ऋषिकेश स्थित श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज इस वर्ष अपनी हीरक जयंती मना रहा है. इस कॉलेज में ही मैंने सीखा कि जिंदगी में मुसीबतों से कैसे निपटा जाता है और मुसीबत को बुलावा कैसे दिया जाता है. और तो और अपनी गलतियों के लिए दूसरों को कैसे आरोपित किया जाता है. लगभग हर स्टूडेंट्स के मन में एक बात रहती है कि एग्जाम में काम मार्क्स मिले है, जबकि काम ज्यादा मार्क्स का किया था. ऐसा होता होगा, लेकिन ऐसा ही होगा, ऐसा भी नहीं होता. असल में स्टूडेंट ने कॉपी में जितना काम किया होता है, उतने ही नंबर मिलते है. ऐसा मेरे साथ ही हुआ है. बात बहुत पुरानी है. मैं उस समय ऋषिकेश स्थित श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज में 1989 में इंटरमीडिएट के प्रथम वर्ष (ग्यारहवीं) में पढ़ता था. छमाही परीक्षा के दौरान केमिस्ट्री का प्रथम पेपर देने कॉलेज पहुंचा. कॉलेज पहुंच कर देखा कि मेरे सभी दोस्त द्वितीय पेपर की बुक्स व नोट्स लिए एकाग्रता से पढ़ रहे थे. मेरी बात समझ में नहीं आई कि यह सब तो द्वितीय पेपर की पढ़ाई कर रहे है. मैंने उनसे पूछा तो लगभग सभी कहने लगे कि आज यही पेपर है. लेकिन मैंने अपनी आदत के अनुसार उनकी बातों को अनसुना कर दिया. निश्चित समय पर एग्जाम शुरू हुआ. परीक्षा कक्ष में कॉपियां सबके सामने थी. मैंने भी अपनी कॉपी के सभी कॉलम भर कर टीचर के साइन करवा लिए. उसके बाद जैसे ही पेपर सामने आया, मेरे तो होश ही उड़ गए. क्योंकि मेरे अलावा सभी लोग सही थे, मैं ही गलत था. अब क्या हो सकता था. सिवाय फेल होने के. मेरे एक दोस्त ने मुझे सलाह दी कि भाई कुछ नकल करनी है, तो बताओ. मैंने मना कर दिया, नहीं जो होगा देखा जाएगा. किसी तरह एक घंटे का समय बिताया. उसके बाद बाहर जाने की परमिशन लेकर मैं सीधे घर पहुंच गया. केमिस्ट्री विषय में 35-35 के दो पेपर और 30 माक्र्स का पे्रक्टिकल था. जिसमें थ्योरी में पास होने के लिए 70 में 21 माक्र्स की जरूरत थी. अब पहले 35 में मुझे शून्य मिलना तय था. अब मेरे पास एक ही रास्ता था दूसरे 35 में ही 21 माक्र्स लाने थे. उसी दिन शाम को मेरे कुछ दोस्त कहने लगे भाई यह क्या कर दिया, अब तो पक्का मान ले, फेल होना ही है. मैंने भी ठान लिया था अब तो इस विषय में पास होना ही है. एक दिन बाद ही द्वितीय पेपर देने के लिए गए. जहां पहले पेपर में मेरे पास समय ही समय था, वही द्वितीय पेपर में मेरे पास फुर्सत नहीं थी. बस पेपर का इंतजार था, कब वह मिले और कब मैं शुरू करूं. इंटरमीडिएट में केमिस्ट्री में कठिन तो होती ही है. ऊपर से हार्ड मार्किग का खौफ वह अलग. खैर कोई बात नहीं इन सब बातों पर मेरा आत्मविश्वास और मेहनत हावी रही. कुछ दिनों बाद जब रिजल्ट आया तो 135 स्टूडेंट्स की क्लास में कुल 21 ही पास थे. उनमें अधिकतम 24 मॉक्र्स ही थे. जिसमें मैं भी शामिल था. मुझे भी 21 नंबर मिले थे. केमिस्ट्री के टीचर एससी अग्रवाल जी ने मुझसे एक सवाल किया कि बेटा, पहले पेपर तुमको जीरो मिला है और दूसरे पेपर में तुम्हें 21 नंबर मिले है तो क्या तुमने इसमें नकल की है. मेरा जवाब था कि सर नकल ही करनी थी, तो पहले वाले ही कर लेता, इसमें क्या नकल करने की क्या जरूरत थी. इसमें खास बात यह थी कि मैंने द्वितीय पेपर में कुल 21 नंबर के प्रश्नों के ही जवाब दिए थे. ऐसी स्थिति में मुझे 21 में 21 माक्र्स ही मतलब 100 प्रतिशत अंक मिले. यह घटना हमेशा मुझे और अच्छा करने प्रेरित करती रहती है. किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है, बस जरूरत होती है, बेहतर प्लानिंग के साथ उस पर अमल करने. जब भी मैंने ऐसा किया तभी सार्थक और सुखद परिणाम ही मिले.