फूल कितने भी सुन्दर हों मगर शाखों से झरते हैं
दर्द से बच नहीं पाते….मुहब्बत जो भी करते हैं
कभी वो पास थे अपने तो मन खुशियों में डूबा था
तसव्वुर यार का ले अब तो हम आहें सी भरते हैं
बन के धड़कन मुहब्बत में जो भी दिल में समाता है
उसी को ज़िन्दगी में हम सदा ….खोने से डरते हैं
वो ना समझे कभी दुश्वारियां उल्फत की राहों की
इसकी उलझन भरी गलियों से बचके जो गुज़रते हैं
मिटा देते हैं जो खुद को भुला ..दूजों की चाहत में
उन्ही को शान से…दुनिया में सर पर.लोग धरते हैं
मधुकर मुहब्बत में जिन्हें ……..धोखे नहीं मिलते
बुरे हालात में भी ……. उनके तो चेहरे संवरते हैं