मैं लिखती हूँ, दिल बनके
तू दिल की दास्ताँ सुन ले
मैं धरकता हूँ कलेजे में
किसी जिंदगी की समां बनके ा
मैं रहता हूँ जिस्मों के साये में,
किसी लव की दुआ बनके
सहता हूँ जिंदगी की तूफानों को
किसी मुसाफिर की रहगुजर बनके ा
छलक जाता हूँ , यूँ ही कभी
किसी आँखों से ख्वाब बनके
टूट जाता हूँ यूँ ही कभी
किसी बेबफा के प्यार में चोट खाके ा
बफा करता हूँ मैं हरपल
किसी के इश्क में चूर होके
बैचेन सा हो जाता हूँ
किसी अपनों से दूर होके ा
गैरों से बंधन बांध के
रिश्तें नए बनता हूँ
अपनी सुलझी हुई बातों से
उलझे रिश्तें सुलझाता हूँ ा
मैं दिल हूँ चंचल सा
सच कहना मेरी फितरत है
तभी तो लोगों के जुबाँ बोले
कर वही, जो तेरा दिल कहता है ा