पीटीआई- भाषा संवाददाता 20:12 HRS IST
नयी दिल्ली , 17 मई ( भाषा ) उच्चतम न्यायालय ने 20 वर्षीय एक महिला को अपने कथित पति की बजाय माता - पिता के साथ रहने की आज अनुमति दे दी। न्यायालय ने कहा कि बालिग होने के नाते वह अपनी मर्जी से अपना जीवन जीने को स्वतंत्र है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़ की पीठ ने महिला के साथ संवाद करने के बाद फैसला किया। महिला ने उत्तराखंड के हलद्वानी में अपने माता - पिता के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की।
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही 23 वर्षीय मोहम्मद दानिश की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण कर दिया। उसने मांग की थी कि उसकी पत्नी को उसके माता - पिता के कब्जे से मुक्त कराया जाए।
पीठ ने कहा , ‘‘ कुछ सवाल करने के बाद हमने पाया कि वह अपने माता - पिता के साथ रहना चाहती है। उसको देखते हुए याचिकाकर्ता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण किया जाता है। ’’
पीठ ने शादी के पहलू को छुए बिना यह बात कही।
सुनवाई के दौरान पीठ ने युवती से पूछा कि वह किसके साथ जाना चाहती है और वह क्या बनना चाहती है।
पीठ ने युवती से कहा , ‘‘ आप बालिग हैं और कानून के अनुसार आप अपनी मर्जी के अनुसार जीवन जीने को स्वतंत्र हैं। आप जहां भी जाना चाहती हैं जा सकती हैं। अब हमें बताएं कि आप किसके साथ रहना चाहती हैं। ’’
युवती ने कहा कि वह वाणिज्य स्नातक है और उद्यमी बनना चाहती है। उसने अपने माता - पिता के साथ जाने की इच्छा जताई।
महिला के साथ अदालत कक्ष में मौजूद उसके माता - पिता ने कहा कि उसके तथाकथित पति ने उसका अपहरण किया और उसने फर्जी निकाहनामा बनवाया।
राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता मनोज गौरकेला ने अदालत से कहा कि निकाहनामा और शादी का प्रमाण पत्र फर्जी था। उन्होंने कहा कि यह साफ तौर पर अपहरण का मामला था और दानिश की याचिका खारिज की जानी चाहिये।
शीर्ष अदालत ने गत 15 मई को उत्तराखंड पुलिस से दानिश की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर महिला को आज उसके समक्ष पेश करने को कहा था। दानिश ने दावा किया था कि उसकी पत्नी को जबरन उसके माता - पिता ने अपने कब्जे में रखा है।