जा मां, जी ले जिंदगी जी भर के. माफ किया तुझको. जिस दुनिया के लोकलाज के भय से तूने हमको ठुकराया है, उसी दुनिया ने हमको पलकों पर बैठा दिया है. हमको तुझसे न कोई गिला है और ना ही कोई शिकवा. हमको फेंका भी तो कूड़े के ढेर में. वह तो मजदूर अंकल बहुत अच्छे थे, जिन्होंने हमारी रोने की आवाज सुनकर हल्ला मचा दिया. उसके बाद एंबुलेंस वाले अंकल हम दोनों को साफ-सुथरे कपड़ों में लपेटकर दून हॉस्पिटल में ले गए. जहां हमको भर्ती करवाया. हमारे कूड़े के ढेर में मिलने की खबर शहर में आग की तरह फैल गई. जहां दुनिया तुमको कोस रही थी, वहीं हमको न्यूज वालों ने हाथों-हाथ लिया. दैनिक जागरण आईनेक्स्ट अखबार में हमको पहले पन्ने पर जगह मिली. अगले दिन खबर छपते ही बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्या भी हमको देखने हॉस्पिटल में आई. साथ ही हर कोई हमको दुआएं दे रहा था. हर कोई कह रहा था इनको हम ले जाएंगे. क्या हुआ जो इनको पत्थर दिल मां ने ठुकरा दिया. लेकिन इनको ममता की छांव हम देंगे. हमारी जिंदगी में खुशियों के रंग उडेलने के लिए कोई बेताब है. दैनिक जागरण आईनेक्स्ट अखबार ने हमारी जिंदगी में खुशियों के रंग भरने के लिए सार्थक प्रयास किए. दिन भर उनके पास मोबाइल नंबर पर सिर्फ इस बात के लिए कॉल आती रही, कि इन दोनों को हमको दिलवा दीजिए. लेकिन अब चूंकि, हम दोनों लावारिस हालात में मिले थे. लिहाजा, हमको ममता की छांव के लिए कानूनी प्रक्रिया के तहत ही मिलेगी. मां तेरी क्या मजबूरी होगी, यह तो हम नहीं जानते, लेकिन इतना जानते है कि बस तू जैसे भी हो खुद को संभाल लेना, दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है, जितना तूने समझ लिया. हां कुछ लोग बुरे हो सकते है, लेकिन उनकी एवरेज में बहुत ज्यादा अच्छे लोग भी है. वरना आज निष्ठुर होती दुनिया में जहां सब अपनों का गला घोंटने को तैयार बैठे है, वहीं बहुत अच्छे लोग भी है. शायद नियति को यही मंजूर था, हमको आपका प्यार भले ही न मिले, लेकिन हमारे मम्मा-पापा बनने के लिए कई बेताब है. मां हम बस इतना ही चाहते है कि हमारी चिंता मत करना, अपना ध्यान रखना. हमारा ध्यान रखने के लिए दुनिया ने पलक-पांवड़े बिछा दिए है.
20 मई 2018 की शाम साढ़े पांच बजे देहरादून में सहस्रधारा रोड पर आईटी पार्क के पास कुछ लोगों को सड़क किनारे नवजात शिशुओं के रोने की आवाज सुनाई दी. लोगों ने जाकर देखा तो वहां कपड़े में लपेटे दो नवजात शिशु पड़े थे. इनमें एक लड़का और एक लड़की है.