बॉलीवुड को आज एक मॉडर्न इंडस्ट्री के रुप में देखा जाता है. इसकी शुरुआत हुई थी साल 1973 से. साल 1973 इसलिए, क्योंकि इसी साल परवीन बाबी का हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में डेब्यू हुआ था. अपने समय के मशहूर क्रिकेटर और पहले अर्जुन अवॉर्डी क्रिकेटर सलीम दुर्रानी के साथ. फिल्म थी ‘चरित्र’. ये वो समय था, जब भारतीय सिनेमा बहुत ही पारंपरिकता के साथ चल रहा था. नई कहानियों को उसी पुरानी बनी-बनाई थाल में परोसा जा रहा था. कहने का मतलब ये है कि कोई ग्लैमर वगैरह जैसी चीज़ नहीं थी. जिस तरह से महिलाओं को घर पर रखा जाता था, ठीक उसी तरह का प्रस्तुतिकरण उनका फिल्मों में भी होता था.
लेकिन ये सब कब तक चलता रहता, एक दिन तो बदलना ही था. और बदला परवीन बाबी की ‘चरित्र’ के साथ. वो कई मायनों में हिन्दी फिल्म हीरोइनों के लिए ‘टॉर्चबीयरर’ रही हैं. उनके आने के बाद से फिल्मों में हीरोइनों के कपड़ों से लेकर बोल-चाल और उनका पिक्चराइजेशन सब बदल गया. परवीन वो पहली हीरोइन थीं या यूं कहें कि पहली भारतीय थीं, जिन्हें प्रतिष्ठित टाइम मैग्ज़ीन के कवर पर आने का मौका मिला. परवीन ने हिंदुस्तान को बताया कि कोई महिला भी खुले में, मर्दों के साथ बैठकर शराब पी सकती है. फिल्मों में बेड सीन्स कर सकती है और रीयल लाइफ में लिव-इन में रह सकती है. उसके एक से ज़्यादा बॉयफ्रेंड्स हो सकते हैं. एक्स्ट्रा-मैरिटल रिलेशन (विवाहेत्तर संबंध) हो सकते हैं.
परवीन बाबी का जन्म 4 अप्रैल, 1949 को सौराष्ट्र के जूनागढ़ में हुआ था. फिल्मों में शुरुआत हुई 1973 से, आखिरी फिल्म ‘इरादा’ रिलीज़ हुई 1990 में. अमेरिका में फिलॉसोफर यू.जी. कृष्णमूर्ती के साथ कुछ समय गुज़ारने के बाद वो भारत आईं और सिज़ोफ्रेनिया (एक तरह की मानसिक बीमारी) से ग्रसित बताई जाने लगीं. बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस बनने से शुरू हुआ ये सफर फिल्मों से दूरी, बीमारी और कई सारे ब्रेकअप्स के बाद अपने मुकाम पर पहुंचा 20 जनवरी, 2005 को. ये वही दिन है, जब परवीन बाबी अपने अपार्टमेंट में मृत पाई गईं. लेकिन पीछे बहुत सारे किस्सें छोड़ गईं. बहुत से ऐसे किस्से हैं, जिनके बारे में बातों से लेकर फिल्में तक बनाई जा चुकी हैं. उनके सारे किस्से बताने का झूठा वादा तो नहीं कर सकते लेकिन जो हमें खास लगे और जिनपर कम बात हुई है, वो किस्से आज आपको बता रहे हैं.
#1.) फिल्मों से दूर होने के बाद परवीन फिलॉसफर यू.जी कृष्णमूर्ति के साथ दुनियाभर में घूम रही थीं. ऐसी ही एक ट्रिप के दौरान वो न्यूयॉर्क पहुंची थीं. तारीख थी 7 अप्रैल, 1984. वो अमेरिका के जॉन एफ. कैनेडी एयरपोर्ट पर उतरीं और बाहर निकलने लगीं. लेकिन एयरपोर्ट के कर्मचारियों को विश्वास नहीं हुआ कि ये भारत की मशहूर एक्ट्रेस परवीन बाबी हैं. क्योंकि तब तक सिज़ोफ्रेनिया उन्हें हिट कर चुका था. मतलब उनके बिखरने की शुरुआत हो चुकी थी. जब आप एयरपोर्ट से बाहर निकलते हैं, तो आपको नियमों के मुताबिक कुछ प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है. अपनी पहचान साबित करना भी उनमें से एक है. लेकिन कमाल की बात ये कि परवीन अपनी आइडेंटिटी तक प्रूफ तक नहीं दे पाईं. तो एयरपोर्ट अथॉरिटी ने उन्हें हथकड़ी लगाकर एक कमरे में बंद कर दिया. उस कमरे में पहले से तीस मानसिक रुप से बीमार पेशेंट रखे गए थे. जैसे ही ये खबर वहां के भारतीय दूतावास तक पहुंची, वो फटाक से वहां पहुंचे और उन्हें फ्री करवाया.
