल पूरा कर चुकी नोटबंदी का मकसद जनता को समझाने में मोदीजी आजतक असफल हैं। मगर यह दोनो ही घटनाएं इतिहास में अपना स्थान बना चुकी हैं, सदा ही विद्यमान रहेंगी और इनके दुष्परिणामों की याद दिलाती रहेंगी।

विजय कुमार शर्मा की अन्य किताबें

1

भारतीय माटी भारतीय जल

2 सितम्बर 2015
0
4
3

पाकिस्तानी हैं भारतीय गुजरा कलमाटी थी भारतीय और भारतीय थे फलएक समान थे भारतीय हवा, जल और स्थल सूझवान बनाओ भगवान उनको सूझवान बनाओवो भी थे कभी भारतीय घर-बाहर और भारतीय घाटवर्तमान में जो कहलाते हैं पाकिस्तानी खाट, बाट, हाट सूझवान बनाओ भगवान उनको सूझवान बनाओवो भी थे कभी भारतीय तन, मन और धनथे वो भी कभी भ

2

एक किस्सा रेडियो का

31 अक्टूबर 2015
0
1
0

जब भी कोई नई चीज बाजार में आती है तो सभी का मन ललचाता है कि वह उसे मिल जाए। रेडियो भी जब बाजार में आया तो नए-नए कार्यक्रम सुनकर लोग उसे अपने घर लेकर आना चाहते थे। एक व्यकित ने एक डिब्बेनुमा वस्तु से गाने बजते देखे, पैसे जेब में थे ही और झट से उसे खरीद लिया। जगह-जगह उसे अपने साथ लेकर जा रहा था। जब खे

3

एक किस्सा रेडियो का

31 अक्टूबर 2015
0
3
0

जब भी कोई नई चीज बाजार में आती है तो सभी का मन ललचाता है कि वह उसे मिल जाए। रेडियो भी जब बाजार में आया तो नए-नए कार्यक्रम सुनकर लोग उसे अपने घर लेकर आना चाहते थे। एक व्यकित ने एक डिब्बेनुमा वस्तु से गाने बजते देखे, पैसे जेब में थे ही और झट से उसे खरीद लिया। जगह-जगह उसे अपने साथ लेकर जा रहा था। जब खे

4

निर्धन की तरूणी

29 अप्रैल 2016
0
1
0

हुसन को अवगत करादोकि ढूँढे कोई और द्वार मैं निर्धन की तरूणीहूँ मुझे अवकाश नहीं हैबालपन से कठिनाइयों केअंचल में पली-बढ़ी मैं  राशन कार्ड, मध्याह्नभोजन या बने योजना खाद्य सुरक्षा की राशन डीपू, पानी केनल, कुएं की पक्की सखी हूँ मैंचूलहे चौक

5

15 अगस्त को प्रधानमंत्री का भाषण बनाम बलोचिस्तान का विषय

20 सितम्बर 2016
0
0
0

लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त, 2016 को दिए गए भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाषण में बलोचिस्तान के आंदोलकारियों को दिए जाने वाले समर्थन का मामला उठते ही तमाम भारतीय एवं विदेशी गलियारों में एकदम से हलचल बढ़ गई है। सरकार समर्थक भारतीय मीडिया तो जैसे इस अवसर की

6

नोटबंदी स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी मानवीय सनसनी

27 नवम्बर 2016
0
8
5

भारत 1947 मेंअंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत लंबे समयतक भारतीयों ने विभाजन का दर्द झेला। कुछ संभले तो 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965में भारत-पाक युद्ध और दक्षिण भारतीयों का हिंदी विरोधी आंदोलन। प्रधा

7

गरीब कल्याण स्टंट

4 दिसम्बर 2016
0
2
1

जब से सृष्टी सृजित हुई है तबसे ही ताकतवरऔर कमजोर के बीच में अंतर रहा है। भारतीय समाज में भी यह अंतर होना स्वाभाविक है।राजा महाराजाओं के दौर से ही भारतीय समाज बंटने लगा था तथा विदेशिओं ने भारतीयगरीबों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत

