पंजाब नेशनल बैंक में हुई बड़ी धोखाधड़ी के बाद यह सवाल लोगों के जेहन में घुमड़ने लगा है कि क्या बैंकों में जमा उनके पैसे डूब जाएंगे? महज चंद सप्ताह पहले ही अफवाह थी कि बैंक से जुड़े कुछ ऐसे नियम बनने जा रहे हैं, जिससे बैंकों में जमा आम आदमी के पैसे की गारंटी सरकार की नहीं रह जाएगी. और अगर वे पैसे आपके खाते में सुरक्षित भी रहते हैं तो भी आप अपने मन से उन्हें निकाल नहीं सकेंगे.
हालांकि सरकार और उससे जुड़ी विभिन्न एजेंसियों के द्वारा बार-बार सफाई दिए जाने के बाद लोगों का डर कम हुआ. लेकिन पीएनबी की धोखाधड़ी ने इसे एक बार फिर सतह पर ला दिया है. लोगों को एक बार फिर डर सताने लगा है कि इस तरह के स्कैम से अगर बैंक डूब जाएं तो खून-पसीने के कमाए उनके पैसे का क्या होगा?
लोगों के सवाल और आशंकाएं प्रस्तावित फाइनेंशियल रेजॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (FRDI) बिल, 2017 को लेकर और गहरे हैं. जानकारों की मानें तो बैंक में जमा 1 लाख रुपये तक की रकम इंश्योर्ड है. हालांकि इसके अलावा जो पैसे हैं, वे किसी भी कानून के तहत गारंटीड नहीं हैं. जबकि आमतौर पर बैंकों में जमा लोगों के पैसे को पूरी तरह सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि कोई भी सरकार और रिजर्व बैंक किसी भी बैंक को डूबने नहीं देती है.
जानकारों का यह भी मानना है कि छोटे बैंक में जमा आपके पैसे की सुरक्षा करने की गारंटी भी सरकार की होती है. सरकार किसी बैंक को फेल नहीं होने दे सकती, क्योंकि इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत उसे चुकानी पड़ सकती है. हालांकि हम इस बिल के बारे में आपको विस्तार से बता रहे हैं.
फाइनेंशियल रेजॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफडीआरआई) बिल 2017 का उद्देश्य रेजॉल्यूशन कॉर्पोरेशन का गठन करना है. यह वित्तीय कंपनियों की निगरानी करेगा. यह इन कंपनियों की रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से वर्गीकरण करेगा. कंपनियों को यह अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों से अलग कर दिवालिया होने से रोकेगा. हाल ही में कई कंपनियों ने खुद को दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन दिया है. इस तरह इससे लोगों को एक तरह की सुरक्षा ही मिलेगी, क्योंकि यह कॉरपोरेशन कंपनियों या बैंकों को दिवालिया होने से बचाएगा.
इस बिल के बेल-इन प्रावधान को लेकर सबसे ज्यादा चिंता है. यह प्रावधान डूबने वाली वित्तीय कंपनी को वित्तीय संकट से बचाने के लिए उसे कर्ज देने वाली संस्था और जमाकर्ताओं की रकम के इस्तेमाल की इजाजत देता है. हालांकि, बेल-इन वित्तीय संस्था को नाकाम होने से बचाने के कई विकल्पों में से एक है.
बेल-इन का साधारण शब्दों में मतलब है कि अपने नुकसान की भरपाई कर्जदारों और जमाकर्ताओं के पैसे से करना. जब उन्हें लगेगा कि वे संकट में हैं और उन्हें इसकी भरपाई करने की जरूरत है, तो वह आम आदमी के जमा पैसों का इस्तेमाल करते हुए अपने घाटे को पाटने की कवायद कर सकेगा.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है. इसकी वजह यह है कि पिछले 50 साल में देश में शायद ही कोई बैंक दिवालिया हुआ है. हालांकि, अलग-अलग बैंकों में अपना पैसा रखकर आप अपना जोखिम घटा सकते हैं.
वित्त मंत्रालय ने बयान में कहा कि एफआरडीआई विधेयक में जमाकर्ताओं को अधिक पारदर्शी तरीके से अतिरिक्त संरक्षण दिए गए हैं. मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि मीडिया विशेष रूप से सोशल मीडिया में एफआरडीआई विधेयक में जमाकर्ताओं के संरक्षण के मामले में बेल-इन प्रावधान को लेकर कुछ संदेह जताया जा रहा है, जो पूरी तरह से गलत है.
वित्त मंत्रालय ने कहा है कि किसी विशेष प्रकार के रेजॉल्यूशन केस में बेल-इन प्रावधान के इस्तेमाल की जरूरत नहीं होगी. निश्चित रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मामले में इसकी जरूरत नहीं होगी, क्योंकि इस तरह की आकस्मिक स्थिति आने की संभावना नहीं है.
बैंकों में फिलहाल जमा एक लाख रुपए तक की राशि का बीमा होता है. इसी तरह का संरक्षण एफआरडीआई विधेयक में भी जारी रहेगा. वर्तमान में डिपॉजिटर्स इंश्योरेंस स्कीम के तहत 1 लाख रुपये तक आपका पैसा बैंक में सुरक्षित है. उसके तहत सभी बैंक, कमर्शियल, रीजनल, रूरल को-ऑपरेटिव बैंक आते हैं.
जानकारों के मुताबिक, जैसे ही कोई फाइनेंशियल सर्विस कंपनी (बैंक भी शामिल) क्रिटिकल कैटिगरी में आती है तो उसका प्लान तैयार किया जाता है. इसके तहत बैंक की लायबिलिटी को कैंसल करने जैसे कदम भी उठाए जा सकते हैं. इस बेल-इन-क्लॉज में डिपॉजिटर्स का पैसा भी आ सकता है. वैसे आपको यह जानकर हैरत होगी कि कस्टमर्स का पैसा 5वें नंबर की लायबलिटी है. ऐसे में चिंता होना स्वाभाविक है. लेकिन लोगों की चिंता को देखकर इस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
साभार - https://hindi.news18.com/photogallery/business/will-you-lose-your-money-in-banks-after-pnb-scam-1276072-page-12.html