एकता एक शक्ति
निरंतर परिवर्तन सर पे आज मंतर,
भूख की तलब से रखते आज अंतर,
इस भीड़ में झाँकते गहराइयों में,
दफने आज,सपने खास,पास की बुराइयों में,
अग्रगामी जो सुनामी, बातें जो सुनानी,
धर्म को जो आज बांटते,
मुक्की उनको खानी,
ये बतानी बातें,दो चार हैं,
पर इसकी कोई वजह नहीं,
समझदार के लिए इशारा बस ही काफी,
अब आप समझदार हैं,या हैं वो विनाशी,
जो धर्म को बांटकर बनते हैं पापी,
इंसान हो इंसानियत रखो,
धर्म की तुलना खुद से न करो!
आतंक की बात न करो,
आतंकवाद न गढ़ो,
रूढिवादियाँ छोड़ देश समाज के हित में जनहित जारी करो,
आपस में न लड़ो भाईचारा फैलाओ,
धर्म को न आपस में न बटवाओं ,
एकता बनाओ,
इंसानियत बनाओ,
देश बढ़ाओ और प्यार फैलाओ!!