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टूटते बंधन

13 फरवरी 2018

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टूटते बंधन


पाश्चात्य सभ्यता के अनुसरण की होड़ में जो सबसे महत्वपूर्ण बातें सीखी गई या सीखी जा रही है उनमें जो सर्वप्रथम स्थान पर आता है वह है बंधन मुक्त होना. जीवन के हर विधा में बंधनों को तोड़कर बाहर मुक्त गगन में आने की प्रथा चल पड़ी है. यहाँ यह विचार का या विमर्श का विषय नहीं है कि यह उचित है या अनुचित. बस एक अवलोकन है , वक्तव्य है.

इसी प्रथा के चलते हिंदी कविता के क्षेत्र में भी बदलाव आए हैं. पहले जो कविता मात्राओं और गणों के बंधन में होती थी अब मुक्त हो गई है. दोहा, चौपाई, कुंडलियाँ अब देखने में कम आती हैं. गद्य कविता की भरमार है. भाषा के आभूषण कहे जाने वाले अलंकार अब कहाँ मिलते हैं. अनुप्रास तो फिर भी यदा – कदा कहीं - कहीं समा जाता है, पर यमक और श्लेष तो जैसे मिट से गए हैं.

रचना की एक नई विधा हाईकूआजकल चलन में है. यह मुझे तो समझ ही नहीं आई. ऐसा लगा कि यह मात्र तुकबंदी है. पर इसमें भी सरोजनी प्रीतम की क्षणिकाएं कहीं उत्कृष्ट लगती हैं. इन दिनों पुराने छंद रविकर जी, विर्क जी और मयंक जी के ब्लॉग पर ही देखने को मिलते हैं

कुछ पुराने रचनाकार भी अब बंधनमुक्त गद्य कविता में समाने लगे हैं. बहुत से नए रचनाकारों को शायद गणों और मात्राओं का ज्ञान भी नहीं है और जिन्हें है, वे भी अब इसकी उपयोगिता को कमतर ही आँकते हैं. जान-बूझ-चाह कर मात्राओं के बंधन में कविताई बहुत कम हो गई है. नगण्य कहा जा सकता है.

नए रचनाकारों का शब्द सामर्थ्य बहुत अच्छा है. पिछले एकाध दशक में प्रसाद व महादेवी को पढकर निकले उच्च शिक्षार्थियों की शब्द संपदा सराहनीय होती है. उनकी रचनाओं में साहित्यिक शब्दावली बहुत मिलती है, जिसके चलते उसमें कुछ क्लिष्टता आ जाती है. एक तो बंधन मुक्त कविता उस पर शाब्दिक क्लिष्टता, भाषा के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करती है.

शब्द सामर्थ्य के साथ शब्द चयन भी बेहतर हुआ है. पर चयन में भाषा की सरलता, सरसता, प्रवाह और लय पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इसलिए आज कविता में लय और प्रवाह नदारद है. सही शब्दचयन से कविता में लय, सरसता और प्रवाह बखूबी लाया जा सकता है.

हालाँकि नए रचनाकारों ने बहुत ही साधना की है, पढ़ा है, साहित्य का ज्ञानार्जन किया है , पर बंधन मुक्ति के दौर में शायद सरलता, लय और प्रवाह उनसे छूट गए हैं.

जो मंचीय रचनाकार है या जो रचनाकार गीत रचते हैं, उन्हें बखूबी समझ आता होगा कि कविता के लिए गेयता कितना मुख्य है. इसी कमी के कारण गीतों में भी अलग अलग छंद, अलग राग अलापते हैं, जो श्रवण सुख से परे होता है.


मेरी इच्छा है कि ये नए रचनाकार एक बार फिर मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, कबीर जैसों को पढ़ें. हल्की फुल्की मेहनत से सशक्त शब्द चयन द्वारा रचनाकार सरलता और गेयता को बढ़ाकर उसकी बेहतरी की तरफ ध्यान दें.

भाषा की क्लिष्टता कहें या शब्द चयन इस पर बखूबी निर्भर करता है कि रचना किस पाठक वर्ग को अग्रेषित है. बाल कविता बाल सुलभ भाषा में होनी चाहिए और साहित्य के विद्यार्थियों के लिए हो तो क्लिष्टतम हो सकती है. उसी अनुसार शब्द सामर्थ्य का प्रयोग कर शब्द चयन करना चाहिए. सही शब्द चयन न होने पर सामान्यतः रिक्शा चालकों से अंग्रेजी में बात करने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. उचित पाठक वर्ग इसे समझ नहीं पाएगा.

ऐसा नहीं है कि क्लिष्ट शब्दावली से प्रवाह उत्पन्न नहीं होता...देखिए–

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती,

स्वयंप्रभा समुज्ज्वला

स्वतंत्रता पुकारती,

ऐसे अनन्य उदाहरण हैं. पर हाँ यह इतना आसान भी नहीं है.