#2.) समय के साथ परवीन की मानसिक हालत बिगड़ती जा रही थी. हद तो तब हो गई, जब परवीन ने मीडिया में ये कहा कि अमिताभ बच्चन उन्हें मरवाना चाहते हैं. ये वही अमिताभ थे जिन्होंने जया बच्चन के बाद सबसे ज़्यादा फिल्में परवीन बाबी के साथ की थीं. परवीन और अमिताभ ने साथ में आठ फिल्मों में काम किया था. बावजूद इसके परवीन ने उनपर ऐसे आरोप लगाए. 1989 में परवीन ने एक मैग्ज़ीन को इंटरव्यू देते हुए कहा,
”अमिताभ बच्चन एक सुपर इंटनेशनल गैंगस्टर हैं. वो मेरी जान के पीछे पड़े हुए हैं. उनके गुंडों ने मुझे किडनैप कर लिया था. किडनैप कर के मुझे एक आइलैंड पर रखा गया था. उसी आइलैंड पर उन्होंने मेरी सर्जरी कर मेरे कान के नीचे एक चिप लगा दिया. इस चिप की मदद से वो मुझ पर नज़र रखना चाहते हैं.”
इस इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कान के नीचे एक घाव भी दिखाया था. इतने सब के बाद लोगों ने मान लिया कि परवीन की हालत सच में बहुत ज़्यादा खराब हो गई है. कुछ समय से परवीन ने लोगों से मिलना-जुलना कम कर दिया था. लेकिन इस घटना के बाद लोगों ने भी उनसे दूरी बना ली. सिर्फ बाहरी ही नहीं परवीन अपने रिश्तेदारों से भी बिलकुल कट गई थीं.
#3.)90 के दशक की शुरुआत में कई सारे जर्नलिस्ट उनके घर इंटरव्यू के लिए जाते थे. यहां भी उनकी बीमारी लोगों को दिखती थी. क्योंकि उनके घर जो भी आता उससे वो अपना खाना-पानी टेस्ट करने को कहती थीं. ये काम वो आत्मसंतुष्टि के लिए करती थीं कि किसी ने उनके खान में जहर तो नहीं मिलाया. साथ ही अपने यहां काम करने वाले लोगों के बारे में कहती थीं कि इन लोगों ने उनके मेकअप को खराब कर दिया है, ताकि उनका चेहरा और स्किन खराब हो जाए. जब उनके घर बिजली जाती, वो कहने लगतीं कि इंटरनेशनल माफिया ने उन्हें हैरस करने के लिए बिजली काट दी है. सभी जर्नलिस्ट उनकी नज़र में अमिताभ बच्चन के एजेंट थे. अमिताभ को टीवी पर देखकर ही बौखला जाती थीं.
#4.) परवीन में डिप्रेशन के भी कुछ लक्षण दिखते थे. ऐसा कहा जाता है कि परवीन के साथ ये सब उनके फेल हुए रिलेशनशिप की वजह से हो रहा था. उन्होंने कभी शादी नहीं की लेकिन कई लोगों के साथ रिलेशनशिप में रही थीं. अधिकतर लोग इन बातों से इनकार कर दिया करते थे. कुछ ही लोग थे, जिन्होंने परवीन के साथ रिलेशनशिप में होने की बात स्वीकारी. इन लोगों में तीन लोग खास और बड़े नाम थे. ये नाम थे डैनी डेंग्जोप्पा, कबीर बेदी और महेश भट्ट. महेश भट्ट जब परवीन के साथ लिव-इन में थे तब उनकी शादी हो चुकी थी.
महेश ने अपने इन्हीं अनुभवों से प्रेरित होकर 1982 में ‘अर्थ’ नाम की एक फिल्म बनाई थी. महेश बताते हैं कि जब वो परवीन के साथ थे तब वो महज़ एक स्ट्रगलिंग डायरेक्टर थे, जबकि परवीन फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा नाम हुआ करती थीं. वो चाहती थीं कि महेश अपनी पत्नी को छोड़ उनके साथ ही रहें, जो महेश करने को तैयार नहीं थे. उन दोनों के अलग होने का ये बहुत बड़ा कारण था. महेश भट्ट ने बताया कि परवीन से ब्रेकअप के वक्त वो मानसिक बीमारी से जूझ रही थीं, जबकि महेश एलएसडी के नशे में थे. इसके बाद परवीन ने किसी पर भी विश्वास करना बंद कर दिया. परवीन के जीवन में किसी परमानेंट शख्स की कमी उनकी उस मानसिक स्थिति के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार थी.