8

शैतान विद्वान

5 दिसम्बर 2016
1
4
3

एक समय की बात है कि एक राज्य को भयंकर मूसीबतों ने घेर लिया। पुरानेजमाने के राजाओं के लिए अपनी प्रजा का दुख देखा नहीं जाता था। इसलिए वह राजा जी जानसे अपने राज्य की समस्याओं हो हल करने में जुट गया। राजा भेस बदलकर रात को निकलताऔर दिन में अपने दरबारियों के साथ विचार विमर्श में व्यस्त रहता। साथ ही साथ वह

9

एटीएम

20 दिसम्बर 2016
0
1
1

एटीएम मेरा नाम एटीएम मेरा नामहिंदु-मुस्लिम-सिख-ईसाई की बदहाली से परेशानएटीएम मेरा नाम एटीएम मेरा नामहिंदु-मुस्लिम-सिख-ईसाई की बदहाली से परेशानसोचो लोगो जरा तो सोचो बनी कहानी यह कैसेमेरी नींद और चैन छीना गए कहां आपके पैसे ?नोटबंदी सरकार का

10

मत पूछो हालत फकीर की

24 दिसम्बर 2016
0
3
2

माँ नहीं बन पाने वाली जंग नहीं लड़ पाने वाली चाय नहीं बेच पाने वाली हीरों का झुंड लगाने वाली सैनिक नहीं बन पाने वाली पीर पैगंबर बन बैठने वाली स्वयं पर अश्क करने वाली बीवी पर पहरा बिठाने वाली किसान नहीं बन पाने वाली व्यापार ी नहीं बन पाने

11

जागो प्रजा जागो

30 दिसम्बर 2016
0
2
1

महान चिंतक अरस्तू ने एक समय 6 प्रकार के राज्यों का वर्गीकरण किया था। उनका विश्वास था कि यह साइकिल;चक्करद्ध क्रम में परिक्रमी रहता है। यह साइकिल राजतंत्र से आरंभ होता है और जल्द ही पथभ्रष्ट होकर नादिरशाही में परिवर्तित हो जाता हैए चंद बुद्धि

12

इसे कहते हैं रामराज जी

8 जनवरी 2017
0
4
2

नोटबंदी गई है छा जी करंसी की लगी बाट जी 8 नवंबर गई है आ जी अफवाहों का गर्म बाजार जी टोलनाके बने गले की फांस जी बैंक एटीएम की बढ़ी कतार जी प्रजा को मिला नया रोजगार जी चाय पराठों में मिलती पगार जी रोटी.दाल.चावल.साँबर की जगह टमाटर.रोटी बनी सर्वोत्तम खुराक जी इसे कहते हैं राम

13

ब्रह्मा बेदर्दे

18 जनवरी 2017
0
1
0

14

ब्रह्मा बेदर्दे

18 जनवरी 2017
0
1
1

मंथरा-कैकेयी की जुगलबंदी ने रामायण दी रचवा ब्रह्मा बेदर्दे ब्रह्मास्त्र दिए चलवा ब्रह्मा बेदर्दे शकुणी-दुर्योध्न के षड़यंत्रों ने महाभारत दी लिखवा ब्रह्मा बेदर्दे कर्ण-भीष्म का प्रताप दिया घटवा ब्रह्मा बेदर्दे ईसा-हजरत का बलिदान भाईचारा न सका ला ब्रह्मा बेदर्दे दुनिया को

15

मेक अमेरीका ग्रेट अगेन योजना का भारत पर प्रभाव

22 जनवरी 2017
0
5
1

आखिरकार 20 जनवरी, 2017 को डोनॉल्ड ट्रंप ने अमेरीका के 45वें राष्ट्रपति के रुप में पदभार संभाल लिया। ट्रंप अमेरीका के एक बिलियनर एवं विवादस्पद व्यापार ी हैं तथा अपने बेबाक व्यवहार के कारण अनेक विवादों से जुड़ चुके हैं। राट्रपति चुनाव में कू

16

अंग्रेजी की हिंदी को सीख

30 जनवरी 2017
0
0
1

मैं विदेशी तू नाज-ए-हिंद है भूल मत तू हिंदमाता की बिंदी हैपुष्पक पहला तेरे वतन में ही आया थाआँखों देखा हाल देववाणी ने बयाँ कराया थाधरती पुत्रों तेरों ने ही भूखों का हलनिकाला था पूर्वज मेरों ने पूर्वज तेरों से बहुत कुछचुराया थाअस्त्र-शस्त्र-ब्रह्मास्त्र का डंका तोतेरे

