दो दिल जहाँ नज़दीक हों और खुल के मन की बात हो
वो पल अगर तुम थाम लो हरदम सुहानी रात हो
झुलसा सा तन उलझा सा मन और तुम कहीं से आ गए
नभ में घटाएं छा गईँ कैसे ना अब बरसात हो
ओस से भीगा समां और ठंडी ठंडी ये सुबह
तुम ढली जाती हो मुझपे ज्यूँ महकता पारिजात हो
प्यार का गुल खिल गया तो फिर ये मुरझाता नहीं
चाहे मुकद्दर साथ ना दे और कठिन हालत हो
जब चुन लिया मधुकर तुम्हें तो और कुछ ना चाहिए
अब तुम ही हो जीवन मेरा और सकल सौगात हो