छूकर उसकी खुश्बू मेरे मन को ,
पागल कर गई आज |
पर मै भी पगला बेवजह ताकता रहा ,
और हो गई सांझ |
मन ने कहा नहीं आएगी वो आज ,
पर दिल भी कहा आने वाला था बाज़ |
कहा वो आएगी ज़रूर ,
चाहे उसे छोड़ना पड़े काम और काज |
सेमेस्टर का एग्जाम खत्म हो जायेगा आज ,
पर कैसे उससे कहू अपने दिल की बात |
की मै पहनाना चाहता हूँ ,
अपने मोहब्बत का ताज |
दिल है ज़ोरो से धड़क रहा ,
और साँसे है तेज |
चाहता हु की ये कविता ,
दू उसको भेज |
पर क्या मिलेगा जवाब ,
ये सोच कर घबराऊ |
पीछे हटू मै अब या ,
आगे बढ़ जाऊ |
कुछ भी हो जाए आज कह के रहूँगा ,
अपने दिल की बात |
चाहे मुझे मैजिक मै ही जाना पड़े ,
फैज़ाबाद तक उसके साथ |
फरवरी 14 तक कैसे करूँगा मै उसका इंतज़ार ,
पर कर भी क्या सकता हु, हु मै लाचार|
अभी मै बना ही रहा था मिलने का विचार ,
की वो चली गई कुमारगंज बाजार |
नीरज अग्रहरि ( न0दे0कृ0 प्रो0वि0वि0 )