भाषा की सरलता से प्रवाह लाना कहीं आसान है.

मेरी नव रचनाकारों से विनती रहेगी कि वे अपने शब्द सामर्थ्य और चयन कौशल का विशेष प्रयोग कर सरलता, सरसता, लय और प्रवाह को बनाए रखने पर विशेष ध्यान दें.

ऐसा भी नहीं है कि कविता में लय , सरलता या प्रवाह होना जरूरी है. नए रचनाकार यह न समझें कि उनकी रचनाओं की अवहेलना हो रही है या नीचा दिखाया जा रहा है. हाँ सरल लयबद्ध रचना जुबाँ पर जल्दी चढ़ती है, मन में जगह जल्दी बना लेती है.


बाकी हर रचनाकार तो स्वतंत्र है ही.

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माड़भूषि रंगराज अयंगर

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रेणु जी आपकी सम्मानजनक टिप्पणी हेतु आभार मैं हिंदी में स्नातकोत्तर तो क्या स्नातक भी नहीं हूँ. १९७१ में मैंने हिंदी साहित्य विषय के साथ हायर-सेकंडरी परीक्षा पास किया है. वही मेरा हिंदी ज्ञान है. आप लोग इतनी इज्जत बख्शते हैं जिसके काबिल मैं खुद को नहीं पाता. एक भी रचनाकार मेरी विधाओं से सीख पाए तो मेरा लेख सफल माना जा सकेगा. सादर अयंगर.

19 फरवरी 2018

रेणु

रेणु

आदरनीय अयंगर जी -- सादर अभिवादन | आपका आलेख दो दिन पहले पढ़ लिया था -- पर समयाभाव रहा सो लिख नहीं पाई | वैसे तो आपसे विस्तार पूर्वक इस विषय पर चर्चा हो ही चुकी थी - पर भी बड़ी विनम्रता से आका आभार व्यक्त करते हुए ये कहना जरूरी समझती हूँ की यद्यपि मैं हिन्दी में स्नातकोत्तर हूँ पर एक तो मैंने पढाई बिना गुरुओं के स्वयंपाठी विद्यार्थी के रूप में की है दुसरे सालों गुजर गये छंद इत्यादि दिमाग से विस्मृत हो चुके हैं हाँ अलंकार जरुर याद हैं | और लेखन भी शौकिया मान कर यूँ ही कर रहे ये अंदाजा नही था कि आप जैसे सजग और पारखी विद्वान् इन रचनाओं को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से परख रहे हैं | सचकहूँ तो इस बात से मैं आपको नमन करती हूँ बहुत आभारी हूँ कि आपने इस विषय पर इतना गहरा चिंतन कर इतना शोधपरक लेख लिखा | जरुर मैं और शायद इसे पढने वाले लोग जो पद्य विधा में लेखन कर रहे हैं उन्हें बहुत लाभ होगा | इस विषय पर और पढने का भी प्रयत्न करूंगी | मैं खुद भी सरल भाषा की प्रबल पक्षधर हूँ और कोशिश भी करती हूँ की मेरे शब्द सरल हों | सादर आभार इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए | आपने अपना दायित्व समझ ये लेख लिखा ये बात और भी महत्वपूर्ण ही | सादर

16 फरवरी 2018

माड़भूषि रंगराज अयंगर

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रेणुका जी, बहुत बहुत शुक्रगुजाल हूँ

16 फरवरी 2018

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मार्गदर्शन के लिए आपका आभार

16 फरवरी 2018

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मन दर्पण

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मेरी नई पुस्तक मन दर्पण का कवर पेज प्रस्तुत है. पुस्तक अप्रेल 2017 तक प्रकाशित हो जाएगी.

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सँभलिए

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सँभलिए --------------- कभी कभी डर लगता है, वो प्यार न मुझसे कर बैठे, साथ मेरा ले भावुक होकर, घरवालों से ना लड़ बैठे। जो थोड़ा परिवार बचा है वह भी टूटा जाएगा, मैं हूँ अकेला, सदा अकेला, कोई मुझसे क्या कुछ पाएगा।। दोष न दे वो भले मुझे पर, खुद को माफ करूँ कैसे?

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एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग

7 मई 2017
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एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग सबसे पहली बात - “प्रूफ रीडर का काम पुस्तक में परिवर्तन करना नहीं है, केवल सुझाव देने हैं कि पुस्तक में क्या कमियां है और उनका निराकरण कैसे किया जाए. अच्छे प्रूफ रीडर पुस्तक उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए भी सुझाव दे सकते

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मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण का आवरण

9 मई 2017
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ISBN 978-81-933482-3-1 गूगल सर्च कर, ऑर्डर कर सकेंगे. अभी प्री-सेल शुरु है. पुस्तक 20 मई से 1 जून के बीच प्रकाशित होने की उम्मीद है.

