चन्द अल्फ़ाज़ भी मयस्सर नही हमको अबतो उनकी जानिब से ,
जो कभी मेरे वास्ते ठोकर पे ज़माना रखते थे।
न जाने मोहब्बत को किसकी नज़रे स्याह लग गई जो अब हम,
उस रूखसार के एक रुख को तरसते हैं।
कभी बातों में मिश्री घोलकर कितनी बातें बोलते थे ,
अब लगता है शायद मेरे कान अब काम नही करते हैं।
Neeraj Katheria
07 अप्रैल 2018दिल को छू गयी!!