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अपराजिता

30 मार्च 2018

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उस रोज तुम्हे टोका नही

तुम जा रहे थे मैंने तुम्हें रोका नही

सुबह तुम्हारे सुरों की लालच में

अक्सर देर से आती थी

खिड़कियों से झांकती

धूप मुस्कुराती थी ।

मै नींद का दामन थामे

सपनो की पगडंडियों पर,

जब भी चलने की कोशिश करता

तुम्हारा तीव्र स्वर उलाहना देता..

मैं जागी हूँ और तुम

नींद को गले लगाए हो

वाह जी क्या खूब निभाये हो..

मैं सजल नेत्रों से

तुम्हे निहारता

तुम्हारे माथे पर

हाथ फेर कहता,

देख तेरा हाथ पकड़े हूँ

मै तुझसे अलग थोड़े हूँ,

तेरी पीड़ा तेरी तकलीफ का साझेदार हूँ

मैं वही तेरा चहेता किरदार हूँ

तुम निश्छल सागर सी

अपनी पीड़ा के ज्वार समेट

शांत हो जाती,

और अत्यंत अचंभित चकित

सिरहाने खड़ी

जिंदगी मुस्कुराती

उस रोज ऐसा हुआ नही

तुमने पुकारा पर मैंने सुना नही ।

तीन दिवस से जागी

आंखों की प्यास में थी

नींद उसी दिन की तलाश में थी,

तुम्हारी सखी हमजोली पीड़ा

तुम्हे बड़ी तीव्रता से तोड़ रही थी

सुबह दूर खड़ी

सिसक सिसक कर रो रही थी,

यंत्र तंत्र सब बेबस लाचार थे

बुत बने खड़े सारे पहरेदार थे,

हाय विधाता ! वो वीभत्स स्वरूप,

संयंत्रों में जकड़ा तुम्हारा रूप,

देखा न गया

हाथ तुम्हारे हाथ से छूट सा गया

वाह रे !!निद्रा

तेरा कपट जाल

आखिर भ्रमित कर गया

मैं फर्श पर बैठा सो गया

ठीक उसी क्षण नियति मुस्कुराई

तुम हृदय से चीखी चिल्लाई

किंतु हाय कोई ध्वनि

मुझ तक न आई।

स्तब्ध स्तंभित अवाक

सहसा खुली जब मेरी आँखे

काल चक्र तुम्हे समेट चुका था

मैं हार वो जीत चुका था....



देवेंद्र प्रताप वर्मा"विंनीत"

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तत त्वम् असि

21 जनवरी 2017
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तत त्वं असि रोज की तरह सब काम काज समेट ऑफिस से घर पहुचा कि चलो भाई इस व्यस्त भागदौड़ की जिंदगी का एक और दिन गुजर गया,अब श्रीमती जी के साथ एक कप चाय हो जाये तो जिंदगी और श्रीमती जी दोनों पर एहसान हो जाये।खैर ख्यालों से बाहर भी नही आ पाया था कि श्रीमती जी का मधुर स्वर अचानक

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राष्ट्र भक्त - बाल कविता

6 फरवरी 2017
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जब मै छोटा सा था,तो मेरी यह अभिलाषा थी,हँसता हुआ देखूँ,भारत को मन मे छोटी सी एक आशा थी।मन की पावन आँखों ने,कुछ देखे ख्वाब सुनहरे थे;उन सारे ख्वाबों की अपनीपहचानी सी भाषा थी।अपने कोमल ख्वाबों मे,मै भारत को एक

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साक्षात्कार

1 मार्च 2017
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रात्रि का प्रथम पहर टिमटिमाते प्रकाश पुंजों से आलोकित अंबर, मानो भागीरथी की लहरों पे, असंख्य दीपों का समूह, पवन वेग से संघर्ष कर रहा हो। दिन भर की थकान गहन निद्रा मे परिणत हो स्वप्न लोक की सैर करा रही थी, और नव कल्पित आम्र-फूलों की सुगंध लिए हवा धीमे धीमे गा रही थी । कुछ