17

कोष मूलो दंड

31 जनवरी 2017
0
0
0

जब से समाज में व्यवस्था स्थापित है तभीसे ही शासकों की ओर से शासन चलाने के लिए प्रजा से कर वसूला जाता रहा है। भारत में भीकर वसूलने का इतिहास बहुत पुराना है। मनु काल हो या महाभारत काल या कालिदास या कोटिल्य के अर्थशास्त्र का प्रसंग लें करव्यवस्था का संदर्भ आता ही है। कालिदास राजा दिलीप का संदर्भ देते ह

18

बसंत पंचमी का त्यौहार

31 जनवरी 2017
0
2
1

भारत ऋतुओं का देश है।यहां अपनी-अपनी बारी से 6 ऋतुएं आती हैं । इन सभी में से बसंत ऋतु सबसे हरमनप्यारी है । बसंत पंचमी मूल रुप से प्रकृति का उत्सव है । इस दिन से धार्मिक,प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के कार्यों में बदलाव आना आरंभ हो जाता है । बसंत पंचमीप्रकृति के साथ आध्यात

19

जैसी चाह वैसी राह

5 फरवरी 2017
0
2
0

बढ़ते हैं कर बढ़ाने वाला चाहिएबनते हैं मित्र बनाने वाले चाहिएहोती है खोज करने वाला चाहिएबिकती है दारू पीने वाला चाहिएढहती हैं दीवारें ढहाने वाला चाहिएहोती है दुश्मनी करने वाला चाहिएहोती है नोटबंदी करने वाला चाहिएरोती है दुनिया रुलाने वाला चाहिएमिलते हैं गुलामबनाने वाल

20

वर्तमान स्वरोजगार योजना एक व्यंग्य

22 अप्रैल 2017
0
1
2

एक व्यक्ति ने मुर्गे पाल रखे थे जो बहुत हट्टे कट्टे थे । उन्हें एक सज्जन मिलने आए और पूछा कि तुम्हारे मुर्गे बहुत तंदरुस्त हैं इन्हें क्या खिलाते हो । वह बोला मैं इन्हें काजू बादाम और महंगे ड्राई फ्रूट खिलाता हूँ । अच्छा ! लोगों को खाने को नहीं मिल रहा और तू अपने मुर्गों को ड्राई फ्रूट खिला रहा है

21

आप विधायक सौरभ भारद्वाज का ईवीएम पर खुलासा महज एक बकवास

10 मई 2017
0
0
0

दिनांक 9.5.2017 को आम आदमी पार्टी ने ईवीएस कीहैकिंग प्रक्रिया दिखाने के लिए दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। जबहैकिंग प्रक्रिया टीवी पर लाइव आरंभ हो गई तो मुझे भी उत्सुकता हुई और मैने यहपूरी प्रक्रिया एक टीवी चैनल पर देखी। इस सत्र में विपक्ष के नेता को मार्शल कीसहायता से सदन से बाहर निकलवाकर

22

भारतीय प्रजातांत्रिक केंद्रवाद बनाम राष्ट्रपति पद्धति सरकार

13 मई 2017
0
0
0

1917 की रुसी बोलशैविक क्रांति की सफलता केउपरांत प्रजातांत्रिक केंद्रवाद की कम्युनिस्ट विचारधारा समाज के सामने आई। रशियन सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर पार्टीकी दिनाँक 26 जुलाई से 03 अगस्त 2017 तक आयोजित छठी कांग्रेस में प्रजातांत्रिककेंद्रवाद की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि पार्टी की नीचे से ऊपर तक निर्दे

23

जूते की आत्मकथा

20 मई 2017
0
5
3

एक आम कहावत है कि उसने उसको जूते-चप्पलों सेपीटा। मगर एक समय ऐसा भी था जब आठवीं कक्षा के मेरे अध्यापक ने चाय पीते-पीते ही पूरीकक्षा को जूते की आत्मकथा लिखनी सिखाई। अध्यापक महोदय ने आरंभ करते हुए कक्षा कोबताया कि जूते की आत्म लिखना बहुत आसान है। लिखो गाँव में राम लाल की भैंस मर गई।उस मरी हुई भैंस को च

