फिर चोट खाई दिल ने --
और बरबस लिया पुकार तुम्हे ,
हो विकल यादों की गलियों में -
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हे !
मुंह मोड़ के चल दिए साथी -
तुम तो नयी मंजिल - नयी राहों पे ;
ये तरल नैन रह गए तकते -
तुम रहे अनजान जिगर की आहों से ;
उस दिल को बिसरा कर बैठ गए -
था दिया जिसपे सब अधिकार तुम्हे !!
दो नैनो की क्या कहिये -
बस इनमे छवि तुम्हारी थी ,
मंदिर की हर मूर्त में भी साथी -
बस सूरत तेरी निहारी थी ;
मिल जाते जो किसी रोज यूँ ही -
थकते ना अपलक निहार तुम्हे !!
न था कोई जो मन की सुनता -
और समझ लेता जज्बात मेरे ,
कौन मेरा अपना तुम बिन-
जो अधरों पे सजाता हास मेरे ;
खुद को खोकर -था पाया तुमको -
जीता था मन को हार तुम्हे !!
अनगिन चेहरे थे हर ओर -
पर तुम्ही थे दिल के पास मेरे,
तुम्ही हंसी में - तुम्ही दुआ में
थे तुमसे सब एहसास मेरे;
तुम लौट ना आये तो थक के -
गीतों में लिया उतार तुम्हे !!
हो विकल यादों की गलियों में -
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हे !!!!!!!