जब इरादा नेक है तो देर फिर किस बात की,
आओ मिल-जुल के बदल दें सूरतें हालात की
वक़्त से कहदो जरा वो साथ दे खुलकर मेरा,
फ़िक्र करना छोड़ दो दिल ख्वाहिशें जज्बात की।
ढेर हैं बारूद के चिंगारियों को दूर रख,
बंद रख अपनी जुबां मत बात कर औकात की.
अपने लहू से सींचते हम सर-ज़मींने-हिन्द की,
हम नहीं परवाह करते हैं कभी दिन-रात की.
बाँध ना ख़ुद को कभी भी तू किसी ज़ंज़ीर में,
लुत्फ़ ले तू मौज़ कर ले उम्र जी जज़्बात की.
सूख जाएगी यहाँ तक आते-आते प्यास मेरी,
कैसे बुझाओगे भला तुम हो नदी बरसात की.
जिक्र जब भी हो तुम्हारा फ़क्र हो तुम पे गुरुर,
रौशनी बन जाओ तुम भी इक नई शुरुआत की.
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'अनुराग'