24

भगवान जगन्नाथ रथयात्रा पुरी पर विशेष

25 जून 2017
0
0
0

ओड़िशा के पुरी में समुद्रतट पर स्थित जगन्नाथ मंदिर एक हिंदु मंदिर है जो श्रीकृष्ण(जगन्नाथ)कोसमर्पित है । जगन्नाथ का अर्थजगत के स्वामी से होता है । इस मंदिर को हिंदुओंके चार धामों में से एक माना जाता है । यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है । भगवान जगन्नाथ पुरी में 56प्रकार के अन्

25

चायवाद

9 जुलाई 2017
0
3
1

नरसंहार को नाजीवाद कहते हैंराष्ट्रभक्ति को राष्ट्रवाद कहते हैंकट्टरवाद को फासीवाद कहते हैंमाओ समर्थन को माओवाद कहते हैंसमाज सुधार को समाजवाद कहते हैंमार्क्स समर्थन को साम्यवाद कहते हैंसर्ववाद विरोध को आतंकवाद कहते हैंक्षेत्र विस्तार को साम्राज्यवाद कहते हैंऔर जनता की गाढ़ी कमाई विदेशों में लुटाने को

26

सत्ता संघर्ष और अनुवादकों की भूमिका

5 अगस्त 2017
0
1
1

अंग्रेजी की एक टर्म लिटल नॉलेजइज डेंजरस का हिंदी पर्याय बना है नीम हकीम खतराए जान जिसका अर्थ है कम ज्ञानस्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। एक सामान्य जन से जब नीम हकीम खतराएजान का अर्थपूछा गया तो उसका उत्तर था- ऐ हकीम तू नीम के पेड़ के नीचे मत जा वहां तेरी जान का खतरा है। शोले फिल्म काएक मशहूर डॉयलाग है

27

सत्ता संघर्ष और अनुवादको का दायित्व

12 अगस्त 2017
0
4
3

जब भारत सरकार अधिनियम, 1935 अस्तित्व में आया थातो लगने लगा था कि भारत स्वतंत्र होने वाला है और भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी होनेवाली है। क्योंकि विदेशिओं को यह भलिभांति मालूम था कि भारत में बहुसंख्य हिंदीभाषिओं की है। स्वतंत्रता सेनानियों का भी आपस में संवाद हिंदी में ही होता था औरहिंदी ने स्वतंत्रता स

28

आस्था खुद के अस्तित्व तक

6 सितम्बर 2017
0
3
2

आस्था से तात्पर्य है कि समग्र रुप से स्थिर या स्थित होना। यह आस्था किसी व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष से संबंधित हो सकती है। जैसे कोई देव या देवालय। आ का मतलब समग्र रुप से व स्था का मतलब स्थिर रहने की अवस्था । विदेशों में भी पूर्व में आस्था व अंधविश्वास था। जर्मनी व फ्रांस

29

भारत का भाषा विवाद (14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष)

14 सितम्बर 2017
0
2
0

किसी भी राष्ट्र की एकता के लिए किसी एक सर्वमान्य भाषा का होना जरुरी है और भारत में यह भाषा हिंदी ही हो सकती है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति रह चुके सुकर्णो ने अपनी आत्मकथा में भारत को हिंदी को अपनी राजभाषा अपनाने में आनाकानी पर व्यंग कसा था।

30

जनता मांगे भ्रष्टाचारी डॉ मनमोहन सरकार ?

26 अक्टूबर 2017
0
2
0

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही वर्तमान सरकार का अस्तित्व में आने का एक ही कारण था कि देश में ईमानदार प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार चल रही थी। मेरे जीवन का एक अनुभव है कि ईमानदार शख्सियत या तो अपना स्वयं का नुकसान कर सकती है या अपने जैसे ही किसी ईमानदार क

31

झगड़ें नहीं राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत याद करें

5 नवम्बर 2017
0
0
0

जन गणमन अधिनायक जय हे वंदे मातरम्भारतभाग्यविधाता सुजलांसुफलां मलयजशीतलाम्पंजाबसिन्धु गुजरात मराठा सस्यश्मामलां मातरम्द्राविड़उत्कल बंगा शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकित यामिनम् विन्ध्यहिमाचल

32

सरकारी झटकों से बीमार भारतीयों के लिए आ रहा राष्ट्रीय व्यंजन खिचड़ी

5 नवम्बर 2017
0
0
0

सरकारी झटकों से बीमार भारतीयों के लिए आ रहाराष्ट्रीय व्यंजन खिचड़ीWorried because of Government shakesNational food Khichri is coming For Ill Indians