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पुस्तक प्रकाशन

22 मई 2017
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पुस्तक प्रकाशन पुस्तक प्रकाशन हर रचनाकार, चाहे वह कहानी कार हो, नाटककार हो या समसामयिक विषयों पर लेख लिखने वाला हो, कवि हो या कुछ और, चाहेगा कि मेरी लिखी रचनाएं पुस्तक का रूप धारण करें. हाँ शुरुआती दौर में लगता है कि यह किसी के लिए

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निर्णय ( भाग - 1)

2 जून 2017
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निर्णय ( भाग -1)बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओंके विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एमए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँअक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्

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निर्णय ( भाग - 2)

2 जून 2017
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निर्णय ( भाग - 2 ) रजत भी समझ नहीं पा रहा था कि कैसे अपनी भावना संजनातक पहुँचाए। डर भी था कि संजना उसकी बात से नाराज हो गई तो वह उसे हमेशा के लिए हीखो देगा। वह अजब पशोपेश में पड़ा हुआ था।कॉलेज के वार्षिकोत्सव में रंजना ने कई कार्यक्रमोंमें भाग लिया था । एक नाटिका में

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मन दर्पण

2 जून 2017
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मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण 25 मई 2017 को प्रकाशित हो चुकी है. पाठकगण गूगल पर - ISBN 978-81-933482-3-9खोज कर ई बुक या पेपरबैक आर्डर कर सकते हैं.ईबुक की कीमत रु.100 तथा पेपरबैक की कीमत रु.175 रखी गई है.पेपरबैक पर रु 60 प्रति पुस्तक का अतिरिक्त डाक खर्च लगेगा जो

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एक पौधा

5 जून 2017
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पर्यावनण दिवस 5 जून के अवसर पर...एक पौधा.मधुवन मनमोहक है,चितवन रमणीय है,उपवन अति सुंदर हैऔर जीवन से ही प्रदुर्भाव है इन सबका.फिर जब जीवन के उपवन से,मधुवन के चितवन तक,हर जगह‘वन ‘ ही की विशिष्टता है.तो क्यों न हम वन लगाएँ ?आईए शुरुआत करें,और लगाएँ....एक पौधा.......

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निर्णय

23 जून 2017
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बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओं के विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एम ए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँ अक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्रिया ने बी

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संप्रेषण और संवाद

26 अगस्त 2017
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संप्रेषण और संवाद संप्रेषण और संवाद आपके कानों में किसी की आवाज सुनाई देती है. शायद कोई प्रचार हो रहा है. पर भाषा आपकी जानी पहचानी नहीं है. इससे आप उसे समझ नहीं पाते. संवाद तो प्रसारित हुआ, यानी संप्रेषण हुआ, प्राप्त भी हुआ, पर संपूर्ण नहीं हुआ क्योंक

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ये कैसा दशहरा ये कैसा दशहराआज मेरे देश में ये क्या हो रहा है.दहशत भरी है हवा में,डर लग रहा है,जगह जगह यहाँ तो रक्तपात हो रहा है. कहीं इस देश मेंइस दशहरा में रावण की जगह,शायद, राम तो नहीं जल रहा है.पता नहीं कब से,हर दशहरे रावण जल रहा है

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2 नवम्बर 2017
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डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव. उस दिन मेरे मोबाईल पर फ्लेश आया. यदि आप जिओ का सिम घर बैठे पाना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें. मैंने क्लिक कर दिया. मुझे अपना नाम पता, आधार नंबर देने को कहा गया. मैंने दे दिया. फिर मुझसे पूछा गया कि आप जिओ सिम कब और कहाँ चाहते हैं. पता और समय

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13 फरवरी 2018
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टूटते बंधनपाश्चात्य सभ्यता के अनुसरण की होड़ में जो सबसे महत्वपूर्ण बातेंसीखी गई या सीखी जा रही है उनमें जो सर्वप्रथम स्थान पर आता है वह है बंधन मुक्तहोना. जीवन के हर विधा में बंधनों को तोड़कर बाहर मुक्त गगन में आने की प्रथा चलपड़ी है. यहाँ यह विचार का या विमर्श का विषय नहीं है कि यह उचित है या अनुच

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व्यवस्थापकगण एवं पाठकगण शब्द नगरी ने अपने डेशबोर्ड पर जाने के लिए बहुत सारी अड़चनें पैदा कर दी हैं. हर बार शब्दनगरी खोलने पर मेल वेरिफाई करने को कहा जा रहा है और तो और यह भी संदेश मिल रहा है कि मेल नहीं मिलने की हालात में अ

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