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पीड़ा(अपराजिता)

29 मार्च 2018

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टूट चुका है कोना कोना

खंड हृदय के जोड़ सकूं ना

अरसा बीता सुख को छोड़े

मुस्कानों ने नाते तोड़े

सुबह बुझी सी बोझिल बेमन

निशा विषैली चीखे उर नम

पर तुम क्या ठुकराओगी नही

पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!!


युग युग से हो साक्षी मन की

तुम हृदयों की पाती तन की

मुझमे क्या अवशेष तुम्हारा

नीर अश्रु का है सब खारा

बिंधे चुभे हैं कांटे कितने

कोई जगह न बाकी तन में

मृदु शीतल सुवास लाओगी नही

पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!!!


अरमानों के मेले आते

उम्मीदों के राग सुनाते

साहस सीने से लग जाता

मंजिल से जुड़ जाता नाता

लेकिन तेरी बंदी बनकर

थम जाती हूँ रुँध थककर

पथ से अवरोध हटाओगी नही

पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!!


बड़े धैर्य से तूने पाला

नित्य निरंतर जपती माला

इष्ट नही हैं सुनने वाले

आँचल में माँ मुझे छुपा ले

व्यर्थ हुए हैं सारे करतब

घात लगाए बैठे हैं सब

दुर्बलता का श्राप मिटाओगी नही

पीड़ा क्या तुम जाओगी नही !!


विधना का संदेश सुना दे

अंतिम तट पर मुझको ला दे

नियति नीति कर्म प्रबल की

दृष्टि ज्ञान की दे तर्पण की

अपराजिता अनंत असीमा

सत चित रूप प्रबुद्ध प्रवीना

मुझसे मेरी भेंट कराओगी नही

पीड़ा क्या तुम जाओगी नही।। .



..........देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

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तत त्वम् असि

21 जनवरी 2017
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तत त्वं असि रोज की तरह सब काम काज समेट ऑफिस से घर पहुचा कि चलो भाई इस व्यस्त भागदौड़ की जिंदगी का एक और दिन गुजर गया,अब श्रीमती जी के साथ एक कप चाय हो जाये तो जिंदगी और श्रीमती जी दोनों पर एहसान हो जाये।खैर ख्यालों से बाहर भी नही आ पाया था कि श्रीमती जी का मधुर स्वर अचानक

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राष्ट्र भक्त - बाल कविता

6 फरवरी 2017
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जब मै छोटा सा था,तो मेरी यह अभिलाषा थी,हँसता हुआ देखूँ,भारत को मन मे छोटी सी एक आशा थी।मन की पावन आँखों ने,कुछ देखे ख्वाब सुनहरे थे;उन सारे ख्वाबों की अपनीपहचानी सी भाषा थी।अपने कोमल ख्वाबों मे,मै भारत को एक

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साक्षात्कार

1 मार्च 2017
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रात्रि का प्रथम पहर टिमटिमाते प्रकाश पुंजों से आलोकित अंबर, मानो भागीरथी की लहरों पे, असंख्य दीपों का समूह, पवन वेग से संघर्ष कर रहा हो। दिन भर की थकान गहन निद्रा मे परिणत हो स्वप्न लोक की सैर करा रही थी, और नव कल्पित आम्र-फूलों की सुगंध लिए हवा धीमे धीमे गा रही थी । कुछ

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पीड़ा(अपराजिता)

29 मार्च 2018
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टूट चुका है कोना कोना खंड हृदय के जोड़ सकूं ना अरसा बीता सुख को छोड़े मुस्कानों ने नाते तोड़े सुबह बुझी सी बोझिल बेमन निशा विषैली चीखे उर नम पर तुम क्या ठुकराओगी नही पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!! युग युग से हो साक्षी मन की तुम हृदयों की पाती त

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अपराजिता

30 मार्च 2018
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उस रोज तुम्हे टोका नही तुम जा रहे थे मैंने तुम्हें रोका नही सुबह तुम्हारे सुरों की लालच में अक्सर देर से आती थी खिड़कियों से झांकती धूप मुस्कुराती थी । मै नींद का दामन थामे सपनो की पगडंडियों पर, जब भी चलने की कोशिश करता तुम्हारा तीव्र स्वर उलाहना देता.. मैं जागी हूँ

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गुरु दक्षिणा

27 जुलाई 2018
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जीवन है एक कठिन सफ़रतुम पथ की शीतल छाया होअज्ञान के अंधकार मेज्ञान की उज्जवल काया हो,तुम कृपादृष्टि फेरो जिसपेवह अर्जुन सा बन जाता है ।जो पूर्ण समर्पित हो तुममेवह एकलव्य कहलाता है।जब ज्ञान बीज के हृदय ज्योति सेकोई पुष्प चमन मे खिलता है,मत पूछो उस उपवन कोतब कितना सुख मिलता है ।हर सुमन खिल उठे जीवन काय

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गई तू कहाँ छोड़ के

26 अगस्त 2018
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सावन सूना पनघट सूनासूना घर का अंगना । बहना गई तू कहाँ छोड़ के।। दिन चुभते हैं काटों जैसेआग लगाए रैना। बहना गई तू कहाँ छोड़ के।। बचपन के सब खेल खिलौने यादों की फुलवारीखुशियों की छोटी साइकिलपर करती थी तू सवारी । विरह,पीर के पलछिन देकरहमें रुलाए बिधना । बहना गई तू कहाँ छोड़

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बात छोटी सी

18 अप्रैल 2021
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रात छोटी सीप्रियतम के संगबात छोटी सी।बड़ी हो गईरिवाजों की दीवारखड़ी हो गई।बात छोटी सीकलह की वजहजात छोटी सी।हरी हो गईउन्माद की फसलघात होती सी।कड़ी हो गईबदलाव की नईमात छोटी सी।बरी हो गईरोक तिमिर- रथप्रात छोटी सी।

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कोरी गप्प बन्डलबाजी

18 जून 2023
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गाँव गिराव में जून की दोपहरी में आम के पेड़ के नीचे संकठा, दामोदर और बिरजू बैठे गप्प हांक रहे हैं। गजोधर भईया का आगमन होता है-ए संकठा कईसा है मतलब एकदम दुपहरी में गर्मी का पूरा आनंद लई रहे हो और

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प्रेम दिवस

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"प्रेम दिवस" काव्य संग्रह "प्रतीक्षा" से इज़हार-ए-मोहब्बत का होनाउस दिन शायद मुमकिन था,वैलेंटाइन डे अर्थातप्रेम दिवस का दिन था,कई वर्षों की मेहनत का फल। एक कन्या मित्र हमारी थी,जैसे सावन को ब

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तुम लिखते रहना

24 फरवरी 2024
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तुम लिखते रहनाउनके मुताबिकउनके लिएजिन्हें पसंद हैतुम्हें पढ़ना तुम्हें सुनना।तुम लिखना जरूरअपने लिए भीऔर अपने अंतर्मन सेउपजी कविताओं का एक बाग लगानाजिसमें बैठ तुम मिल सकोपढ़ सको खुद कोगा सको अ

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