सफलता का मोल
जब भी मैं हारकर निराश हो जाता,
मेरी कमियां भी पूछे मुझसे,तू यह क्यों नहीं कर पाता,
रूठकर खुद से मैं ,यूँ बैठ जाता,
दोष खुद को नहीं,मैं किश्मत को लगाता,
कर पाने की चाह है,तू कर ले पर आत्मविश्वास क्यों तेरा डगमगाता?
देख अंदर झांकर जो तू है,
तेरा मन मंदिर , सोच तेरी रूह है,
ठान ले एक बार पुरे मन में,तेरी सोच को बांध कफ़न में,
और चल ज़िन्दगी के इस जंग में,
हार को कर दे तू बगल में,
और बढ़ चल इस सफर में,
जीत की आशा और जीत की जश्न में,
आत्मविश्वास को रख इस सितम में ,
जो तू है उसे देख और बढ़, कठिनाइयां आये, उसे दूर कर,
पाने की चाह , पाने की होड़ ,
अब पाना है तो लगा जरा जोर,
सफलता आएगा खुद तेरी ओर,
इस जंग को सिपाही तू और तू ही चोर,
छींनना है तुझे हर ज़िंदगी के मोड़,
जिसे गवाया तूने था सभी ओर,
अब खुद को न दोष दे न किश्मत को दोष दे,
बढ़ना है तो अब चल पुरे होश में,
लिखना है किश्मत तो लगा जोर,
अब पुरे जोश में!!