33

साम्यवादी मार्क्स बनाम दक्षिणपंथी मोदी का ७ नवंबर

15 नवम्बर 2017
0
3
0

कार्ल मार्क्स ने 1848 के अपने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में कहा था कि साम्यवादी क्रांति का लक्ष्य उत्पादन के साधनों पर विश्व के मजदूरों का आधिपत्य स्थापित करके पूंजीवाद की कब्र खोदना है। एक नई समतामूलक संस्कृति को जन्म देना, समाज को वर्गविहीन बन

34

विश्वास बनाम अफवाह

18 नवम्बर 2017
0
4
2

महानायक अमिताभ बच्चन की एक पिक्चर आई थी देश प्रेमी। अमिताभ जी को एक ऐसी कॉलोनी में रहना पड़ता है जिसमें अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं तथा छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाकर आपस में लड़ते रहते हैं। मगर यह उस देश प्रेमी का ही विश्वास होता है कि

35

पूर्वज वही जो लाभ दिलाए

23 नवम्बर 2017
0
2
0

अगर कहीं रेलगाड़ी से दिल्ली स्टेशन को लिंक करते नगरों की यात्रा पर निकलें तो मैरिज ब्यूरो का एक विज्ञापन दिवारों पर लिखा मिलेगा – दुल्हन वही जो दादा जी दिलाएं । दशकों पूर्व सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की अर्दांगनी जया भादुड़ी स्टारर एक फिल्म आई थी जिसका शीर्षक था द

36

क्यों है लॉकडाउन की मजबूरी

31 मार्च 2020
0
0
0

समाज की उत्पति से लेकर आजतक विश्व एक हीथ्यूरी पर चल रहा है कि समाज में वर्चस्व किस का होगा। जंगलराज को नकेल डालकर कुछव्यवस्थाएं स्थापित हो गईं लेकिन जिनके साथ अन्याय होता था उन्होंने प्रतिरोध जारीरखा। वर्तमान युग में विश्व की ओर से फेस की जा रही समस्याओं का मुख्य कारण पश्चिमजगत और उनका अंधानुकर

37

ब्रह्म ज्ञान

2 अप्रैल 2020
0
2
1

लिखा ओंकार ने कभीबैठकर इक दिन सच में मानव तूँ इक दिन हैरान होगारुकेंगी बसें विमान ट्राम और रेलें बंद पलों मेंसारा सामान होगालिखा ओंकार ने कभी बैठकर इक दिन सच में मानव तूँइक दिन हैरान होगापक्षी चहकेंगे सुखी साँस होगा प्रदूषण रहित तबसारा संसार होगापाताल धरती पानी आकाश पर काबज कैद घर में इक दिनइंसान हो

38

पानी की आत्मा

30 जुलाई 2020
1
2
0

कोई कहे हिंदु पानीकोई कहे मुस्लिम पानी समझाने को आत्मा पानी की अनेकों ने दी कुर्बानी फिर भी न माने क्योंकि कमान ईसाईयत को थीजो थमानी ईसाईयत ने करोड़ों लीले आत्मा की हुई बदनामी स्वतंत्र है देश फिर भी कोई कहे हिंदु पानी ‘कोई’ मुस्लिम पानी क्योंकि

39

अस्थायी आशियाना

1 अगस्त 2020
0
1
0

सजनरे झूठ मत बोलो-खुदा के पास जाना है। हाथी है न घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है।तुम्हारे महल चौबारे-यहीं रह जाएंगे सारे - अकड़ किस बात की प्यारे - अकड़ किस बातकी प्यारे। एकसमय की बात है कि एक सन्यासी राजा के महल के सामने आए और आते ही राजा के महल मेंघुसने का प्रयास करने लगे। राजा के सैनिकों ने उन्हें

40

जन्मदिवस पर पत्नी को शुभकामनाएं

20 जून 2023
0
0
0

 किसी खूबसूरत एहसास की भांति  तुम परिवार और मेरे जीवन के लिए हो बहुत जरुरी,  जैसे जिस्म के लिए सांसों की डोरी,  हम जीवन के प्रत्येक रंग को जी लेंगे,  तेरा साथ रहेगा तो समाज की प्रत्येक तपन सह

---

किताब पढ़िए