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कहाँ से लाऊँ ???

5 मार्च 2018

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कहाँ से लाऊँ वो बात,

जो किसीने न कही हो?

कहाँ से लाऊँ वो हालात ,

जो एकदम सही हो?


कहाँ जाके बेचूँ वो लकड़ी,

जो चुराई थी चिता से पिता की?

कहाँ जाके खरचूँ वो कमाई ,

जो मेरी नहीं हो?


कहाँ से लाऊँ वो महक ,

जो उसके पसीने में रही हो?

कहाँ से लाऊँ वो नमक ,

जिससे स्वादिष्ट घर की रसोई बनी हो ?


कहाँ से लाऊँ वापस ,

वो बात जो मेरी कही हो ?

कहाँ से लाऊँ वापस ,

वो ज़िन्दगी जो उससे ढही हो ?


कहाँ से सुलटूँ ,

वो सिलबटें ,

मुठ्ठी में बंद मुड़े कागज की ?

कहाँ से पलटूँ ,

वो करवटें ,

ज़िन्दगी की जो अब न रही हो ?


कहाँ से लाऊँ वो दर्द,

पेट में अजन्में के गिरने का ?

कहाँ से लाऊँ वो दर्द ,

जान के देह से तड़पकर निकलने का ?


कहाँ से लाऊँ वो मिटावन,

जो मिटा दे चेहरे में पड़ी सिकुड़ने ?

कहाँ से लाऊँ वो कलम ,

जो उठा देख और फिर लिख सके ,

हर सिकुड़न के साथ कहानी जो घटी हो?


कहाँ जाऊँ ?

कहाँ से लाऊँ ?


कोई एक जो कहे तुम सही हो?

बस ,...कोई एक,...जो कहे तुम सही हो?


कहाँ जाऊँ ??

कहाँ से लाऊँ ???



- मनोज कुमार खँसली " अन्वेष "














मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष" की अन्य किताबें

रेणु

रेणु

प्रिय मनोज -- आपकी ये रचना आक्रांत मन की अनकही वेदना है जो अपनी सफाई में बार बार कुछ कहना चाहती है पर कोई समझे तो ? आपके लेख का मौलिक रंग आपकी अलग पहचान बनाता है-- सभी पंक्तियाँ मन को विदीर्ण करती है और एक छाप छोड़ जाती हैं -- कहाँ से लाऊँ वो दर्द, पेट में अजन्में के गिरने का ? कहाँ से लाऊँ वो दर्द , जान के देह से तड़पकर निकलने का ?-- अत्यंत प्रभावी और मर्मस्पर्शी लेखन !!!!!! हमेशा की तरह लेखन में आपकी सफलता की कामना करती हूँ | सस्नेह --

9 अगस्त 2018

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उमा शंकर पल

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