#5.) परवीन की बीमारी को जेनेटिक भी माना जाता रहा है. माने उनकी बीमारी उनके माता-पिता से उनमें आई है. जबकि कुछ रिपोर्ट ऐसी थीं, जिनमें उनके बचपन में घटी चीज़ों को इसके लिए जिम्मेदार माना गया. 60 के दशक में जब अहमदाबाद में दंगा भड़का था, तब परवीन स्कूल में पढ़ती थीं. इस दंगे से बचाने के लिए उनकी टीचर्स उन्हें बहुत सारे मैट्रेस के नीचे ट्रक में छुपाकर ले गई थीं. इस पूरी जर्नी के दौरान परवीन का बदन डर के मारे कांपता ही रहा था. मर जाने या मार दिए जाने का डर उन्हें बचपन से ही था, जो बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता ही चला गया.
#6.) परवीन यू.जी कृष्णमूर्ति के साथ ट्रिप के बाद छह साल बाद, नवंबर 1989 में भारत लौटीं. उन्हें अंदेशा हो चुका था, जो वो पहले थीं, अब वो नहीं रहीं. उन्हें अपने शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह के बदलावों का इलहाम हो गया था. इसलिए उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद आदमी यानी अपने मैनेजर वेद शर्मा को ही एयरपोर्ट बुलाया था. बकौल वेद जब परवीन एयरपोर्ट पर उतरीं तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ. जब वो अमेरिका गई थीं, तब वो सुपरस्टार थीं. उनके रुप-रंग के लोग दीवाने हुआ करते थे. वेद अपनी क्लाइंट को लेकर खासे प्रोटेक्टिव होने के कारण नहीं बोल पाए लेकिन जो उन्होंने देखा था वो अपने बेटे को बताया था. उनके बेटे ललित ने बताया कि एयरपोर्ट पर एक मोटी औरत थी, जिसके हाथ में एक सोडे की बोटल थी. बाल बिखरे हुए और आंखों पर मोटा सा चश्मा च़ढ़ा हुआ था. उसके हाथ में एक प्लकार्ड था, जिसपर लिखा था परवीन बाबी. इसे देखकर वेद ने उन्हें पहचाना. मतलब ये अपने आप में कमाल की बात थी कि एक सुपरस्टार अपने हाथ में प्लकार्ड पकड़कर खुद की पहचान करवा रहा था.
#7.)अपने आखिरी समय में परवीन पब्लिक से बिलकुल दूर हो गई थीं. अपने अपार्टमेंट में अकेली रहते हुए भी अपने सभी कर्मचारियों पर शक करने लगी थीं. इसलिए लोग भी उनसे भागने लगे थे. तीन दिनों तक जब गेट के बाहर से अखबार और दूध नहीं उठाया गया, तब आसपास वालों ने पुलिस को खबर दे दी. पुलिस पहुंची और दरवाजा तोड़कर घर में घुसी तो पता चला कि एक युग का अंत हो चुका है. एक समय हिन्दी फिल्मों की सुपरस्टार, सेक्स सिंबल और पता नहीं क्या-क्या रहीं परवीन बाबी अब नहीं थीं. जब वो एक्टिव थीं, तब उनके घर के बाहर प्रोड्यूसर अपनी फिल्में साइन करवाने के लिए बाकायदा लाइन लगाकर खड़े होते थे. आज उसी अदाकारा के मरने की खबर तब लगी, जब पुलिस ने दरवाजा तोड़ा. पोस्टमॉर्टम से पता चला कि उन्हें काफी समय से डायबिटीज था. इसकी वजह से उनकी पांव में गैंगरीन हो गया था. उन्हें अपने घर में घूमने के लिए भी व्हीलचेयर की जरूरत पड़ती थी. उन्होंने मरने के तीन दिन पहले से कुछ भी नहीं खाया था. बॉडी जो कि डेड हो चुकी थी, उसमें सिर्फ एल्कोहॉल की थोड़ी-बहुत मात्रा पाई गई थी. डॉक्टरों के मुताबिक ये एल्कोहॉल शायद दवा वगैरह में रहा होगा.