किरीट सवैया " वर्णिक छंद । मापनी -२११ २११ २११ २११ २११ २११ २११ २११ भगण×८ भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस
“सवैया गीत”
नाहक पीर बढ़ाय गई मुरली नहिं बोलति प्रेम पुकारत
घायल की गति घायल जानत पायल बाजत झूमर नाचत।
खूब गले मह माल विराजत मोहत हैं लखि बैरन राचत
री सखि मोहन मोह गए कब साँझ भई नहिं बूझत जानत॥
कोटिक नेह लगाय रही हरि की डगरी पहुँची सुखकारक।
आपुहि नाथ पुकार रही तुमरी बखरी तकती दुखहारक।
हे अविनाश सखा सबके तुम मानहु आपुहि दुर्बल तारक।
आय भरो छलके गगरी मन सागर नागर नाथ उबारक॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी