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प्रकृति एक भविष्य

3 मई 2018

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प्रकृति एक भविष्य


आशमाँ की छोर में, फैले जैसे आंधी,

तूफान मचती जाये, जैसे दीप को बुझाती,

पल दो पल में हो रही है ,काफी बर्बादी ,

चारो ओर अँधेरा घोर ,फैला ये आबादी,

ये मानवो की देन है ,और मानवो का अंत ,

भविष्य की तू चिंता कर, क्या लेगा कोई जनम?

बाते करते कितने सारे बाते वो तू छोड़ ,

आँखों से तू देख ज़िंदगी के कई मोड़,

ये अपनी धरती ,अपनी माता, अपनी ये जनक ,

प्राणो से क्या ज्यादा प्यारा , तुमको क्या ,नरक?

फर्क पड़ता तुमको तो,तू रक्त से खर्च ,

ये ज़िन्दगी की सिख , तू दरिंदगी से बच.


ये मौसमो का खेल नही ,

न है वो खिलाडी ,खेलते हो तुम ,

पर बाजी उसने मारी ,

हारी अपनी ज़िन्दगी उसके पीछे सारी,

सुनाते फिर रहे हम बस अपनी लाचारी.


ये नदिया , ये पर्वते ,ये प्रकृति की करवटें,

ये बादलों की घोर में छुपे हुए ये जलजले,

कहीं बाढ़ कही सूखा , कहीं महामारी की लक्षणें,

कहीं ध्वनियों की शोर में , मरे लोग लाखो दर्जने.


हाँ ये हो रहा ओर हम देखते जा रहे ,

आँखों में है लालच मोहरा खुद को ही बना रहे ,

पा रहे कुछ नहीं ज़िन्दगी की दौड़ में ,

असलियत में बोलू तो.

हम खुद को ही लुटा रहे.

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आदते है अपनी अपने हर इंसानो की ,

मिला कुछ छोटा नहीं की बड़ा उससे पाने की ..

चाहने की आदत बनी,ज़िन्दगी गवाने की ,

लाखो मर रहे पर आवाजों में कोई दम नहीं, ये मुद्दा उठाने की,

करो कम प्रदूषण ये लेती कई जाने नई,

रखो आवाजे सही न रखो आस

आज के आज करो न करो कल की बात

आज पे टिकी है पूरी भविष्य की लाज.


हर साल मना रहे हम , World Environment Day,

लोग करे बाते बस पर इसका न है समय ,

कागजो में, समाचारों में , दूर संचारो में ,

पर ये काफी नहीं ,ये उन सभी विचारो में ,

बढ़ो आगे आके एक पौधा भी लगाने में ,

हर दिन एक नयी ज़िन्दगी प्यार से सजाने में ,,

करो आज , कल का कोई पता नहीं ,

कल इंसान ही बन जाये, इक सोच किसी के ख्वाबों में!!

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