“मुक्तक”
मुक्तक तेरे चार गुण कहन-शमन मन भाव।
चाहत माफक मापनी मानव मान सुभाव।
चित प्रकृति शोभा अयन वदन केश शृंगार-
समतुक हर पद साथ में तीजा कदम दुराव॥-१
यति गति पद निर्वाह कर छंद-अछन्द विधान।
अतिशय मारक घाव भरि मलहम मलत निदान।
वर्तन-नर्तन चिन्ह लय कंठ सुकोमल राग-
करुण-दरुण दुख-सुख कहे मुक्तक मोह सुजान॥-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी