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माँ

9 फरवरी 2018

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वो थकी हारी जब आती है काम से ,

और फिर भी खुश है जीवन के इनाम से |

बिना किसी फल के करती रहती है वो श्रम,

माँ कहते है लोग जिसे नाम से |

ममता की देवी , त्याग की मूरत ,

करुणामयी लगती है देखने मै जिसकी सूरत |

खुद ना खाये पर बच्चो को खिलाती है ,

ऐसी बनावट है वो कुदरत की खूबसूरत |

चाहे सर मै हमेशा रहता हो दर्द ,

चाहे भोर मै उसको लगता हो सर्द |

पर उठकर बनती है हमारे लिए खाना ,

ऐसी साथी है माँ हमदर्द |

क्यों समझते है लोग इस शब्द को अबला ,

जबकि इसी ने दुनिया को है बदला |

ऐसी कुदरत के नायब तोहफे के सामने ,

मै अपना सर करता हूँ सजदा |

'नीरज अग्रहरि ' ( अपनी माँ के नाम ) article-image



रेणु

रेणु

प्रिय नीरज - माँ को समर्पित आपके भाव अनुपम हैं | परम्परागत माँ से हटकर कामकाजी माँ दोहरी भूमिका में जीवन में बहुत संघर्ष करते हुए आगे बढ़ती है | और जब उसकी संतान ऐसे आभार प्रकट करती है तो उसका श्रम सफल और जीवन धन्य हो जाता है | खूब लिखा आपने | शाबाश !! और वैरी गुड | हार्दिक स्नेह के साथ --

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