होली भी हो ली अब चारों और सन्नाटा है,
त्योहारों में भी अब बस फर्ज निभाया जाता है।
नही रहा वह वक़्त त्योहारी उत्सब की खुशियां छाती थीं,
होली और दीवाली की तैयारी हफ्तों पहले से होती थी।
नही समय अब पास किसी को त्योहारों को मनाने का,
सबको चिंता फिक्र है बस तो सुबह काम पर जाने का।
बदल रही है जीवन मूल्य आज व्यस्तता मानव की,
हर दम भागम भाग मची है बस जीविका कमाने की।
रिस्ते नाते तक छूटे हैं उत्सब अब हम मनाएं कैसे,
भागम भाग मची जीवन मे थम कर पीछे रह जाएं कैसे।
क्या लौटेगा समय पुराणा हर्ष और उल्लाश का,
क्या समझेंगे कभी हम अंतर जीवित का और लाश का।
होली क्या होने से बढ़कर वापस कभी मनाएंगे,
क्या अब हम थोड़े से रुक कर उत्सवमय हो पाएंगे।
रेणु
02 मार्च 2018प्रिय नृपेंद्र -- होली के बहाने से जीवन के बीते उत्सवमय जमाने की खूब याद दिलाई आपने | सचमुच वो दिन अब कभी भी वापस नहीं आएँगे | फिर भी ये त्यौहार शांत जीवन में कुछ पल के लिए हलचल से रंग तो जरूर भरता है | होली मुबारक हो | खुश रहो मस्त रहो गमेशा |