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पीड़ा(अपराजिता)

29 मार्च 2018
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टूट चुका है कोना कोना खंड हृदय के जोड़ सकूं ना अरसा बीता सुख को छोड़े मुस्कानों ने नाते तोड़े सुबह बुझी सी बोझिल बेमन निशा विषैली चीखे उर नम पर तुम क्या ठुकराओगी नही पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!! युग युग से हो साक्षी मन की तुम हृदयों की पाती त

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अपराजिता

30 मार्च 2018
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उस रोज तुम्हे टोका नही तुम जा रहे थे मैंने तुम्हें रोका नही सुबह तुम्हारे सुरों की लालच में अक्सर देर से आती थी खिड़कियों से झांकती धूप मुस्कुराती थी । मै नींद का दामन थामे सपनो की पगडंडियों पर, जब भी चलने की कोशिश करता तुम्हारा तीव्र स्वर उलाहना देता.. मैं जागी हूँ

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गुरु दक्षिणा

27 जुलाई 2018
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जीवन है एक कठिन सफ़रतुम पथ की शीतल छाया होअज्ञान के अंधकार मेज्ञान की उज्जवल काया हो,तुम कृपादृष्टि फेरो जिसपेवह अर्जुन सा बन जाता है ।जो पूर्ण समर्पित हो तुममेवह एकलव्य कहलाता है।जब ज्ञान बीज के हृदय ज्योति सेकोई पुष्प चमन मे खिलता है,मत पूछो उस उपवन कोतब कितना सुख मिलता है ।हर सुमन खिल उठे जीवन काय

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गई तू कहाँ छोड़ के

26 अगस्त 2018
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सावन सूना पनघट सूनासूना घर का अंगना । बहना गई तू कहाँ छोड़ के।। दिन चुभते हैं काटों जैसेआग लगाए रैना। बहना गई तू कहाँ छोड़ के।। बचपन के सब खेल खिलौने यादों की फुलवारीखुशियों की छोटी साइकिलपर करती थी तू सवारी । विरह,पीर के पलछिन देकरहमें रुलाए बिधना । बहना गई तू कहाँ छोड़

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बात छोटी सी

18 अप्रैल 2021
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रात छोटी सीप्रियतम के संगबात छोटी सी।बड़ी हो गईरिवाजों की दीवारखड़ी हो गई।बात छोटी सीकलह की वजहजात छोटी सी।हरी हो गईउन्माद की फसलघात होती सी।कड़ी हो गईबदलाव की नईमात छोटी सी।बरी हो गईरोक तिमिर- रथप्रात छोटी सी।

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कोरी गप्प बन्डलबाजी

18 जून 2023
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गाँव गिराव में जून की दोपहरी में आम के पेड़ के नीचे संकठा, दामोदर और बिरजू बैठे गप्प हांक रहे हैं। गजोधर भईया का आगमन होता है-ए संकठा कईसा है मतलब एकदम दुपहरी में गर्मी का पूरा आनंद लई रहे हो और

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प्रेम दिवस

14 फरवरी 2024
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"प्रेम दिवस" काव्य संग्रह "प्रतीक्षा" से इज़हार-ए-मोहब्बत का होनाउस दिन शायद मुमकिन था,वैलेंटाइन डे अर्थातप्रेम दिवस का दिन था,कई वर्षों की मेहनत का फल। एक कन्या मित्र हमारी थी,जैसे सावन को ब

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तुम लिखते रहना

24 फरवरी 2024
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तुम लिखते रहनाउनके मुताबिकउनके लिएजिन्हें पसंद हैतुम्हें पढ़ना तुम्हें सुनना।तुम लिखना जरूरअपने लिए भीऔर अपने अंतर्मन सेउपजी कविताओं का एक बाग लगानाजिसमें बैठ तुम मिल सकोपढ़ सको खुद कोगा सको अ

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