ढूंढ़ते हैं हम जहाँ पे ज़िन्दगी मिलती नहीं
जाने ये किसका दोष है कलियां अब खिलती नहीं
पत्तियां इस पेड़ की खामोश हैं मायूस हैं
जब हवा ही ना चले तन्हा ये हिलती नहीं
इस कदर कमज़ोर है कुछ आज धागा प्रेम का
लाख कोशिश कर ले कोई चोटें तो सिलती नहीं
गर्द इतनी जम चुकी है रिश्तों के संसार में
कुछ भी कर लो मोटी परतें इसकी अब छिलती नहीं
झांक लो अब जिस भी घर में केवल यही तुम पाओगे
रोटियां वो प्रेम की मधुकर कहीं बिलती नहीं